चिन्तनशील अभ्यासकर्ता के रूप में शिक्षक की भूमिका बताइये ।

चिन्तनशील अभ्यासकर्ता के रूप में शिक्षक की भूमिका बताइये । 

                                                  अथवा
किस प्रकार से शिक्षक एक चिन्तनशील पेशेवर की भूमिका अदा कर सकता है ? समझाइये ।
                                                  अथवा
एक चिन्तनशील व्यवसायी के रूप में शिक्षक की भूमिका का वर्णन कीजिये ।
उत्तर – चिन्तनशील अभ्यासकर्ता के रूप में शिक्षक की भूमिका–चिन्तनशील अभ्यासकर्ता के रूप में शिक्षक की भूमिका निम्नलिखित प्रकार से होती है—
(1) शिक्षक अभ्यास पुस्तिका का प्रयोग करना – शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह समय-समय पर शिक्षक अभ्यास पुस्तिका का प्रयोग अवश्य करे। ऐसा करने से शिक्षक के चिन्तन में वृद्धि होती हैं तथा शिक्षण में सुधार होता है। शिक्षक अभ्यास पुस्तिका का समय-समय पर अद्यतन किया जाता है जिससे शिक्षक नवीन विधियों, विचारों एवं तर्कों से अवगत होता है। इससे शिक्षक जब शिक्षण कार्य करता है तो उसका प्रभाव उसके शिक्षण पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
(2) पत्रकारिता के सिद्धान्तों का प्रयोग करना – शिक्षकों को चाहिए कि वह विभिन्न विषयों के लेखों को लिखने के लिए छात्रों द्वारा पत्रकारिता के सिद्धान्त का पालन कराएँ । एक पत्रकार विभिन्न प्रकार की घटनाकों को एकत्रित करता है । इसके साथ ही वह उस घटना से जुड़े विभिन्न पहलुओं को सभी के समक्ष प्रस्तुत करता है। इससे छात्र की विभिन्न प्रश्नों के उत्तर लिखने में अपने को सक्षम बना सकते हैं ।
(3) समस्या का समाधान करना – प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में समस्याएँ अवश्य आती है। चाहे वह शिक्षक हो, छात्र हो या अन्य कोई व्यक्ति परन्तु प्रत्येक की समस्याएँ भिन्न-भिन्न होती है। छात्र का अध्ययन से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शिक्षक का ये दायित्व है कि वह छात्रों की अध्ययन से जुड़ी विभिन्न समस्याओं के समाधान का उपाय उन्हें बताए जिससे वह प्रत्येक स्थिति में समस्याओं के समाधान को खोज सके। इससे वह स्वयं भी प्रत्येक स्थिति में समस्या के समाधान के चिन्तन के लिए बाध्य होता है ।
(4) कार्यों का पुनर्मूल्यांकन परिवार एवं मित्रों से कराना– शिक्षक को समय-समय पर अपने शैक्षिक कार्यों के स्व- मूल्यांकन के साथ-साथ अपने कार्यों का मूल्यांकन अपने परिवार के सदस्यों एवं मित्रों से भी कराते रहना चाहिए। इससे शिक्षक को अपनी अच्छाइयों एवं कमियों का पता चल जाता है। शिक्षक के कार्यों का मूल्यांकन प्रत्येक व्यक्ति नहीं करना चाहता है क्योंकि शिक्षक को समाज में एक सम्मानित स्थान प्राप्त होता है और लोग उसकी कमियों को उजागर नहीं करना चाहते हैं। ऐसे में परिवार के सदस्य एवं मित्र एक सकारात्मक भूमिका उसके कार्यों के मूल्यांकन में निभाते हैं। शिक्षक द्वारा छात्रों को भी उनके कार्यों के मूल्यांकन के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए तथा उन्हें मूल्यांकन के तौर-तरीके सिखाने चाहिए।
(5) प्रोजेक्ट की लिखित रिपोर्ट बनाना – शिक्षक को प्रत्येक प्रोजेक्ट की लिखित रिपोर्ट अवश्य बनानी चाहिए तथा प्रोजेक्ट की बारीकियों को लिखित रूप में स्पष्ट करना चाहिए। शिक्षक को स्वयं के द्वारा तैयार की गई विभिन्न प्रोजेक्ट की लिखित प्रतिलिपि दिखानी चाहिए। इससे छात्र को प्रोत्साहन मिलता है तथा वह भी प्रोजेक्ट की रिपोर्ट स्वयं बनाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। इससे छात्र सैद्धान्तिक ज्ञान को व्यावहारिक रूप में सीखते हैं और प्रोजेक्ट के समस्त पहलुओं को समझते हैं।
(6) शिक्षक का अपने मार्गदर्शन में कार्य कराना – शिक्षक को छात्रों में चिन्तनशील अभ्यास को बढ़ावा देने के लिए अपने मार्गदर्शन में कार्य कराना चाहिए। इससे छात्रों को कार्य के दौरान आने वाली विभिन्न समस्याओं का समाधान सरलता से हो जाता है तथा वे अपना कार्य करने को प्रोत्साहित होते हैं। इसके अतिरिक्त अलग-अलग मुद्दों पर अपनी बात रखने तथा उसकी बारीकियों से अवगत होते हैं जिससे उनमें नए ज्ञान का संचार होता है।
(7) मस्तिष्क उद्वेलन का प्रयोग करना – इस उपागम (विधि) में छात्रों को विभिन्न शैक्षिक विषयों की समस्याओं को उन्हें दिया जाता है फिर उन्हें उस पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए कहा जाता है। प्रत्येक छात्र को तर्क-वितर्क के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इससे छात्रों में विश्लेषणात्मक एवं आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है तथा उनके मस्तिष्क का विकास भी तीव्र गति से होता है।
(8) स्वानुभवों का लेखांकन करना – एक अच्छा शिक्षक वह होता है जो अपने अनुभवों को छात्रों के साथ साझा करे । इससे छात्र व्यावहारिक जीवन में उन गलतियों से बच जाते हैं जो एक शिक्षक को कार्य के दौरान हुई थी । इसके साथ अन्य लोगों एवं अनौपचारिक एवं दूरस्थ शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों के मध्य तक अपने अनुभवों को पहुँचाने के लिए शिक्षक को अपने अनुभवों का लेखांकन कराना चाहिए या फिर स्वयं लेखांकन कर उसका प्रकाशन करना चाहिए। लेखांकन के माध्यम से शिक्षक अपने अनुभवों के साथ रोचक उदाहरण देकर तथ्यों को स्पष्ट कर सकता है जिससे छात्र उसे पढ़ने में रुचि ले ।
(9) कक्षा-कक्ष के कार्यों का वीडियो टेप बनाना – शिक्षक को चाहिए कि कक्षा-कक्ष के कार्यों की वीडियो रिकार्डिंग करवाए। इससे शिक्षक को अपने शिक्षण में आवश्यक सुधार करने का अवसर मिलेगा। इसके साथ ही वह छात्रों की प्रतिक्रिया को भी आसानी से जान सकेगा एवं छात्रों की अन्य गतिविधियों जैसे—शिक्षण के दौरान उनका ध्यान कहाँ रहता है, छात्र आपस में बातचीत तो नहीं कर रहे थे, छात्र की विषय-वस्तु (Topic) के प्रति क्या प्रतिक्रिया है, इत्यादि । इससे शिक्षक शिक्षण विधियों, विषय-वस्तु एवं उदाहरणों को नए रूप में देकर शिक्षण में रोचकता को बढ़ाते हैं तथा छात्रों को भी अधिगम में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं ।
(10) कार्यों का रेखाचित्रण कराना – शिक्षक का ये दायित्व है कि छात्रों के चिन्तनशील अभ्यास के लिए विभिन्न शैक्षिक विषयों (Topic) का रेखाचित्रण बनवाएँ। इससे छात्रों को विषय-वस्तु के सम्पूर्ण तत्वों को समझना आसान हो जाता है। इसके साथ ही वे प्रत्येक विषय-वस्तु पर विस्तृत रूप से सोचने के लिए बाध्य होते हैं। इसके साथ ही वे विभिन्न अवयवों में सामंजस्य स्थापित करना भी सीख जाते हैं ।
(11) पोर्टफोलियो बनवाना – छात्रों को पोर्टफोलियो बनाना शिक्षक द्वारा सिखाया जाना चाहिए। इससे वे छात्रों को विभिन्न छात्रों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इससे छात्र सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ ही व्यावहारिक ज्ञान को सीखते हैं और साथ ही ज्ञान की एक नई विधा के बारे में जानते हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि एक शिक्षक विभिन्न माध्यमों के प्रयोग द्वारा छात्रों में चिन्तनशील अभ्यास को बढ़ावा दे सकता है। इससे छात्रों का ज्ञानात्मक एवं संवेगात्मक विकास होता है और वे अधिगम के लिए प्रोत्साहित होते हैं।
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