आत्मबोध से क्या तात्पर्य है ?
आत्मबोध से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर— आत्मबोध से तात्पर्य आत्मबोध अथवा स्वयं को समझने से तात्पर्य उस तथ्य से है जिसमें व्यक्ति यह समझता है कि वह कौन है ? वह क्या है ? वह क्यों है? आत्म बोध या स्वयं को समझना एक तरह का दर्पण होता है जिसमें व्यक्ति स्वयं के द्वारा निर्वाहित भूमिकाओं को दूसरों के साथ सम्बन्धों तथा स्वयं के प्रति दूसरों के द्वारा की गयी प्रतिक्रियाओं के आधार पर मूलरूप का प्रतिबिम्ब बनाता है।
आत्मबोध व्यक्ति के व्यक्तित्व का भाग होता है जिससे वह सीधे रूप से प्रभावित होता है। उदाहरण स्वरूप यदि व्यक्ति का आत्मबोध धनात्मक होता है तो व्यक्ति में आत्म विश्वास आत्म-सम्मान और अपने आपको यथार्थपूर्ण सामर्थ्य में मूल्यांकित करने की क्षमता विकसित होती है जिसके परिणामस्वरूप ही व्यक्ति में उत्तम सामाजिक समायोजन की प्रवृत्ति विकसित होती है। किन्तु जब आत्मबोध निषेधात्मक होता है तो व्यक्ति में हीनता, अपर्याप्तता का भाव जाग्रत होता है जिसके द्वारा व्यक्ति का वैयक्तिक एवं सामाजिक समायोजन प्रभावित होता है।
आत्मबोध से बालक में यह भाव विकसित होता है कि यद्यपि व्यक्ति व वातावरणीय वस्तुएँ उसके भीतर नहीं है फिर भी वह इन्हीं का अंग है। जैसे—बालक द्वारा मेरी माँ, मेरे पापा मेरा घर आदि कहना आत्म विस्तार का उदाहरण है। आत्म बोध में बालक की स्वयं के प्रति एक प्रकार की छवि का निर्माण होता है स्वयं को समझने से बालक के अन्तःकरण में यह भाव विकसित होता है कि वह कैसा व्यक्ति बनना चाहता है। युक्तिगत समायोजन के रूप में बालकों में समस्या समाधान व्यवहार तर्क व विवेक शक्ति का विकास होता है। इनके अनुसार ही बालक में नैतिकता एवं सामाजिक अनुरूपता का भाव विकसित होता है। प्रत्येक आत्मबोध के दो पक्ष होते हैं—
(1) शारीरिक आत्मबोध
(2) मनोवैज्ञानिक आत्मबोध
शारीरिक आत्मबोध में वे समस्त रूप प्रत्यय निहित होते हैं जिन्हें व्यक्ति अपने स्वरूप संरचना, रंग, रूप, यौन के आधार पर शरीर का महत्त्व समझता है तथा जिसके अन्तर्गत अन्य लोगों के द्वारा उनके शरीर को प्राप्त होने वाली प्रतिष्ठा आदि भी सम्मिलित होती है।
मनोवैज्ञानिक पक्ष के अन्तर्गत वे समस्त तत्त्व निहित होते हैं, जो व्यक्ति की अपनी क्षमता एवं अक्षमता योग्यता तथा अयोग्यता के साथसाथ दूसरे लोगों से सम्बन्ध के आधार पर होते हैं। प्रारम्भ में दोनों पक्षों का निर्माण अलग-अलग होता है किन्तु व्यक्तित्व विकास के साथ ही दोनों आत्म सम्प्रत्ययों का एकीकरण हो जाता है।
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