जीवमण्डल से आप क्या समझते हैं ? जीवमण्डल के कितने भाग हैं ?
जीवमण्डल से आप क्या समझते हैं ? जीवमण्डल के कितने भाग हैं ?
उत्तर— जीवमण्डल (Biosphere) – जीवमण्डल एक जीवनदायी या जीवनपोषक परत होती है जो पृथ्वी के चारों ओर व्याप्त है। दूसरे शब्दों में, जीवमण्डल सामान्य रूप में पृथ्वी की सतह के चारों ओर व्याप्त एक आवरण है जिसके अन्तर्गत पौधों तथा जन्तुओं का जीवन बिना किसी रक्षक साधन के सम्भव होता है ।
ए.एच. स्ट्रेहलर (A.H. Strahler) के अनुसार, “पृथ्वी के समस्त जीवित जीव तथा वे पर्यावरण जिनसे इन जीवों की पारस्परिक क्रिया होती है, मिलकर जीवमण्डल की रचना करते हैं। “
इस तरह स्पष्ट है कि जीवमण्डल के अन्तर्गत समस्त जीवित जीव (जैविक संघटक) तथा भौतिक पर्यावरण (अजैविक / भौतिक संघटक) को सम्मिलित किया जाता है ।
जीवमण्डल की ऊपरी परत का निर्धारण ऑक्सीजन, नमी, तापमान तथा वायुदाब की सुलभता तथा प्राप्यता के आधार पर किया जाता है । | वायुमण्डल में 15 किमी. की ऊँचाई तक बैक्टीरिया की उपस्थिति का NASA द्वारा पता चला है ।
जीवमण्डल एक तंत्र (Biospheres : A System)– जीवमण्डल एक तंत्र का उदाहरण है क्योंकि यह मौलिक रूप से तीन संघटकों से निर्मित है—
(i) जैविक संघटक, (ii) अजैविक संघटक, (iii) ऊर्जा संघटक । ये तीनों संघटक आपस में एक-दूसरे पर आधारित हैं या ये संघटक परस्परावलम्बित है तथा वृहदस्तरीय चक्रीय क्रियाविधियों (जैव भूरसायन चक्र) द्वारा एक-दूसरे से अन्तर्सम्बन्धित हैं । वृहदस्तरीय जैवभूरसायन चक्रों के माध्यम से जीव-मण्डलीय तंत्र से ऊर्जा तथा पदार्थों के निवेश तथा बहिगर्मन की प्रक्रियाओं का चालन होता रहता है । जीवमण्डल एक खुला या विवृत तंत्र (open system) का भी उदाहरण है क्योंकि इसमें ऊर्जा का सतत् निवेश या आगमन तथा पदार्थों का सतत बहिर्गमन होता रहता है। जब तक इस जीवमण्डलीय तंत्र में ऊर्जा तथा पदार्थों का निवेश तथा पदार्थों के तंत्र से बाहर गमन में सन्तुलन बना रहता है तब तक जीवमण्डलीय तंत्र सन्तुलित दशा में बना रहता है ।
जीवमण्डलीय तंत्र की साम्यावस्था सामान्य रूप से आत्मनिर्भर होती है तथा पारिस्थितिकीय दृष्टिकोण से अति दक्ष होती है। जीवमण्डलीय तंत्र को साम्यावस्था तथा पारिस्थितिकीय दक्षता जीवमण्डल के विभिन्न संघटकों के मध्य अति घनिष्ठ सम्बन्धों तथा विभिन्न वृहद् स्तरीय चक्रीय क्रियाविधियों (यथा—ऊर्जा चक्र, जलीय चक्र, अवसाद चक्र, पोषक तत्व चक्र, जिन्हें सामूहिक रूप से भू-जैवरसायन चक्र कहा जाता है।) पर निर्भर करती है क्योंकि ये चक्र जीवमण्डल के जैविक, अजैविक तथा ऊर्जा संघटकों को प्रभावित करते हैं तथा बदले में ये संघटक भी जीवमण्डल में इन चक्रों के द्वारा होने वाले ऊर्जा, जल, अवसादों तथा पोषक तत्वों के स्थानान्तरण, संचरण तथा चक्रण को भी प्रभावित करते हैं ।
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