माध्यमिक स्तर पर शारीरिक क्रियाओं की क्या महत्ता है ?
माध्यमिक स्तर पर शारीरिक क्रियाओं की क्या महत्ता है ?
अथवा
सैकण्डरी स्थूल स्तर पर शारीरिक क्रियाओं की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर— माध्यमिक स्तर पर शारीरिक क्रियाओं के महत्त्व को
निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर समझ सकते हैं—
(1) बच्चा जब खेलता है तो उसका विकास होता है, किशोर शारीरिक क्रियाएँ करता है तो अपनी उफनती हुई शक्तियों को उद्देश्यपूर्ण कार्यों में खर्च करता है, उच्च स्तर का खिलाड़ी अपने आप को प्रशिक्षित करता है तो प्रतियोगिताओं में पदक प्राप्त करता है तथा नये कीर्तिमान स्थापित करता है। उसी प्रकार एक वयस्क व्यक्ति शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से अपने आपको शक्तिशाली तथा अधिक समय तक युवा बनाये रखने का प्रयास करता है तथा एक प्रौढ़ व्यक्ति शारीरिक क्रिया के द्वारा अपने स्वास्थ्य को विकसित करता है, अपना मनोरंजन करता है तथा मानसिक शांति का अनुभव करता है।
(2) सामान्य शिक्षा की भाँति शारीरिक क्रियाएँ भी एक जीवनपर्यन्त चलने वाली विधा है इसके कार्यक्रमों में भाग लेने वाले सभी व्यक्तियों को चाहे वे धनी हों या निर्धन, बच्चे हों या बूढे, महिला हों या पुरुष, बुद्धिजीवी हों या श्रमिक उनकी अपनी प्रकृति एवं प्रवृत्ति के अनुसार लाभ प्राप्त होता है।
(3) शारीरिक क्रियाओं से बच्चों की शारीरिक क्षमता बढ़ती है और बहुत-से रोगों से बचाव होता है ।
(4) शारीरिक परिश्रम कम होने के कारण बच्चे अच्छी आदतों से दूर होते जा रहे हैं। शरीर के जिन अवयवों का नियमित उपयोग नहीं होता उनको शिथिल या क्षीण होने से बचाने के लिए क्रियाएँ बहुत आवश्यक है।
(5) बच्चों में होने वाले शारीरिक विकारों (Postural deformities) से बचने तथा विकार उत्पन्न होने पर सुधारने के लिए शारीरिक क्रियाओं की बहुत आवश्यकता है।
(6) बच्चों में साहस, शौर्य, अनुशासन, नेतृत्त्व, सहनशीलता, आपसी मेल-जोल जैसे सामाजिक गुणों के विकास के लिए शारीरिक क्रियाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
(7) स्वामी विवेकानन्द ने बच्चों के स्वस्थ शरीर और शारीरिक उपयुक्तता को ध्यान में रखते हुए कहा है कि ” भारतवर्ष में आज भगवद्गीता की इतनी आवश्यकता नहीं है जितनी कि खेल के मैदानों की । “
(8) फ्रोबेल के अनुसार, “यदि हम मनुष्य का सम्पूर्ण विकास चाहते हैं, तो हमें उसके सभी शारीरिक अंगों की क्रियाएँ कराना आवश्यक है । “
(9) मान्टेग ने शारीरिक क्रियाओं का महत्त्व बताते हुए कहा है कि—“शारीरिक क्रियाएँ आत्मा और शरीर को ही नहीं
बल्कि सम्पूर्ण मनुष्य को प्रशिक्षित करती हैं।
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