जल संरक्षण की विधियाँ बताइये ।

जल संरक्षण की विधियाँ बताइये ।

उत्तर—  जल संसाधनों का संरक्षण — जल मानव, जीव तथा वनस्पति जगत की एक प्राथमिक आवश्यकता है। वर्षा से प्राप्त जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तथा शुद्ध हो । विश्व में उपलब्ध जल स्रोतों का समुचित उपयोग हो तथा शुद्ध जल की उपलब्धि भविष्य में भी चलती रहे, इसके लिए जल संरक्षण की विधियों को अपनाया जाना आवश्यक है। जल संसाधनों के संरक्षण के लिए निम्न विधियों को अपनाया जा रहा है—
(1) जल के उचित वितरण की व्यवस्था – संसार में जल की उपलब्धि अत्यधिक असमान है, यह तथ्य प्रत्येक देश एवं प्रदेश के लिए भी सही है, अर्थात् कुछ क्षेत्रों में जल अतिरिक्त मात्रा में उपलब्ध है तो अन्य क्षेत्रों मे अपर्याप्त जल है। इस कारण उचित जल वितरण आवश्यक है। कम आवश्यकता वाले क्षेत्रों में अधिक आवश्यकता वाले क्षेत्रों को जलापूर्ति करके जल संकट को कम किया जा सकता है। इसलिए सतह जल संग्रह स्थलों का निर्माण करके अतिरिक्त जल का अभावग्रस्त क्षेत्रों में एकत्रित करके आपूर्ति की जा सकती है।
(2) भूमिगत जल का विवेकपूर्ण उपयोग – विश्वस्तर पर भूजल कुल जल आपूर्ति का 25 प्रतिशत पूरा करता है, शेष 75 प्रतिशत नदियों, झीलों आदि सतही जलस्रोतों से होती है। भूजल की उपलब्ध मात्रा के अनुमाप में इसकी माँग निरन्तर बढ़ती जा रही है। इस कारण भूजल की मात्रा कम होती जा रही है। भू-जल का दोहन एक बार होने के उपरान्त पुनः पूर्ति काफी लम्बे समय में हो पाती है। अतः भूजल का दोहन पुनः पूर्ति के अनुपात में ही किया जाना चाहिए।
(3) वर्षा के जल प्रवाह को नियंत्रित कर संग्रहीत करना –वर्षा के जल प्रवाह को नियंत्रित करके संग्रहीत करना जल संरक्षण एवं प्रबन्धन की प्रमुख विधि है। अन्यथा वर्षा के जल का अधिकांश भाग महासागरों में बेकार बहकर चला जाता है। वर्षा के द्वारा धरातल पर बहने वाला जाल हमेशा सागरीय भागों में जाने को तत्पर रहता है। इसको झीलों तथा कृत्रिम झीलों तथा कृत्रिम जलाशयों में बाँध बनाकर संग्रहीत करना आवश्यक होता है। जलाशयों से जल की कमी वाले क्षेत्रों में पाइप लाइनों के माध्यम से इसे भेजा जाना चाहिए तथा शुष्क मौसम में नदी के जल की सतत् आपूर्ति कायम रखने के लिए जलाशयों में जल का उपयोग करना चाहिए। जलाशयों का निर्माण केवल जल की सतत् आपूर्ति बनाये रखने में ही सहायक नहीं होता अपितु इससे वर्षा ऋतु में आने वाली बाढ़ों के प्रकोप को भी कम किया जा सकता है। अतः आवश्यकतानुसार विभिन्न स्थानों पर जलाशयों का निर्माण जल संरक्षण एवं प्रबन्धन का महत्त्वपूर्ण उपागम है।
(4) वृक्षारोपण करना — विस्तृत क्षेत्र पर वृक्षारोपण तथा घासों को लगाना चाहिए जिससे भूमि की जल अवशोषित करने की क्षमता में वृद्धि होकर भूमिगत जल के भण्डार में वृद्धि हो जाती है। पर्वतीय भागों में वनों की उपस्थिति जल प्रवाह को मन्द करती है जिससे भूमि का कटाव रुकता है। नदियों में अवसादों की मात्रा कम पहुँचती है, मैदानी भागों में बाढ़ों का प्रकोप कम होता है तथा जलाशयों में अवसात होने की दर भी कम हो जाती है ।
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