शारीरिक शिक्षा का महत्त्व बताइये ।

शारीरिक शिक्षा का महत्त्व बताइये ।

                         अथवा
शारीरिक शिक्षा के पाँच महत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर— शारीरिक शिक्षा का महत्त्व – शारीरिक शिक्षा के महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) स्वास्थ्य में वृद्धि – शारीरिक शिक्षा से छात्रों के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। उनका प्रत्येक अंग सुडौल होता है । जिस समय बालक खेल खेलते हैं, उस समय उनकी समस्त माँसपेशियाँ कार्य करती हैं तथा रक्त तीव्रता से शरीर में चक्कर लगाने लगता है इस प्रकार शारीरिक शिक्षा छात्रों के शारीरिक विकास में परम् सहायक सिद्ध होती है ।
(2) मानसिक विकास में सहायक – शारीरिक शिक्षा का मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है। एक सुन्दर एवं निरोग शरीर में एक सुन्दर एवं निरोग मस्तिष्क रहता है। जो छात्र खेल में पर्याप्त भाग लेते हैं, उनका मस्तिष्क भी तीव्र गति से काम करता है।
(3) सामाजिकता की भावना का विकास – शारीरिक शिक्षा बालकों के केवल शरीर को ही दृढ़ नहीं करती, वरन् उन्हें आपस में मिलकर खेलना भी सिखाती है, जिससे उनके अन्दर सामाजिकता की भावना का उदय होता है।
(4) अतिरिक्त शक्ति का उचित प्रयोग – किशोरावस्था में बालक के अन्दर अतिरिक्त शक्ति होती है, यदि उसका उचित प्रयोग नहीं किया गया, तो वह शक्ति बुरे कार्यों में लगेगी। शारीरिक शिक्षा के द्वारा छात्रों की अतिरिक्त शक्ति का सदुपयोग होता है। बालक शारीरिक खेल-कूद खेलने में इतने थक जाते हैं कि उन्हें व्यर्थ की बातें सूझती ही नहीं। इस प्रकार जो शक्ति तोड़-फोड़ तथा ऊधम मचाने में लग सकती है, उसे शारीरिक खेल-कूद की व्यवस्था द्वारा सरलता से उचित मार्ग पर लाया जा सकता है।
(5) अवकाश का उचित प्रयोग – शारीरिक शिक्षा के माध्यम से अवकाश का सुन्दर प्रयोग होता है। यह बात ध्यान में रखने की है कि विद्यालयों में अनुशासनहीनता का प्रमुख कारण छात्रों को अवकाश का प्रयोग करने की सुविधा न देना है, फलतः अध्ययन के पश्चात् अतिरिक्त समय में छात्र कुछ न कुछ उपद्रव करने की सोचते हैं, जिन विद्यालयों में संध्या समय शारीरिक खेल की व्यवस्था रहती है, वहाँ के छात्र अव… श का समय शारीरिक खेल में लगाते हैं, साथ ही वहाँ किसी भी प्रकार की अनुशासनहीनता नहीं होती । इस प्रकार की व्यवस्था द्वारा छात्रों को विद्यालय के पश्चात् भी व्यस्त रखा जा सकता है।
(6) चारित्रिक विकास – शारीरिक शिक्षा छात्रों के चरित्र के विकास में भी सहायक होती है। शरीर के स्वस्थ तथा निर्मल रहने से चारित्रिक दुर्बलताएँ मस्तिष्क में प्रवेश नहीं करतीं । बालकों का मन शारीरिक खेल तथा अध्ययन के अतिरिक्त इधर-उधर कहीं नहीं भटकता । दूसरे शारीरिक खेल खेलते समय प्रत्येक बालक के अन्दर दृढ़ता, गम्भीरता तथा एकाग्रता की भावना का विकास होता है, जिससे चरित्र के गठन में सहायता मिलती है। जो बालक शारीरिक खेल के मैदान में अधिक सफलता प्राप्त कर लेते हैं, वे भविष्य में भी सफलता प्राप्त करते हैं।
(7) विद्यालय के प्रति प्रेम की भावना – जिस समय छात्र किसी अन्य शारीरिक शिक्षा प्रतियोगिता में भाग लेते हैं, उस समय उनका ध्येय अपने विद्यालय को जिताना तथा उसके सम्मान को ऊपर उठाने का रहता है। इस प्रकार की भावना छात्रों में स्कूल के प्रति प्रेम उत्पन्न करने में परम सहायक होती है ।
(8) अन्तर्राष्ट्रीय भावनाओं का विकास – शारीरिक शिक्षा छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीय भावनाओं का विकास करती है। वे संसार में होने वाली खेल प्रतियोगिता में अत्यन्त दिलचस्पी लेते हैं। किस देश का खिलाड़ी किस ढंग से खेलता है ? आदि बातें जानकर छात्रों में उस देश के प्रति उत्सुकता की भावना पैदा होती है। एक देश के खिलाड़ी दूसरे देश में जाकर अपनी शारीरिक स्फूर्ति और कौशल खेल द्वारा दिखाते हैं, साथ ही उनकी परम्पराओं तथा संस्कृति और शारीरिक शिक्षा की विधियों से अवगत होते हैं। इस प्रकार के आयोजनों से अन्तर्राष्ट्रीय भावनाओं के विकास के लिए अवसर मिलते हैं ।
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