विद्यालयीकरण पहचान निर्माण की प्रक्रिया को किस प्रकार प्रभावित करता है? स्पष्ट कीजिए ।
विद्यालयीकरण पहचान निर्माण की प्रक्रिया को किस प्रकार प्रभावित करता है? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर— विद्यालयीकरण का पहचान निर्माण की प्रक्रिया पर प्रभाव–मानव एक सामाजिक प्राणी है। मानव का सामाजिक बना लम्बी प्रक्रिया है। बालक जन्म लेते ही समाज में आता है व अपनी लाई जन्मजात शक्तियों को सामाजिक वातावरण में विकसित करके सामाजिक बनने का प्रयास करता है। जब बालक जन्म लेता है तो उसमें सामाजिकता का कोई लक्ष्य दिखाई नहीं देता, परन्तु शनैः शनैः वह सामाजिक वातावरण से प्रभावित होने लगता है व उसका समाजीकरण होता है तथा वह स्वयं की पहचान स्थापित करता है।
विद्यालयों में बालक के समाजीकरण को बौद्धिक आधार प्रदान किया जाता है। वास्तव में परिवार, पास-पड़ोस, समवय समूहों, जाति व समुदाय में बच्चों का जो समाजीकरण होता है, उसे विद्यालय में बौद्धिक आधार प्रदान कर उचित दिशा व स्थायित्व देते हैं। विद्यालयों में भिन्नभिन्न परिवारों, जातियों, धर्मों, आर्थिक स्तर व भिन्न सामाजिक स्तर के बच्चे एक साथ शिक्षा ग्रहण करते हैं। इन बच्चों की भाषा और व्यवहार प्रतिमानों में कुछ भिन्नता भी होती है। विद्यालय बालक को ऐसा पर्यावरण प्रदान करते हैं कि यहाँ बच्चे विद्यालय की सामूहिक क्रियाओं में भाग लेते हुए समाज की सर्वमान्य भाषा व आचरण की सर्वमान्य विधियाँ सीखते हैं व किसी भी समाज में समायोजन करने योग्य हो जाते हैं। जो बच्चे विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त नहीं करते, उनका समाजीकरण अपेक्षाकृत संकीर्ण रूप से होता है।
विद्यालय बालक के समाजीकरण की महत्त्वपूर्ण संस्था है । विद्यालय में बालकों को शिक्षा तीन प्रकार से प्रदान की जाती है—
(1) श्रेय प्रदान करके – विद्यालय को लघु समाज कहा जाता है। यह शिक्षा प्रदान करने का सुगठित तन्त्र है । यहाँ पर शिक्षकों द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाता है तथा बालकों द्वारा अच्छे कार्य किये जाते हैं । जब बालक अच्छे कार्य करते हैं तो इसका श्रेय शिक्षक व छात्र दोनों को ही जाता है, क्योंकि शिक्षक सिखाते हैं व बालक सीखते हैं । अतः श्रेय दोनों को ही दिया जाना चाहिए । श्रेय प्रदान करते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है जो कि निम्नलिखित हैं—
(i) परिस्थितियों के अनुकूल श्रेय प्रदान किये जाएँ ।
(ii) श्रेय प्रदान करने में पक्षपात नहीं होना चाहिए।
(iii) रूढ़ व संकीर्ण मानसिकता का प्रदर्शन न किया जाए ।
(iv) अध्यापकों को सभी बालकों को उचित प्रदर्शन हेतु अच्छा पुरस्कार प्रदान करना चाहिए ताकि बालक उचित श्रेय प्राप्त कर सकें।
(2) अर्जित करके – विद्यालय में प्रत्येक बालक के द्वारा ज्ञान अर्जित किया जाता है। यह ज्ञान प्रदान करने में शिक्षकों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है तथा ज्ञानार्जन का कार्य छात्रों द्वारा किया जाता है। विद्यालय में जाकर छात्र एक सामाजिक संस्था के साथ जुड़ता है । यह संस्था छात्रों को उनके भविष्य से जोड़ती है। अतः यहाँ यही संस्था छात्रों को ज्ञान प्रदान करके आगे बढ़ाने के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। इस प्रकार शिक्षकों के द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाता है व छात्रों द्वारा अर्जित किया जाता है।
(3) विकसित करके – ज्ञान प्राप्त करके उसका विकास करना अति आवश्यक होता है। छात्रों द्वारा ज्ञान प्राप्त करने के साथ उसका प्रयास किया जाता है। यह प्रयास ही ज्ञान को विकसित करता है। ज्ञान विकसित करने में “करके सीखो” की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। बालकों के अन्दर विकसित करने की भावना को निम्नलिखित प्रकारसे बढ़ावा दिया जाता है—
(ii) बालकों को कोई कार्य कठिन लगे तो उससे कहें कि वह कोशिश एक बार और करें, इससे बालक प्रयासरत होंगे। विद्यालय में शिक्षक छात्रों को नकारात्मक सम्बोधन न दें; जैसे—आलसी, मूर्ख, निकम्मा आदि ।
(iii) प्रत्येक बालक को यह बताएँ कि उसकी खास प्रवृत्ति क्या है, ताकि बालक प्रेरित हो ।
(iv) बच्चे के गलती करने पर उसे अहसास न दिलाएँ कि शिक्षक उससे प्यार नहीं करते, वरन् बच्चों से बात करते समय ‘न’ शब्द से दूर रहें, किसी की आलोचना न करें।
प्रत्येक बालक को अभिप्रेरित करते रहें।
उपर्युक्त सभी कार्य करने से छात्र प्रेरित होकर कार्यों को करेंगे तथा उनमें अच्छी प्रवृत्तियाँ विकसित होंगी व उसका समाजीकरण होगा।
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