पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के परस्पर सम्बन्ध का विवेचन कीजिए।
पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के परस्पर सम्बन्ध का विवेचन कीजिए।
अथवा
वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण से होने वाले विभिन्न रोग कौनकौन से हैं ? विस्तारपूर्वक समझाइये।
अथवा
टिप्पणी- प्रदूषण से रोग।
अथवा
पर्यावरण प्रदूषण से होने वाले रोगों का नामोल्लेख कीजिये।
अथवा
मानव जीवन पर प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ता है ? स्पष्ट कीजिये ।
अथवा
मानव समाज एवं स्वस्थ पर्यावरण के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिये ।
उत्तर— पर्यावरणीय स्वास्थ्य (Environmental Health)— पर्यावरणीय स्वास्थ्य, सार्वजनिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित शाखा है, जो प्राकृतिक एवं मानव निर्मित वातावरण में स्वास्थ्य से सम्बन्धित मुद्दों / पहलुओं का अध्ययन करती है। पर्यावरणीय स्वास्थ्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्वास्थ्य और सुरक्षा शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) ने पर्यावरणीय स्वास्थ्य को निम्न प्रकार परिभाषित किया है—
“मानव स्वास्थ्य और रोग के पहलू जो वातावरण में उपस्थित विभिन्न कारकों द्वारा निर्धारित होते हैं, पर्यावरणीय स्वास्थ्य के अन्तर्गत आते हैं।” यह विज्ञान वातावरण में कारकों को नियंत्रित करने के ज्ञान को निर्धारित करता है।
पर्यावरणीय स्वास्थ्य में मुख्यतः निम्नलिखित चिन्ताओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है—
(i) घर के अन्दर एवं बाहर की हवा की गुणवत्ता ।
(ii) पर्यावरण में फैले तम्बाकू जैसे विषैले पदार्थों की धुँआ ।
(iii) घटिया आवास, जेलों की कमी एवं उनका निरीक्षण |
(iv) सीसे जैसे विषैले पदार्थों की रोकथाम ।
(v) सेप्टिक टैंक प्रणालियों और अपशिष्ट जल उपचार संयंत्रों और साइट पर अपशिष्ट जल निपटान प्रणाली, सहित तरल अपशिष्ट निपटान ।
(vi) स्मार्ट विकास सहित भूमि उपयोग की योजना ।
(vii) चिकित्सा अपशिष्ट प्रबन्धन और निपटान तथा शोर प्रदूषण नियंत्रण |
(viii) जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर उसका प्रभाव ।
(ix) आपदा तैयारियाँ और प्रतिक्रिया ।
(x) खाद्य सुरक्षा, कृषि, परिवहन, खाद्य प्रसंस्करण, थोक और खुदरा वितरण, ब्रिकी।
(xi) खतरनाक अपशिष्ट प्रबन्धन, भूमिगत भण्डारण टैंक से लीक की रोकथाम और पर्यावरण के लिए खतरनाक पदार्थों की रिलीज की रोकथाम एवं इस स्थितियों में उत्पन्न आपात स्थितियों से सामना सहित खतरनाक सामग्री प्रबन्धन ।
पर्यावरणीय स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाएँ, पर्यावरणीय स्वास्थ्य सेवाओं के अन्तर्गत आती हैं, जिन्हें W.H.O द्वारा निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है—
“वे सेवाएँ जो निगरानी और नियंत्रण गतिविधियों के माध्यम से पर्यावरण नीतियों को लागू करती हैं। पर्यावरण के मानकों के सुधार को बढ़ावा देने और पर्यावरण के अनुकूल व स्वस्थ प्रौद्योगिकियों और व्यवहारों को प्रोत्साहित करने की भूमिका निभाती हैं। पर्यावरणीय स्वास्थ्य सेवाएँ कहलाती है।”
इन सेवाओं से सम्बन्धित कार्मिक पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रैक्टिशनर्स, सैनिटेरियन्स, सार्वजनिक स्वास्थ्य निरीक्षक, पर्यावरणीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ या पर्यावरण स्वास्थ्य अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं ।
मानव समाज पर पर्यावरणीय स्वास्थ्य का प्रभाव (Effect of Environmental Health on Human Society) – पर्यावरणीय स्वास्थ्य (Environmental Health) ने मानव समाज के जीवन स्तर की गुणवत्ता को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। पर्यावरणीय स्वास्थ्य के माध्यम से ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों, यथा— स्वास्थ्य, स्वच्छता, प्रदूषण शिक्षा, की रोकथाम आदि को उन्नत किया गया है ।
पर्यावरणीय स्वास्थ्य के द्वारा ही खाद्य सुरक्षा को निश्चित किया गया है जिसके माध्यम से मानव समाज को भुखमरी एवं कुपोषण से बचाया जा सका है। बढ़ते हुए औद्योगीकरण ने पर्यावरण को व्यापक स्तर पर प्रदूषित किया है, जिसके कारण मानव समाज को विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसके निराकरण में पर्यावरणीय स्वास्थ्य द्वारा अहम भूमिका का निर्वाह करते हुए प्रदूषण के स्तर को कम किया गया है।
जल प्रदूषण से होने वाले रोग (Diseases caused by water pollution) — जल मानव जीवन के लिए अनिवार्य तत्त्व है। यह हमारे शरीर के विभिन्न कार्यों; यथा— पाचन, उपापचय एवं अपशिष्ट पदार्थों के उत्सर्जन में अत्यन्त आवश्यक है। आज विश्व में जल की कमजोर गुणवत्ता एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है ।
जल प्रदूषण के कारण विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं, जिसमें पेट सम्बन्धी बीमारियाँ, जनन सम्बन्धी समस्याएँ, मनोरोग एवं कैन्सर जैसे गम्भीर रोग शामिल हैं। जल प्रदूषण से होने वाले प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं—
(1) हैजा (Cholera) — यह जल प्रदूषण से होने वाला प्रमुख रोग है, जो कि जीवाणु विब्रियो कॉलेरा (Bibro cholera) के छोटी आंत में पहुँचने से है । इसके प्रमुख लक्षणों में दस्त एवं उल्टी का तीव्र गति से होना है। यह रोग पीने के पानी या खाद्य पदार्थ के प्रदूषित होने के साथ-साथ, रोगी के अवशिष्ट पदार्थों में फैलता है । यह मुख्यतः भीड़ वाले क्षेत्रों, मेलों, त्यौहारों आदि के दौरान फैलता है। यह मुख्यतः उन स्थलों में पाया जाता है जहाँ अवशिष्ट पदार्थों के निष्कासन की उचित व्यवस्था नहीं होती है। इस रोग के फैलने का मुख्य कारण मक्खी हैं, जो भोजन व अन्य खाद्य पदार्थों पर बैठकर हैजे के कीटाणुओं को वहाँ पर छोड़ देती है। ये भोजन व जल के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं ।
(2) हेपेटाइटिस ‘A’– हेपेटाइटिस ‘A’ जल प्रदूषण से होने वाला गम्भीर रोग है। यह हेपेटाइटिस ‘A’ वाइरस से होता है। जो यकृत को संक्रमित करता है । इससे बुखार, थकान, असहनीय दर्द, डायरिया, पीलिया, भार में कमी एवं तनाव आदि हो जाते हैं।
(3) अमीबीयस — यह जल प्रदूषण से होने वाला एक प्रमुख रोग है, जो कि ‘अमीबा’ नामक जीवाणु से होता है। इसमें रोगी को उल्टीदस्त आदि होते हैं ।
(4) पेचिश (Dysentery) — पेचिश जल प्रदूषण से होने वाला सामान्य रोग है। इससे बुखारं, उल्टी, पेट में दर्द तथा दस्त के साथ खून आते हैं ।
(5) मलेरिया — मलेरिया भी जल प्रदूषण से होने वाला गम्भीर रोग है, जो कि परजीवी के द्वारा होता है। इसका प्रसार करने में मादा एनोफिलिज मच्छर की विशेष भूमिका होती है। ये मच्छर जल में पनपते हैं। जब ये मच्छर किसी व्यक्ति को काटते हैं तो वह मलेरिया से ग्रसित हो जाता है।
(6) फ्युरोसिस – यह एक गम्भीर हड्डी रोग है, जो कि भूमिजल में प्राकृतिक रूप से फ्लोराइड की मात्रा अत्यधिक होने से होता है।
(7) टायफाइड बुखार – यह एक जीवाणु सङ्क्रमित सामान्य बीमारी है, जो कि संदूषित भोजन एवं जल के अन्तर्ग्रहण से होती है।
(8) पोलियो — पोलियो वाइरस से होने वाला एक गम्भीर रोग है, जो कि जल प्रदूषण का परिणाम है। यह बच्चों को संक्रमित करता है जिससे उनके पैरों में लकवा आ जाता है। इसका वाइरस तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुँचाता है जिसका परिणाम कमजोरी एवं लकवे का आना है।
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