आंकलन में चिन्तन प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए |
आंकलन में चिन्तन प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए |
अथवा
चिन्तन प्रक्रिया से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर—आंकलन में चिन्तन प्रक्रिया (Process of Thinking in Assessment) – अधिगम कक्षा-कक्ष में अपनाई जाने वाली एकमात्र शिक्षण की प्रक्रिया के साथ-साथ व्यावहारिक क्रिया को भी अपना अंग बनाकर व्यवहार परिवर्तन से बालकों का विकास करता है। अधिगम प्राप्त करने में जहाँ पाठ्यवस्तु के आधार पर शिक्षक कार्यनीति निर्धारित करता है वहीं कक्षा-कक्ष के वातावरण को सकारात्मक बनाने में विद्यालय पर्यावरण, कक्षा-कक्ष पर्यावरण और शिक्षक द्वारा अपनाए गये शैक्षिक पर्यावरण का विशेष महत्त्व है । शैक्षिक पर्यावरण में शिक्षक ज्ञान प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का निर्माण करते हैं तो वही छात्र उसके निदान / उत्तर देने के लिए तत्परता दिखाते हैं। इस प्रक्रिया में यह विशेष रूप से देखने को मिलता है कि अधिगमकर्ता के साथ-साथ शिक्षक भी अधिगमदाता के रूप में कक्षा-कक्ष के साथ-साथ शैक्षिक क्रियाओं में व्यस्त रहते हैं। शैक्षिक कार्य और शिक्षण कार्य दोनों के समन्वय का वास्तविक रूप तब सामने आता है जब अध्यापक और छात्र अपने-अपने क्रियाओं के सम्पादन में व्यस्त रहते हैं। शिक्षक अक्सर अपने विद्यार्थियों से प्रश्न पूछते रहते हैं, प्रश्न पूछने का अर्थ होता है कि शिक्षक अच्छे अधिगम (सीखने) में अपनी छात्रों की मदद करते हैं । ! बच्चे भी स्वभाव से जिज्ञासु होते हैं। वे भी भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्न अपने अध्यापक से पूछते रहते हैं। बच्चे द्वारा पूछे गये प्रश्न कई बार हमारे प्रश्नों से मिलते-जुलते प्रतीत होते हैं। जब हम कुछ जानना चाहते हैं या किसी चीज को जानने के लिए परेशान होते हैं तथा उत्सुक होते हैं, तो प्रश्न करते हैं। इसी प्रकार जब बालकों की समझ में कुछ बातें नहीं आती हैं तो वे जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रश्न पूछते लगते हैं। उनके प्रश्न पूछने से हमें यह ज्ञात होता है कि वे क्या जानना चाहते हैं, क्यों जानना चाहते हैं, क्या नहीं जानना चाहते हैं, उनकी अवधारणाएँ क्या हैं, क्या नहीं आदि। उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों से उनकी इच्छा शक्ति, उनकी जिज्ञासाएँ, उनकी कठिनाइयाँ, उनकी रुचि और ललक आदि की झलक हमें मिलती है। अतः बालकों को हरेक प्रकार के प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है। इससे वे अपने पूर्व के अनुभवों और ज्ञान के साथ सम्बन्ध जोड़ने में और जरूरत पड़ने पर नये ज्ञान को निर्मित करने में समर्थ होते हैं। शिक्षक को बच्चों के प्रश्नों के उत्तरों को सरलतापूर्वक देना चाहिए साथ ही बच्चों को उत्तर प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इस सक्रियता या व्यस्तता से बालक के ज्ञान का विकास होता है।
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