विद्यालय के दूषित वातावरण का बालक के सीखने पर प्रभाव को समझाइये ।
विद्यालय के दूषित वातावरण का बालक के सीखने पर प्रभाव को समझाइये ।
उत्तर— विद्यालय के दूषित वातावरण का बालक के स्वास्थ्यपर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं—
(1) विद्यालय का अस्वास्थ्यप्रद वातावरण – विद्यालय का अस्वास्थ्यप्रद वातावरण बालकों के स्वास्थ्य को बिगाड़ देता है। पाठशाला भवन की अस्वास्थ्यकारक स्थिति, कक्षा-कक्षों की गन्दगी, उनमें प्रकाश तथा हवा के आने-जाने के लिए खिड़कियों और रोशनदानों की कमी, अनुपयुक्त फर्नीचर, टाट पट्टी, बिना पीठ की बैंचों, क्रीड़ास्थल एवं क्रीड़ा सामग्री का अभाव, अनुपयुक्त और अरुचिकर पाठ्यक्रम, अध्यापकों का भय, अनुपयुक्त शिक्षण पद्धतियाँ मूत्रालय और शौचालय का अभाव आदि ऐसे कारण हैं, जिनका प्रभाव बालकों के स्वास्थ्य पर बिलकुल अहितकर होता है, पाठशाला के भीतर उन्हें अनेक प्रकार के प्रतिबन्धों का सामना करना पड़ता है। ये प्रतिबन्ध उसके शारीरिक विकास तथा स्वास्थ्य को कुण्ठित कर देते हैं ।
(2) विद्यालय में कक्षा-कक्षों की दुरावस्था — विद्यालयों में छात्रों की संख्या बढ़ती जाती है और कक्षाओं में बालकों को बैठने का स्थान उपलब्ध नहीं होता, कमरों की अशुद्ध वायु, उनमें सूर्य के प्रकाश की कमी, कार्य से अरुचि, थकान पैदा कर देती है। अनुचित आसनों से जो गलत ढंग के फर्नीचर के कारण छात्रों को अपनाने पड़ते हैं, सीना संकुचित रह जाता है, श्वास प्रक्रिया में बाधा पहुँचती है।
(3) विद्यालय का अनपुयुक्त पाठ्यक्रम – अध्यापक का भय बालकों में मानसिक तनाव पैदा कर देता है। यदि पाठ्यक्रम अरुचिकर हुआ तो विद्यालय से उन्हें घृणा होने लगती है। विद्यालय की परीक्षाओं का भी उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है ।
(4) विद्यालय का समय और भोजन – प्राय: भारत में गर्मी की ऋतु में 7.30 बजे से 12 बजे तक, शीत ऋतु में 10 से 4 बजे तक विद्यालयों का समय होता है। गर्मी की ऋतु में छात्र न तो प्रातः काल का नाश्ता कर पाता है और न दोपहर के समय भोजन ही। सर्दी के दिनों में प्रात: 9 बजे खाना खाने के बाद शाम को 5-6 बजे भोजन मिलता है। इस प्रकार भोजन के कुसमय मिलने से बच्चों का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। यदि विद्यालय मध्याह्न कालीन भोजन की व्यवस्था नहीं है तो दोनों समय के भोजन के बीच लम्बा समय होने के कारण पाचन खराब हो जाता है।
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