जल प्रदूषण के मुख्य स्रोतों का वर्गीकरण कीजिए ।जल प्रदूषण के दुष्प्रभावों की विवेचना कीजिए ।

जल प्रदूषण के मुख्य स्रोतों का वर्गीकरण कीजिए ।जल प्रदूषण के दुष्प्रभावों की विवेचना कीजिए ।

                                                                         अथवा
जल प्रदूषण का आशय समझाइए। इसके कारणों एवं प्रभावों का वर्णन कीजिए। इसके नियंत्रण करने के उपाय भी सुझाइए ।
                                                                        अथवा
जल प्रदूषण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर—  जल प्रदूषण (Water Pollution) — जल एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। यह जीवों की उत्पत्ति का आधार है पृथ्वी पर पहला जीव जल में ही उत्पन्न हुआ है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है स्वयं हमारे शरीर में दो-तिहाई जल ही है। जल स्वयं एक पोषण तत्व होने के साथ-साथ शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों के संवहन का कार्य भी करता है।
जल प्रदूषण से अभिप्राय है जल के भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक गुणों में परिवर्तन जिसके कारण जल प्राकृतिक अवस्था में प्रयोग करने योग्य नहीं रहता।
राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जल प्रदूषण को निम्न प्रकार परिभाषित किया है ” जल प्रदूषण से अभिप्राय है उसके भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक गुणों में इस तरह का परिवर्तन जो मल के विसर्जन या औद्योगिक अपशिष्टों के बहाव या किसी इस तरह के तत्व के जल में मिलने के कारण स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़े और जल घरेलू, व्यावसायिक, उद्योगों व कृषि में प्रयोग न हो सके।”
जल प्रदूषण के स्रोत (Sources of Water Pollution)— जल एक सार्वभौमिक विलायक है अर्थात् अधिकतर पदार्थ जल में सरलता से घुल जाते हैं। जल के इसी गुण के कारण यह आसानी से प्रदूषित हो । जल प्रदूषण का एक विशिष्ट स्रोत नहीं होता। बल्कि इसके विभिन्न स्रोत होते हैं और उनका सामूहिक प्रभाव ही जल में प्रदूषण का कारण बनता है। जल प्रदूषण के दो मुख्य स्रोत हैं—
(1) प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources)प्राकृतिक रूप से भी जल में कुछ मलिनताएँ मिली हो सकती हैं। इनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं—
(i) घुली हुई गैसें (Dissloved Gases)–कार्बन-डाई-ऑक्साइड (Carbon-di-oxide), हाइड्रोजन सल्फाइड (Hydrogen Sulphide ) अमोनिया, नाइट्रोजन आदि ।
(ii) घुलनशील लवण (Dissloved Minerals)– कैल्शियम, मैग्नीशियम, सोडियम के लवण पानी में घुलकर इसकी गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं ।
(iii) अघुलनशील मलिनताएँ (Suspended Impurities)— मिट्टी, रेत, कीचड़ के बारीक कण पानी में तैरते रहते हैं और इसके स्वाद, गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं ।
(2) मानवीय स्रोत (Human Sources ) — जल प्रदूषण के मानवीय स्रोत निम्न हैं—
(i) वाहित मल (Sweage) — जल प्रदूषण का मुख्य कारण वाहित मलहै। जनसंख्या में वृद्धि, शहरीकरण आदि ने इस समस्या को अधिक गंभीर बना दिया है। पवित्र तीर्थस्थानों; जैसे—कुंभ के अवसर पर हरिद्वार और प्रयाग में लगभग 15 लाख लीटर वाहित मल प्रतिदिन नदियों में बहा दिया जाता है। वाहित मल के कारण ही गंगा-यमुना के जल का प्रदूषण बढ़ा है। वाहित मल के जल स्रोतों में मिलने से जैविक प्रदूषण व संक्रमण अधिक होता है क्योंकि इस जल में अनेक हानिकारक जीवाणुओं का जन्म होता है। इस जैविक प्रदूषण से अनेक रोग; जैसे—हैजा, पेचिश, टायफाइड आदि फैलते हैं।
(ii) औद्योगिक बहिःस्राव (Industrial Effuents)—औद्योगिक गतिविधियों में अत्यधिक जल का उपयोग होता है। यह जल उत्पादन प्रक्रिया में चलता हुआ अन्ततः औद्योगिक बहि:स्राव के रूप में बाहर निकलता है। इस बहि:स्राव में अनेक अम्ल, क्षार, रासायनिक पदार्थ जैसे—क्रोमियम, गंधक, कास्टिक सोड़ा आदि अनेक हानिकारक तत्व मिले होते हैं। इन विषैले पदार्थों एवं गैस आदि के निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने के कारण औद्योगिक अपशिष्ट को नालियों द्वारा जल स्रोतों में प्रवाहित कर दिया जाता है।
(iii) घरेलू बहिःस्राव (Domestic Effluents) — जल हमारे जीवन की विभिन्न क्रियाओं के लिए आवश्यक है; जैसे— भोजन बनाना, नहाना, कपड़े धोना आदि। किन्तु इन क्रियाओं में मनुष्य द्वारा उपयोग के पश्चात् जल दूषित हो जाता है।
मनुष्य द्वारा उपभोग के पश्चात् जल को बहा दिया जाता है इस वाहित जल में कूड़ा-करकट, घर की गन्दगी, साबुन अपमार्जक (डिटरजेन्ट) और अन्य सफाई के लिए उपयोग किए जाने वाले रसायनों आदि का मिश्रण होता है। इसमें कागज, कपड़ा, पोलीथीन, सड़े-गले पदार्थ और अन्य अनेक हानिकारक पदार्थ; जैसे— रूई, रोगी के उपचार में लिए गए कपड़े, नैपकिन, दवाइयाँ, कीटनाशक, प्लास्टिक आदि भी मिलते होते हैं। ये सब पदार्थ जल स्रोतों में पहुँचकर उन्हें प्रदूषित कर देते हैं। साबुन, पाउडर, डिटरजेन्टर आदि के बढ़ते उपयोग में जल स्रोतों में अत्यधिक प्रदूषण हो रहा है
(iv) कृषि बहि:स्राव (Agricultural Effluents) — कृषि क्षेत्र में आजकल बहुत से उर्वरकों; जैसे— नाइट्रेट, पोटाश, फास्फेट, यूरिया आदि का प्रयोग प्रमुखता से किया जा रहा है । हरित क्रान्ति से उत्पादन में वृद्धि तो हुई किन्तु साथ ही इससे कीटनाशकों व रासायनिक पदार्थों के उपयोग में भी वृद्धि हो गई है। ये उर्वरक कीटनाशक आदि रासायनिक पदार्थ पानी के साथ बहकर जल में मिल जाते हैं और इनसे जल स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं। अधिकांश कीटनाशक रसायनों में विषैले पदार्थ जैसे—पारा, क्लोरीन, फॉस्फोरस आदि मिले होते हैं जो जल में मिलकर मनुष्य एवं अन्य जीवों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। डी.टी.टी. BHC, एल्ड्रिन आदि अनेक कीटनाशकों का कृषि क्षेत्र में अत्यधिक प्रयोग किया जाता रहा है जिससे न केवल जल स्रोत प्रदूषित हुए बल्कि ये रसायन जीवों के शरीर में सान्द्रित होकर जैव-आवर्धन द्वारा मनुष्य और उच्चस्तर के जीवों की मृत्यु का कारण बनते हैं।
(v) नाभिकीय परीक्षण (Nuclear Tests) — आज प्रत्येक देश दूसरे से आगे निकलना चाहता है और अपने को शक्ति सम्पन्न बनाना चाहता है। इसके लिए नाभिकीय परीक्षण किए जाते हैं जो प्राय: समुद्र में या दलदली भूमि में किए जाते हैं नाभिकीय परीक्षण से अत्यधिक ऊर्जा पैदा होती है जिससे न केवल जल के तापमान में वृद्धि हो जाती है, बल्कि उसमें रेडियोधर्मिता भी उत्पन्न हो जाती है। इससे जल प्रदूषित हो जाता है और जल में रहने वाले जीव-जन्तु भी मर जाते हैं।
(vi) तेल अधिप्लाव (Oil Spilage) – तेल अधिप्लाव या तेल छलकाव का अर्थ है— खनिज तेल का समुद्र में बिखरना । समुद्र में तेल के बिखरने से यह पानी के ऊपर एक पतली-सी परत बना देता है क्योंकि तेल पानी से हल्का होता है। इससे समुद्री जीवों को साँस लेने में. कठिनाई होती है और वे मर जाते हैं। समुद्री वनस्पतियों व जन्तुओं को ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और उनकी मृत्यु हो जाती है।
(vii) ताप (Heat) – जल का अत्यधिक तापमान भी जल प्रदूषण का कारण बनता है। जल के तापमान में वृद्धि का एक कारण समुद्र में किए जाने वाले परमाणु विस्फोट परीक्षण हैं। प्रतिवर्ष प्रशान्त महासागर के क्षेत्र में अनेक परमाणु परीक्षण किए जाते हैं जिससे उस क्षेत्र के जल के तापमान में वृद्धि हो जाती हैं और अनेक जलीय जीव, मछलियों आदि की मृत्यु हो जाती है। इसके अतिरिक्त जल के तापीय प्रदूषण का प्रमुख कारण विभिन्न उद्योगों द्वारा जल स्रोतों में गर्म जल को छोड़ा जाना है।
जल प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Water Pollution) – जल प्रदूषण से न केवल जल में उगने वाली वनस्पतियों, पौधों, जलीय जीवजन्तुओं पर प्रभाव पड़ता है अपितु मनुष्य का जीवन भी प्रभावित होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 1987 में जल प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभावों को स्पष्ट किया—
(i) समूचे विश्व की कुल जनसंख्या के 30 प्रतिशत लोगों को पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है।
(ii) प्रतिवर्ष लगभग 25,000 मनुष्य प्रदूषित जल पीने के कारण मर जाते हैं।
(iii) विश्व की लगभग 15 प्रतिशत जनसंख्या जल-जनित रोगों; जैसे—अतिसार, हैजा, पेचिस आदि हानिकारक रोगों से ग्रसित हैं ।
प्रदूषित जल में अनेक प्रकार के रोगों के जीवाणु एवं वायरस आदि होते हैं जो मनुष्य में त्वचा सम्बन्धी रोगों, अनेक बीमारियों, जैसे—हैजा, पीलिया, अतिसार, टायफाइड, पेचिस, हेपेटाइटिस, आँतों की बीमारियाँ आदि का कारण बनते हैं ।
जल प्रदूषण के कारण आहार-शृंखला के उच्च स्तरों पर उपस्थित जीवों जैसे समुद्री पक्षियों, मनुष्यों आदि के शरीरों में हानिकारक रसायनों की सान्द्रता बढ़ जाती है जिससे उनमें कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ हो जाती हैं और उनकी मृत्यु भी हो जाती है। नाइट्रोजन उर्वरक बहकर जल में मिलने और उस प्रदूषित जल को पीने से गर्भवती माताओं विशेष छोटे बच्चों का शरीर नीला पड़ जाता है, उनकी मृत्यु भी हो सकती है। प्रदूषित जल को सिंचाई में उपयोग करने से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में कमी आ जाती है और इस तरह उगाई गई सब्जी, फल आदि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।
जल प्रदूषण का नियंत्रण (Control of Water Pollution ) जल प्रदूषण को नियंत्रण करने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लिये जाते हैं—
(1) कारखानों से निकलने वाले जल एवं अपशिष्ट को उचित रूप से उपचारित करना चाहिए ।
(2) शहरों व कस्बों से निकलने वाले वाहित मल का उपचार करने के बाद ही जल को नदी-नालों में छोड़ना चाहिए।
(3) घरेलू व कृषि कार्यों से बहिःस्राव होने वाले जल में से ठोस पदार्थ फास्फोरस, नाइट्रोजन आदि के अणु तथा अन्य कार्बनिक पदार्थों को साफ करके ही जल को स्रावित करना चाहिए।
(4) प्रदूषित जल के उपचार के लिए सूक्ष्मजीवों का उपयोग करने की प्रविधियाँ विकसित करनी चाहिए।
(5) जल स्रोतों — नदी, झीलों, तालाबों एवं कुओं के किनारे पर साबुन से नहाने, कपड़े धोने आदि पर रोक लगानी चाहिए।
(6) सामान्य लोगों को जल प्रदूषण एवं इसकी रोकथाम से परिचित कराया जाना चाहिए।
(7) ऐसे उद्योग जो जल को शीतलक के रूप में प्रयोग करते हैं, उनके लिए पानी के टैंक बनाना अनिवार्य कर देना चाहिए, जिनमें गर्म जल को ठण्डा करने के पश्चात् ही जल स्रोतों में छोड़ा जाए जिससे जल में उपस्थित प्रजातियों को नुकसान न पहुँचे।
(8) जल प्रदूषण को रोकने लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा जल-प्रदूषण निवारण के लिए बनाए गए कानूनों का सख्ती से पालन करना चाहिए।
(9) उत्पादन की कार्यशैली को अपनाना चाहिए जिससे पानी की आवश्यकता एवं उसका प्रदूषण कम हो ।
(10) प्रदूषित जल को प्रदूषक उपचारक इकाइयों द्वारा उपचारित करके जल का पुन: उपयोग करना चाहिए।
(11) नदियों में शव-प्रवाह पर रोक लगानी चाहिए।
(12) बालकों और व्यक्तियों को जल प्रदूषण, इसके हानिकारक प्रभावों और नियंत्रण करने के तरीकों के सम्बन्ध में शिक्षा दी जानी चाहिए।
(13) शिक्षा का उद्देश्य ‘स्वस्थ पर्यावरण का निर्माण’ निर्धारित किया जाना चाहिए।
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