सामाजिक अधिगम से आप क्या समझते हैं ?

सामाजिक अधिगम से आप क्या समझते हैं ?

अथवा
सामाजिक अधिगम का वर्णन कीजिए।
उत्तर— सामाजिक अधिगम- सामाजिक अधिगम सामाजिक अंतःक्रिया के सन्दर्भ में तथा इसके परिणामस्वरूप होता है। समाज में कभी बालक को किसी कार्य के लिए प्रोत्साहित तो कभी हतोत्साहित किया जाता है, यही बालक का व्यवहार निर्धारित करता है, ये अनुभव बालक को कभी सम्मान का अनुभव कराते हैं, तो कभी आत्माग्लानि का। इन्हीं प्रक्रियाओं से बालक समाज में रहकर अधिगम करता है जो सामाजिक अधिगम के रूप में जाना जाता है।
क्रो एवं क्रो के अनुसार, “कोई समाज व्यर्थ में किसी बात की आशा नहीं कर सकता । यदि वह चाहता है, उसके तरुण व्यक्ति अपने समुदाय की भली-भाँत सेवा करें तो उसे उन सब शैक्षिक साधनों को जुटाना चाहिए, जिनकी तरुण व्यक्तियों को व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से आवश्यकता है। “
स्पष्ट है के बालकों के विकास एवं अधिगम में समाज सम्बन्धी धारणाओं को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है—
(1) शिक्षा के अनौपचारिक साधन – बालक शिक्षा विभिन्न प्रकार के माध्यमों से प्राप्त कर सकता है। विद्यालय जाने से पूर्व उसका समस्त ज्ञान एवं बोध अनौपचारिक माध्यमों के द्वारा ही होता है । इन अनौपचारिक माध्यमों के अन्तर्गत टी.वी., रेडियो, विभिन्न प्रकार के इनडोर तथा आउटडोर गेम (खेल) आदि आते हैं।
(2) वंशानुक्रम – वंशानुक्रम का बालक के अधिगम पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि वंशानुक्रम अच्छा है तो बालकों तथा व्यक्तियों में भी अच्छे गुणों का विकास होता है। बालक की 50% योग्यताएँ एवं क्षमताएँ उनके वंशानुक्रम की ही देन है ।
(3) व्यक्तित्व का विकास – सामाजिक, सांस्कृतिक, वंशानुक्रम तथा वातावरण आदि के ज्ञान से बालक मानवीय मूल्यों के विकास में रुचि लेने लगता है। सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आस्था बालक के सांवेगिक तथा सामाजिक विकास में विशेष योगदान देती है ।
(4) कक्षा का भौतिक वातावरण – कक्षा का भौतिक वातावरण विद्यार्थियों के अधिगम को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है । भौतिक वातावरण के अन्तर्गत प्रकाश, वायु, कक्षा में छात्रों में बैठने का स्थान, फर्नीचर की स्थिति, विद्यालय के आस-पास का वातावरण आदि आते हैं। यदि ऐसी स्थिति विद्यालय तथा उसके आस-पास रहती है तो छात्रों का मन अधिगम में ठीक से नहीं लगता है और वे थोड़ी ही देर में थकान का अनुभव करने लगते हैं तथा इन सब बातों से उनके सीखने में बाधा उत्पन्न होती है।
(5) सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण – सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण का आशय व्यक्ति द्वारा निर्मित उन मान्यताओं, रीति-रिवाजों, आदर्शों, मूल्य, नियम, विचार, विश्वासों एवं भौतिक वस्तुओं की पूर्णत: से है जो जीवन को चारों ओर से घेरे रहते हैं। इन समस्त नियमों एवं आदर्शों का बालक के अधिगम पर बहुत प्रभाव पड़ता है क्योंकि कोई भी समाज अपने आदर्शों के आधार पर ही संस्थागत शिक्षा प्रणाली की स्थापना करता है।
(6) परिवार का वातावरण – बालक के अधिगम पर उसके परिवार के वातावरण का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। यदि परिवार का माहौल अच्छा एवं सकारात्मक है तो उससे बालक का विकास एवं अधिगम की प्रक्रिया बहुत तीव्र हो जाती है। इसके विपरीत यदि परिवार का वातावरण कलह, लड़ाई-झगड़े वाला होता है तो ऐसे में बालक के मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। वे उदास, खिन्न और नकारात्मक हो जाते हैं जिससे उनके अधिगम पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
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