शारीरिक उपयुक्तता को प्रभावित करने वाले पाँच कारकों की व्याख्या कीजिए ।

 शारीरिक उपयुक्तता को प्रभावित करने वाले पाँच कारकों की व्याख्या कीजिए । 

                                                        अथवा
शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तारपूर्वक समझाइये ।
उत्तर— शारीरिक उपयुक्तता को प्रभावित करने वाले कारककिसी व्यक्ति की शारीरिक पुष्टि अनेक घटकों (Factors) पर निर्भर करती है तथा यह हर व्यक्ति में भी अलग-अलग होती है । यह सभी घटक शारीरिक पुष्टि को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं व्यक्ति की शारीरिक पुष्टि को प्रभावित करने वाले तत्त्व निम्न हैं—
(1)  वंशानुक्रम – वंशानुक्रम का अर्थ है वंश से मिले गुणों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरण करना या देना । वंशानुक्रम प्रक्रिया सभी जीवित प्राणियों या वस्तुओं पर लागू होती है। इसलिए वंशानुक्रम व्यक्ति की शारीरिक पुष्टि व सुयोग्यता को प्रभावित करता है। इसका मुख्य कारण है व्यक्ति की शारीरिक संरचना जो कि व्यक्ति के वंश से मिले गुणों से निर्धारित होती है। इसलिए व्यक्ति की शारीरिक संरचना का प्रभाव उसकी शारीरिक पुष्टि पर अवश्य पड़ता है। कहा गया है कि Sprinters are born not made अर्थात् ‘धावक पैदा होते हैं बनाए नहीं जाते।’
इसके साथ-साथ वंश का प्रभाव व्यक्ति की मांसपेशियों पर भी होता है, मांसपेशियाँ पेशीय ऊतकों (Muscle Fibres) से बनी होती हैं और व्यक्ति की शक्ति (Strength) और सहन क्षमता (Endurance) इन्हीं ऊतकों (Fibres) पर निर्भर करती है। इन ऊतकों का अनुपात व्यक्ति की आनुवांशिकता (Heredity) पर निर्भर होता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि आनुवांशिकता शारीरिक पुष्टि व सुयोग्यता को प्रभावित करती है ।
(2) नियमित व्यायाम – व्यायाम साधारणत: शारीरिक पुष्टि को बढ़ाता है। यदि व्यायाम नियमित रूप से किया जाता है तो यह अपेक्षाकृत शारीरिक पुष्टि को अधिक प्रभावित करता है और वह शारीरिक रूप से पुष्ट रहता है जबकि नियमित व्यायाम न करने वाले व्यक्ति की शारीरिक पुष्टि में कमी आ जाती है। व्यायाम मांसपेशियों, हृदय तथा फेफड़ों को अच्छी कार्यकारी दशा में रखता है।
व्यायाम अनेक प्रकार के होते हैं लेकिन शारीरिक पुष्टि को प्रभावित करने वाले तीन आधारभूत प्रकार के व्यायाम आवश्यक हैं—
(i) वायवी व्यायाम
(ii) तनन वाले व्यायाम
(iii) दृढ़ता वाले व्यायाम ।
(3) प्रशिक्षण की मात्रा – प्रशिक्षण की मात्रा भी निश्चित रूप से शारीरिक पुष्टि पर प्रभाव डालती है। यदि प्रशिक्षण की मात्रा कम होती है तो शारीरिक पुष्टि या योग्यता भी कम होगी। प्रशिक्षण की मात्रा पर यदि धीरे-धीरे बढ़ाई जाए या अतिरिक्त प्रशिक्षण की मात्रा का अनुकूलन (Adaptation) ठीक होता जाए तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि व्यक्ति की शारीरिक पुष्टि या योग्यता बढ़ जाती है ।
(4) प्रशिक्षण का वैज्ञानिक ढंग – शारीरिक पुष्टि या योग्यता बढ़ाने के लिए यदि हम वैज्ञानिक ढंग से प्रशिक्षण करते हैं तो शारीरिक योग्यता या पुष्टि में वृद्धि होती है लेकिन यदि हम इसके अवैज्ञानिक ढंग अपनाते हैं तो हमारी शारीरिक पुष्टि निश्चित रूप से प्रभावित होगी और इसमें कमी आएगी।
(5) वातावरण – वातावरण का भी व्यक्ति की पुष्टि पर गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि मनोवैज्ञानिकों (Psychologists) के मतानुसार मानव वंशानुक्रम व वातावरण का उपक्रम है।
वातावरण, जिसमें परिवेश, जलवायु, तापमान, समुद्रतल से ऊँचाई, सामाजिक तथा सांस्कृतिक तत्त्व शामिल होते हैं, सभी का व्यक्ति की शारीरिक पुष्टि पर प्रभाव पड़ता है यह सर्वमान्य तथ्य है कि ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में जो व्यक्ति रहते हैं उनमें शारीरिक पुष्टि, गर्म जलवायु वाले व्यक्तियों से अधिक होती है। इसी प्रकार सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी व्यक्ति की शारीरिकं पुष्टि को प्रभावित करती हैं। अपने पूर्वजों से तो हम वह लेकर पैदा होते हैं जो हम में विद्यमान है लेकिन हमें क्या बनना है, कैसे विकसित होना है यह सब हमारे वातावरण द्वारा तय किया जाता है, क्योंकि एक बीज (Seed) जब तक अंकुरित या वृद्धि नहीं करेगा जब तक कि उसे अनुकूल वातावरण नहीं मिलेगा। अतः वातावरण की शारीरिक पुष्टि को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है |
(6) आराम तथा शिथिलता – आराम, शिथिलता तथा मनोरंजन स्वास्थ्य विकास को प्रोत्साहित करते हैं। शिथिलता मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, क्योंकि स्वास्थ्य शारीरिक योग्यता (पुष्टि) के लिए एक आधारभूत घटक माना जाता है। यदि उचित आराम, निद्रा तथा शिथिलन किया जाए तो शारीरिक पुष्टि पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
(7) सन्तुलित आहार – सन्तुलित आहार का भी सीधा सम्बन्ध शारीरिक पुष्टि से है, क्योंकि सन्तुलित आहार से न केवल शारीरिक पुष्टि बनी रहती है, बल्कि इसमें वृद्धि भी होती है। इसके विपरीत यदि भोजन सन्तुलित न हो तो न केवल शारीरिक पुष्टि में कमी आती है बल्कि व्यक्ति धीरे-धीरे कुपोषण का शिकार हो जाता है। पोषक आहार शरीर की पेशियों तथा सभी अंगों की गति के लिए ऊर्जा देता है तथा व्यक्ति की वृद्धि व विकास में सहायता करता है।
(8) दबाव व तनाव – अधिक दबाव व तनाव के कारण व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक शक्ति प्रायः कम होती जाती है। जिसके फलस्वरूप शारीरिक शक्ति व सहनशीलता में कमी आ जाती है। अतः कह सकते हैं कि दबाव व तनाव भी व्यक्ति की शारीरिक पुष्टि को प्रभावित करते हैं, क्योंकि शक्ति व सहनशीलता शारीरिक पुष्टि के घटक हैं।
(9) अच्छा आसन – शरीर को किसी विशेष स्थिति में साधने को आसन कहा जाता है। अच्छा आसन ऐसा शरीर साधन है जिसमें अंग आराम की स्थिति में हों और वे पूर्ण रूप से तनावरहित् हो । अतः अच्छा या उचित आसन, उस आसन को कहते हैं जिससे शरीर के समस्त अंग अपना कार्य अच्छी तरह कर सकें ।
डॉ. मैथिनी के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति के लिए सबसे उत्तम आसान वह, जिसमें शरीर के अंग कम से कम दबाव तथा अधिक से अधिक आराम की स्थिति से सन्तुलित रहते हैं । “
मुद्रा (आसन) केवल एक शारीरिक दशा नहीं है, यह मनःस्थिति तथा भावों को भी परिलक्षित करती है, यह केवल शरीर की पुष्टि को ही नहीं, बल्कि मन की भी अभिवृत्तियों को व्यक्त करती है। अतः शारीरिक पुष्टि के लिए अच्छा आसन बहुत आवश्यक व महत्त्वपूर्ण है। शारीरिक पुष्टि के आधारभूत घटक हैं—पेशियों की मजबूती, सहनशीलता और श्वसन व परिसंचरण की सहनशीलता गलत आसन या शारीरिक मुद्रा शारीरिक पुष्टि को कम करती है। अतः उत्तम मुद्रा हमारी शारीरिक पुष्टि उपलब्ध कराने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान करती है।
(10) मादक द्रवों से परहेज – शारीरिक पुष्टि के लिए यह आवश्यक है कि हानिकारक पदार्थों से दूर रहा जाए तथा मदिरा, तम्बाकू, मादक द्रव आदि का सेवन न किया जाए, इनका सेवन शरीर और दिमाग दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। नशा स्वास्थ्य और व्यक्तित्व दोनों को नष्ट कर देता है। अतः शारीरिक पुष्टि बनाए रखने के लिए सभी हानिकारक व मादक पदार्थों के सेवन से बचा जाना चाहिए।
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