सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन पद्धति (C.C.E.) क्या है ? इसकी प्रमुख विधियों को समझाइए ।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन पद्धति (C.C.E.) क्या है ? इसकी प्रमुख विधियों को समझाइए ।
उत्तर – सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation)-सतत् मूल्यांकन, मूल्यांकन की ऐसी व्यवस्था है जो सीखने-सिखाने के साथ-साथ चलती है, जिसमें विद्यार्थियों के अनुभवों और व्यवहारों में होने वाले परिवर्तनों का लगातार मूल्यांकन होता रहता है। सतत् मूल्यांकन लिखित, मौखिक एवं अन्य क्रियाकलापों के माध्यम से सम्पन्न होता है । सतत् मूल्यांकन में प्रत्येक इकाई (पाठ/ अध्याय) से शिक्षण के उपरान्त या शिक्षण के दौरान विभिन्न उपकरणों से छात्रों का मूल्यांकन किया जाता है। इससे यह पता लगाया जाता है कि अध्यापित विषय वस्तु को छात्र समझ रहा है अथवा नहीं।
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में हमारा एक मात्र उद्देश्य रहता हैबालक का सर्वांगीण विकास । इसके अतिरिक्त बालक की आयु व कक्षा के स्तर को ध्यान में रखते हुए सीखने के उद्देश्य निश्चित किये जाते हैं। लेकिन उद्देश्यों की प्राप्ति तभी सम्भव है जब बालक के सीखने के स्तर के बारे में निरन्तर जानकारी ज्ञात होती रहे।
सतत् मूल्यांकन का आशय उस आंकलन या परीक्षण से है, जिससे शिक्षार्थी के अध्ययन एवं उपलब्धियों का प्रतिमाह आंकलन किया जाता है। सतत् मूल्यांकन प्रक्रिया में सामान्यतः सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को दस इकाइयों में बाँट दिया जाता है। उस इकाई का अध्ययन कराने के बाद स्वाभाविक रूप से प्रतिमाह परीक्षण किया जाता है तथा उसका व्यवस्थित लेखा-जोखा रखा जाता है।
सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन की विधियाँ–वर्तमान में परम्परागत रूप से अर्द्ध वार्षिक परीक्षा एवं वार्षिक परीक्षा काफी अधिक समयान्तराल के बाद होती हैं जिनके कारण बालकों की कठिनाइयों को पहचान कर उन्हें दूर करना असम्भव होता है। अतः बालकों की प्रगति को निरन्तर बनाये रखने के लिए सतत् मूल्यांकन करने हेतु कुछ निम्नलिखित नई प्रविधियों को अपनाया जाने लगा है
(1) सत्र परीक्षा–विद्यालयों में परम्परागत, त्रैमासिक, अर्द्धवार्षिक परीक्षाओं के अतिरिक्त सतत् व्यापक मूल्यांकन को ध्यान में रखते हुए शिक्षा सत्र में सितम्बर व फरवरी माह में दो और परीक्षाएँ लेने का प्रावधान किया गया है। शासनादेशानुसार ये दोनों परीक्षाएँ दोनों माहों के प्रथम सप्ताह में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों के नेतृत्व में सम्पन्न होंगी। कक्षा 1 से 8 तक के लिए प्रत्येक विषय की परीक्षा 100 अंक की ‘के’ होगी । कक्षा 1 व 2 के लिए 50 अंकों को मौखिक व 50 अंकों को लिखित परीक्षा होगी। छात्र परीक्षाओं के अंकों को वार्षिक परीक्षा के अंकों में जोड़ दिया जाता है।
(2) सेमेस्टर पद्धति-सतत् मूल्यांकन की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण आदि में छः छः माह की सेमेस्टर पद्धति को लागू किया गया है, प्रत्येक सेमेस्टर पूरा करने के बाद परीक्षा आयोजित करने में आसानी रहती है तथा 6 माह के बाद यह ज्ञात हो जाता है कि छात्रों में किस स्तर पर कमी है। इस पद्धति में सेमेस्टर का परीक्षाफल निकलने का इन्तजार न करके तुरन्त अगले सेमेस्टर की पढ़ाई प्रारम्भ कर दी जाती है।
(3) इकाई परीक्षण – सात् मूल्यांकन को विकसित एवं सुदृढ़ बनाने की दृष्टि से पाठ्य-पुस्तक के पाठ/अध्याय के बाद इकाई परीक्षण योजना को लागू किया गया है। एक पाठ / अध्याय के शिक्षण के बाद उसका परीक्षण किया जाता है कि पढ़ाये गये पाठ का बालकों को बोध हो गया है अथवा नहीं। यदि उन्हें उस पाठ/अध्याय का बोध नहीं हुआ है तो शिक्षण पुनः किया जाता है।
(4) मासिक परीक्षाएँ – एक माह में पढ़ायी गयी विषय-वस्तु का आंकलन करने के लिए विद्यालयों में मासिक परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है। इस परीक्षा का आयोजन इस दृष्टि से किया जाता है कि एक माह में पढ़ायी गयी विषय-वस्तु का छात्रों का कितना बोध हुआ है,यदि शिक्षण में कुछ कमियाँ महसूस की जाती हैं तो उन्हें तत्काल प्रभाव से दूर किया जा सके ।
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