मापन से आप क्या समझते हैं ? मापन की विशेषता, महत्त्व एवं मापन में होने वाली त्रुटियों का उल्लेख कीजिए।
मापन से आप क्या समझते हैं ? मापन की विशेषता, महत्त्व एवं मापन में होने वाली त्रुटियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – मापन का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Measurement)—
” मापन एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें छात्रों की सफलताओं का सही अनुमान लगाने का प्रयत्न किया जाता है। इसमें छात्रों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक गुणों का परीक्षण सम्मिलित है। मापन का अर्थ थॉनडाइक के इस कथन में निहित है कि “प्रत्येक वस्तु जो जरा भी सत्ता रखती है, किसी परिमाण में सत्ता रखती है और कोई भी वस्तु जिसकी किसी परिमाण में सत्ता है मापन के योग्य है ।” इस बात पर सहमति देते हुए मैककाल ने कहा है कि, “यदि कोई वस्तु किसी परिमाण में अस्तित्वमय है तो उसका मापन हो सकता है। “
इस तरह दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यह एक ऐसा पद है, जिसका तात्पर्य किसी वस्तु, घटना आदि को किसी नियम के अनुसार आंकिक स्वरूप (Numberical Nature) के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।
अनेक विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से मापन प्रक्रिया को परिभाषित करने का प्रयास किया जो इस प्रकार हैं—
एस. एस. स्टीवेन्स के अनुसार, “मापन किन्हीं निश्चित स्वीकृत नियमों के अनुसार वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है।”
कैम्पबेल के अनुसार, “नियमों के अनुसार वस्तुओं या घटनाओं को प्रतीकों में व्यक्त करना मापन है ।”
टायलर के अनुसार, “मापन किसी नियम के अनुसार आवंटन करने की प्रक्रिया है। “
ब्रेडफील्ड तथा मोरडॉक के अनुसार, “मापन की प्रक्रिया में किसी घटना या तथ्य के विभिन्न आयामों के लिए प्रतीक निश्चित किए जाते हैं ताकि उस घटना या तथ्य के बारे में यथार्थ निश्चित किया जा सके।”
जी.सी. हेल्मस्टेडटर के अनुसार, “मापन को किसी व्यक्ति या वस्तु में निहित किसी विशेषता के विस्तार को आंकिक वर्णन प्राप्त करने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है।”
इन परिभाषाओं का यदि हम विश्लेषण करें तो हमें इसके स्वरूप के बारे में निम्न तथ्य प्राप्त होते हैं—
(1) मापन की प्रक्रिया के अन्तर्गत वस्तुओं एवं घटनाओं या तथ्यों को नियमानुसार अंक प्रदान किए जाते हैं।
(2) मापन के अन्तर्गत किसी वस्तु का मापन न कर उसकी विशेषताओं व गुणों का मापन किया जाता है।
(3) मापन के अन्तर्गत वस्तु के परिमाणात्मक स्वरूप की अभिव्यक्ति होती है ।
मापन की विशेषताएँ (Characteristics of Measurement)—
मापन में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं—
(1) मापन मूल्यांकन करने में सहायक होता है।
(2) मापन किसी वस्तु का पूर्व वर्णन न कर आंकिक वर्णन अत्यन्त शुद्धता के साथ करता है।
(3) किसी भी वस्तु का मापन सीधे न होकर किसी उपयुक्त माध्यम से होता है।
(4) मापन में अनन्तता की स्थिति (Sense of Infinity) पाई जाती है। कभी भी यह बात नहीं कही जाती है कि हमने छात्र की सम्पूर्ण उपलब्धि का मापन कर लिया है।
(5) मापन में कोई निरपेक्ष शून्य बिन्दु (Absolute Zero Point) नहीं होता है ।
(6) मापन में आंकिक स्वरूप पाया जाता है ।
मापन का महत्त्व (Importance of Measurement)—
मापन शिक्षा प्रक्रिया की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं सतत् चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा से सम्बन्धित अनेक व्यक्तियों के लिए मापन का अत्यन्त महत्त्व है। मापन के महत्त्व को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है—
(1) मापन छात्रों को अध्ययन हेतु एवं शिक्षकों को शिक्षण हेतु प्रोत्साहित करता है।
(2) मापन के आधार पर पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों आदि में आवश्यक सुधार किया जा सकता है।
(3) मापन के द्वारा छात्रों की बुद्धि, क्षमताओं, योग्यताओं, दृष्टिकोणों, कुशलताओं, रुचियों आदि की जाँच की जा सकती है।
(4) मापन द्वारा छात्रों को आत्म-मूल्यांकन का अवसर प्राप्त होता है।
(5) मापन छात्रों एवं शिक्षकों की प्रभावशीलता को इंगित करता है।
(6) मानव द्वारा विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों की उपयोगिता को समझा जा सकता है।
(7) मापन शिक्षण में सुधार लाता है। अध्यापक को मापन द्वारा अपनी कमियाँ ज्ञात होती हैं। जिससे वह अपनी शिक्षण पद्धति में सुधार करके उसे और अधिक सुसंगठित व प्रभावशाली बना सकता है।
मापन की त्रुटियाँ (Errors of Measurement ) – मापन त्रुटि से हमारा अभिप्राय किसी व्यक्ति द्वारा परीक्षा के आधार पर प्राप्त वास्तविक अंकों (True Scores) और अनुमानित अंकों में पाए जाने वाले अन्तर से है । जैसे—एक बालक की बुद्धिलब्धि (I.Q.) 120 आती है तो कहा जाएगा कि हमारे परीक्षण में मापन त्रुटि है तथा वह कम विश्वसनीय है |
गुलिक्सन ने मापन त्रुटि को इस प्रकार से अपने शब्दों में परिभाषित किया है,‘‘यह वास्तविक अंक और मानक अंक के बीच मतभेद (अंतर) के वितरण का मानक विचलन है। “
परीक्षण निर्माण करते समय यह मानकर चलना चाहिए कि —
(1) व्यक्ति में मापन योग्य मूल्य एवं क्षमता होती है।
(2) निरीक्षण में त्रुटियाँ रह जाती हैं।
(3) एक मानक अंक वास्तविक एवं त्रुटिपूर्ण अंक से मिलकर बना होता है।
इसी मापन त्रुटि के आधार पर परीक्षण की विश्वसनीयता का मूल्यांकन किया जाता है।
मापन त्रुटियों के प्रकार (Types of Measurement Errors)—मुख्य रूप से मापन में दो प्रकार की त्रुटियाँ पाई जाती हैं, जो कि निम्नलिखित हैं—
(1) आकस्मिक अथवा संयोग त्रुटि (Incidental or Accidental Error)– परीक्षा लेते समय या विद्यार्थियों के समूह को परीक्षण देते समय कभी-कभी अनायास ही कुछ ऐसी परिस्थितियाँ या बाधाएँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनसे परीक्षा परिणाम परोक्ष रूप से प्रभावित हो जाता है। इस दृष्टि का स्वरूप हमें तीन प्रकार से देखने को मिलता हैं—
(i) परीक्षण केन्द्रित त्रुटि,
(ii)विद्यार्थी केन्द्रित त्रुटि एवं
(iii) फलांकन केन्द्रित त्रुटि ।
परीक्षण केन्द्रित त्रुटि के अन्तर्गत वे सब त्रुटियाँ आती हैं जो परीक्षण सम्बन्धी परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होती हैं, जैसे—परीक्षार्थियों को ठीक-ठीक निर्देश न देना, प्रकाश का अभाव, सबको समान समय न मिलना आदि। इसी प्रकार विद्यार्थी केन्द्रित त्रुटियाँ विद्यार्थी से सम्बन्धित होंगी। परीक्षार्थी से सम्बन्धित अनेक ऐसी त्रुटियाँ होती हैं जो उनके परीक्षा परिणामों को प्रभावित करती हैं। जैसे—परीक्षार्थी का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य, अभिप्रेरणा, आत्मबल, कार्यशक्ति, संवेग एवं रुचि आदि ।
इसी प्रकार फलांकन सम्बन्धी त्रुटियों से हमारा विभिन्न परीक्षकों द्वारा अपनाए जाने वाले मूल्यांकन के तरीकों से है। हमारी वर्तमान परीक्षाओं का स्वरूप निबन्धात्मक है, ऐसी स्थिति में परीक्षक को मूल्यांकन करते समय अपनी आत्मनिष्ठता एवं मनमानी करने के पर्याप्त अवसर मिल जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप परीक्षा परिणाम अधिकता से प्रभावित होता है।
(2) क्रमिक त्रुटियाँ (Systematic Errors)– इसे पक्षपात त्रुटि भी कहते हैं क्योंकि इस परीक्षा के पक्षपातपूर्ण रवैये से इनका प्रभाव भी अत्यन्त हानिकारक सिद्ध होता है। इन कारणों में व्यक्तिगत द्वेष भावना, पूर्वाग्रह, पूर्व धारणाएँ, दूषित विचारधाराएँ असत्य परीक्षण गलत सिद्धान्त आदि प्रमुख हैं। ये त्रुटियाँ आकस्मिक त्रुटियों की अपेक्षा अधिक घातक होती हैं किन्तु ये त्रुटियाँ अविरल होती हैं। उदाहरणार्थ- एक विज्ञान सम्बन्धी विद्यार्थी बॉयल के नियम में, पारे की स्थिति पढ़ने में शीघ्रता करने के कारण गलत माप लेना, पेण्डुलम (Pendulum) की गति निकालने सम्बन्धी प्रयोग में स्टॉप-वॉच का सही प्रयोग नहीं कर माना, प्रथम टैस्ट में सारणी ठीक से नहीं देख पाना या किसी परीक्षण से सम्बन्धित मैनुअलं को ठीक से नहीं समझ पाना आदि त्रुटियाँ अनुसंधानकर्ता से परोक्ष रूप से जुड़ी होती हैं।
मरसेल (Marsell) ने मापन त्रुटियों का दूसरा वर्गीकरण इस प्रकार से किया है— इसके अनुसार मापन त्रुटियाँ निम्न प्रकार की होती है—
(1) विवेचनात्मक त्रुटियाँ (Interpretative Errors)— विवेचनात्मक त्रुटियाँ उपयुक्त सन्दर्भ बिन्दु न मिलने से घटित होती हैं। जब परीक्षणकर्ता अनुमान लगाकर प्राप्त अंक का विवेचन कर देता है तो इस प्रकार के मापन की त्रुटि विवेचनात्मक त्रुटि कहलाती है। प्राय: ये त्रुटियाँ परीक्षण की मानकीकरण प्रक्रिया से सम्बन्धित होती है। मानकीकरण प्रक्रिया में परीक्षण सम्बन्धी मानक पहले से ही तैयार होते हैं जिनके आधार पर किसी व्यक्ति के अंकों की गणना समूह के प्रदत्तों से की जा सकती है। जैसे—यदि कोई छात्र आगे चलकर भविष्य में किसी कॉलेज में प्रोफेसर बनना चाहता है तो ऐसी स्थिति में उसके एकेडमिक स्कोर्स की तुलना कॉलेज के किसी प्रोफेसर के एकेडमिक स्कोर्स (Academic Scores) से की जानी चाहिए न कि मेडिकल या इंजीनियर कॉलेज के प्रोफेसर के अंकों से।
( 2 ) व्यक्तिगत त्रुटियाँ (Personal Errors) — जो तत्व व्यक्ति को आत्मनिष्ठ रूप से प्रभावित करें उन्हें व्यक्तिगत त्रुटि कहते हैं। मानव की एक सुलभ प्रवृत्ति है कि वह किसी वस्तु या परिस्थिति का अवलोकन अपने ही ढंग से करता है। इसी कारण से कभी-कभी दो व्यक्ति एक ही वस्तु के बारे में व्यर्थ के तर्क-वितर्क में उलझ जाते हैं तथा एक मत नहीं हो पाते। मनुष्य के मस्तिष्क पर आत्मनिष्ठा तत्त्व इतना अधिक हावी रहता है कि वह छोटी से छोटी बातों पर भी विवेकपूर्ण सहमति नहीं दे पाता है। परीक्षक की दृष्टि से भी यह तथ्य स्पष्ट होता है जब दो परीक्षक एक ही परीक्षार्थी को भिन्न-भिन्न अवसरों पर भिन्न-भिन्न ग्रेड व अंक
प्रदान करते हैं। अंकों का यह विचलन स्पष्ट करता है कि परीक्षक में भी व्यक्तिगत त्रुटियाँ होती हैं जो उसके मनोभावों से प्रभावित रहती है।
( 3 ) परिवर्त्य त्रुटियाँ (Variable Errors) इस प्रकार की त्रुटियाँ विभिन्न कारणों से उत्पन्न अशुद्धियों के परिणामस्वरूप घटित होती हैं। ये त्रुटियाँ परिवर्त्य इसलिए कही जाती है क्योंकि इनकी मात्रा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग-अलग होती है। विश्वसनीयता इस त्रुटि को ज्ञात करने की कसौटी मानी गई है। विश्वसनीयता का आशय एकरूपता से है अर्थात् किसी व्यक्ति का प्रत्येक परीक्षण में समान अंक प्राप्त होने से है। वस्तुतः भौतिक परिस्थितियों को समान बनाना संभव नहीं होता है। यही कारण है कि परीक्षण को दो विभिन्न परिस्थितियों में प्रशासित करने पर प्रभावित व्यक्तियों के परीक्षण अंकों में असमानता आ जाती है। यही परिवर्त्य त्रुटि कहलाती है। संक्षिप्ततः इस प्रकार की त्रुटियों का स्वरूप निम्नलिखित प्रकार का हो सकता है—
(i) परीक्षण केन्द्रित त्रुटियाँ (Test-Centred Errors ) –
परीक्षण को ठीक प्रकार से समझ न पाने पर होती है।
(ii) विद्यार्थी केन्द्रित त्रुटियाँ (Student Centred Errors ) – ये अकस्मात् विद्यार्थी की व्यक्तिगत परेशानियों के कारण होती हैं, जैसे—परीक्षा के समय बीमार हो जाना आदि।
(iii) प्रक्रिया केन्द्रित त्रुटियाँ (Process-Centred Errors ) – एक स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में एक थका हुआ व्यक्ति परीक्षण में कम अंक प्राप्त करेगा।
(iv) गणना केन्द्रित त्रुटियाँ (Scoring Centred Errors ) – गणना केन्द्रित मूल्यांकन दोषपूर्ण होता है. क्योंकि यह आत्मनिष्ठ तरीके से किया जाता है।
(4) स्थिर त्रुटियाँ ( Constant Errors ) — अधिकांश शील गुणों का मापन प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता, इसी तथ्य पर स्थिर त्रुटियाँ आधारित होती हैं। जैसे—किसी व्यक्ति को बुद्धिमान सिद्ध करने के लिए उसकी खोपड़ी की चीर-फाड़ करना आवश्यक नहीं, न ही खोपड़ी के अन्दर झाँककर देखा जा सकता है और ही चिमटी से बुद्धि को बाहर खींचा ही जा सकता है बल्कि उस व्यक्ति द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर हम उस व्यक्ति की बुद्धिमता का आंकलन करते हैं कि वह बुद्धिमान है अथवा नहीं। इस त्रुटि को स्थिर त्रुटि इसलिए भी कहा जाता है कि इसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिए त्रुटि की मात्रा समान होती है । प्रायः इस प्रकार की त्रुटि का सम्बन्ध परीक्षण वैधता से है । अतः यह जानकर इस त्रुटि को कम किया जा सकता है कि परीक्षण तत्त्व का मापन किस सीमा तक हो रहा है जिसके लिए उसका निर्माण किया गया है।
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