चिन्तनशील शिक्षण पर टिप्पणी लिखिए |

चिन्तनशील शिक्षण पर टिप्पणी लिखिए |

उत्तर— चिन्तनशील शिक्षण (Reflective Teaching) –चिन्तन स्तर के शिक्षण के लिए आवश्यक है कि इससे पहले स्मृति एवं बोध स्तर का शिक्षण छात्र कर चुके हो तभी इस स्तर का शिक्षण छात्र कर चुके हैं । तभी इस स्तर का शिक्षण सफल होता है ।
चिन्तन- स्तर के शिक्षण को परिभाषित करते हुए मॉरिस एल. बीगे (Morris L. Bigge, 1967) ने लिखा है—“Reflective level teaching tends to develop the class room atmosphere which is more alive and exciting, more critical and penetrating and more open to fresh and original thinking.
अर्थात्–“चिन्तन-स्तर का शिक्षण ऐसा कक्षा-वातावरण बनाने का प्रयास करता है जो कि अधिक सजीव और उत्साहवर्धक हो, अधिक आलोचनात्मक और गहराई तक ले जाने वाला हो तथा ताजी और मौलिक सोच के लिए अधिक खुला हो । “
इसी प्रकार डॉ. एस. सी. ओबराय ने चिन्तन- स्वर के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है- “चिन्तन स्तर का शिक्षण वह शिक्षण है जिसकी प्रकृति समस्या केन्द्रित हो और विद्यार्थी मौलिक कल्पना में व्यस्त हो तथा विषय के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण का उपागम (approach) होने के साथ-साथ गम्भीर प्रकार का चिन्तन करता हो। इसमें विद्यार्थी तथ्यों और सामान्यीकरण की खोज करता है। चिन्तन-स्तर के शिक्षण के लिए स्मृति और बोध स्तर के शिक्षण को शर्त पूरी करनी पड़ती है।”
इस स्तर के शिक्षण में विद्यार्थियों को वास्तविक समस्याओं का समाधान करने में सक्षम बनाया जाता है। कभी तो समस्याएँ शीघ्र सुलझ जाती है और कभी विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। इसके लिए व्यक्ति में चिन्तन- कौशल की अपेक्षा की जाती है। अतः विद्यार्थियों को स्वयं ही तर्क, कल्पना एवं चिन्तन करने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से यह शिक्षण प्रस्तुत किया जाता है । चिन्तन स्तर के शिक्षण में शिक्षक विद्यार्थी को अपना बौद्धिक विकास करने का अवसर प्रदान करता है और उसकी सृजनात्मक क्षमताओं का विकास करता है।
चिन्तनशील शिक्षण की विशेषताएँ—
(1) यह शिक्षण अधिक विचारयुक्त होता है।
(2) चिन्तन स्तर का शिक्षण समस्या – केन्द्रित होता है ।
(3) यह छात्रों को अग्रसरित करने व स्वतंत्र रूप से ज्ञान प्राप्त करने में सहायक होता है।
(4) छात्रों द्वारा मौलिक चिन्तन पर बल दिया जाता है।
(5) सृजनात्मक सम्बन्धी कार्यों में सहायक होता है ।
(6) कार्य-उ – उत्पादन को बढ़ावा मिलता है।
(7) इसमें पाठ्य-वस्तु की गहनता व गंभीरता से अध्ययन किया जाता है।
(8) छात्रों को उत्प्रेरित करना शिक्षक का प्रमुख कार्य है।
(9) चिन्तनशील शिक्षण समस्या केन्द्रित होता है ।
(10) चिन्तनशील शिक्षण में विद्यार्थी में आलोचनात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न किया जाता है।
चिन्तन – स्तर के शिक्षण-अधिगम के लिए सुझाव– हंट महोदय ने इस स्तर के शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं—
(1) इस स्तर का शिक्षण तभी होना चाहिए जब विद्यार्थी स्मृति और बोध-स्तर के शिक्षण की परीक्षा पास कर लें।
(2) शिक्षक समस्यात्मक परिस्थिति उत्पन्न करें जिसे विद्यार्थियों में मौलिक और सृजनात्मक चिन्तन का विकास हो ।
(3) विद्यार्थी समस्या को ठीक से समझें ताकि वे उपकल्पनाओं (hypothesis) का निर्माण कर सकें।
(4) अधिगम के लिए विद्यार्थी समस्या के प्रति संवेदनशील हो तथा शिक्षक समस्या की आवश्यकता उत्पन्न करें ।
(5) शिक्षक विद्यार्थियों का समस्या में संलिप्त होने के लिए उनका आकांक्षा स्तर ऊँचा उठाए।
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