सकारात्मकता से क्या आशय है ? सकारात्मकता का विकास किस प्रकार किया जा सकता है ? वर्णित कीजिए।
सकारात्मकता से क्या आशय है ? सकारात्मकता का विकास किस प्रकार किया जा सकता है ? वर्णित कीजिए।
उत्तर— सकारात्मकता – स्वयं को विकसित करने के लिए सकारात्मकता का होना आवश्यक है। सकारात्मक सोच जीवन के कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सामान्य तौर पर सकारात्मक सोच व्यक्ति को हमेशा खुश रखती है और सफलता की ओर ले जाती है । एक अध्यापक को अपने विद्यार्थी के अन्दर ऐसी आदतों का विकास करना चाहिए जिनसे वह सकारात्मक विचार वाला बन सके।
सोच, विचार या नजरिया किसी व्यक्ति वस्तु या घटना के पक्ष या विपक्ष में भावना की अभिव्यक्ति है। दूसरे शब्दों में सोच किसी व्यक्ति या वस्तु के सोचने या विचार करने का स्थायी तरीका है।
सकारात्मकता का विकास—
सकारात्मकता सोच सफल, स्वस्थ एवं सुमधुर जीवन का पहला और आखिरी मंत्र है । यह अकेला ऐसा मंत्र है, जिससे न केवल व्यक्ति व समाज की वरन् समग्र विश्व की समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। इसलिए इसे सर्व कल्याणकारी मंत्र कहते हैं। सकारात्मक सोच शान्ति, सन्तुष्टि, तृप्ति और प्रगति का प्रथम पहलू है। सकारात्मक सोच ही मनुष्य का पहला धर्म है और यही उसकी आराधना का बीज मंत्र है ।
संकारात्मकता से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई पाप नहीं, सकारात्मकता से बढ़कर कोई धर्म नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई अधर्म नहीं । मानसिक शान्ति और तनाव मुक्ति की दवा है— सकारात्मक सोच । सकारात्मक सोच का अभाव ही मनुष्य की विफलता का मूल कारण है। अतः इसका विकास आवश्यक है। सकारात्मकता के विकास के लिए विशेष रूप से निम्नलिखित उपाय करना चाहिए :
(1) श्रवण – सकारात्मकता का एक महत्त्वपूर्ण घटक श्रव्य भी है। हमारे मनोवैज्ञानिकों ने भी सुनने के महत्त्व को स्वीकार किया है और कहा है कि प्रतिदिन 30 से 60 मिनट तक सुनना व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक बनाने में विशेष रूप से उपयोगी होता है।
(2) ध्यान – सकारात्मकता के विकास के लिए किसी कार्य, स्थिति तथा वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है। सकारात्मकता ही व्यक्ति को नकारात्मक विचारों से दूर करती है। सामान्यत: व्यक्ति समाधान की अपेक्षा समस्याओं पर अधिक ध्यान केन्द्रित करता है जिसके कारण व्यक्ति में नकारात्मक पक्षों की वृद्धि तथा सकारात्मक पक्षों की हानि होती है। नकारात्मक पक्षों की वृद्धि से व्यक्ति में तनाव उत्पन्न हो जाता है। अत: इससे बचने के लिए व्यक्ति को सकारात्मक पक्षों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए अर्थात् समस्याओं की अपेक्षा समाधान पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
(3) पठन– सकारात्मकता के विकास के लिए व्यक्ति को उत्तम साहित्य तथा सकारात्मक लेखों को पढ़ना चाहिए। पठन व्यक्ति के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है जो कि व्यक्ति को अभिप्रेरित कर प्रोत्साहित करता है। पठन एक प्रकार से मस्तिष्क एवं विचारों का पोषण है जो व्यक्ति को सकारात्मक बनाता है तथा प्रसन्नता देता है।
(4) लक्ष्य — अधिकतर व्यक्तियों का अपने जीवन में किसी प्रकार का कोई लक्ष्य नहीं होता है। उन्हें नहीं पता होता कि उन्हें क्या करना है, कहाँ जाना है आदि। ऐसे लोगों का जीवन बिना नाविक के नाव के समान होता है जिसकी निश्चित दिशा नहीं होती है। ऐसे लोगों के जीवन में सकारात्मकता का कोई स्थान नहीं होता है अतः सकारात्मकता के विकास के लिए व्यक्ति को अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए। इन लक्ष्यों का निर्धारण सदैव वास्तविकताओं के परिप्रेक्ष्य में ही करना चाहिए तथा लक्ष्यों के लिए निश्चित समय भी निर्धारित होना चाहिए। इससे व्यक्ति के जीवन को एक सकारात्मक दिशा भी प्राप्त होती है जो कि सकारात्मकता की वृद्धि में विशेष रूप से सहायक होती है।
(5) आदत – हमारे जीवन में सकारात्मक पक्षों के विकास में आदतें भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि स्वयं के भीतर सदैव अच्छी आदतें ही विकसित करनी चाहिए क्योंकि तभी हम अपने जीवन में सकारात्मक पक्ष को मजबूत कर सकते हैं।
(6) धैर्य – हमारे जीवन में धैर्य का भी अत्यधिक महत्त्व है धैर्य के जीवन के स्वप्नों तथा लक्ष्यों की ओर केन्द्रित कर हमारे जीवन की सकारात्मकता में अद्भुत वृद्धि करता है। अधिकतम व्यक्ति प्रत्येक कार्य को बगैर सोचे-समझे शीघ्रता में करते हैं एवं उसके परिणामों का आंकलन नहीं करते हैं, फलस्वरूप उनके काम बिगड़ जाते हैं। अतः व्यक्ति को अपने प्रत्येक कार्य धैयपूर्वक विचार विमर्श करके पूर्ण नियोजन के साथ करने चाहिए ताकि उसके जीवन में सकारात्मक पक्षों में वृद्धि हो सके।
इस प्रकार उपर्युक्त उपायों को अपने जीवन में अपनाकर हम सकारात्मकता का विकास कर सकते हैं।
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