लिंग-भेदभाव की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए ।

लिंग-भेदभाव की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए । 

                                        अथवा
लैगिंक रूढ़िबद्धता एवं पूर्वाग्रह क्या है ?
उत्तर— लिंग-भेदभाव / लैंगिक रूढिबद्धता एवं पूर्वाग्रह लैंगिक रूढ़िबद्धता से आशय है “स्त्री या पुरुष, लड़का या लड़की के व्यवहार तथा भूमिका से सम्बन्धित समाज का वह सामान्यीकरण जो प्रायः गलत चित्रण के कारण होता है।”
स्त्री-पुरुष से सम्बन्धित विशेष व्यवहारों एवं कार्यों को समाज द्वारा परिभाषित करना तथा इन्हीं विशेष कार्यों एवं भूमिकाओं की अपेक्षा करना, सुसंगत न होने की स्थिति में उनको टोकना, विचारों में सुधार करने को कहना, लैंगिक रूढ़िवादिता है । इसी लैंगिक रूढ़िबद्धता को महिलाओं तथा पुरुषों के बीच लैंगिक असमानता का मुख्य जिम्मेदार कारक माना जा सकता है। लैंगिक रूढ़िबद्धता लगातार अपना अस्तित्व बनाए रखती है तथा इस प्रक्रिया में सामाजीकरण अपनी प्रमुख भूमिका निभाता है।
समाज में लैंगिक असमानता तथा लड़कियों एवं महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाना समाज के प्रौढ़ पीढ़ी के पूर्वाग्रह, संकुचित चिन्तन तथा अन्धविश्वासों का परिणाम है। समाज के व्यक्तियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं होने के कारण कई भ्रांतियाँ पूर्वाग्रह तथा संकुचित सोच के कारण समाज में महिलाओं की भूमिका निर्वहन तथा उनके प्रति सही सोच नहीं रखी जाती है। लड़कियों एवं महिलाओं के दैनिक क्रियाकलापों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है, जिसके फलस्वरूप बाल-विवाह, भ्रूण हत्या, महिलाओं या लड़कियों को शिक्षा के अवसर समान रूप से नहीं देना आदि लैंगिक भेदभाव तथा पक्षपात के उदाहरण हैं। लैंगिक भेदभाव शिक्षा के माध्यम से दूर किया जा सकता है। शिक्षा का कार्य शिक्षण संस्थाओं एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा समाज में लगातार रूप से किया जाता है।
लैंगिक रूढ़िबद्धता एवं पूर्वाग्रह के मुख्य कारण – लैंगिक
रूढिबद्धता एवं पूर्वाग्रह के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं—
(1) सामाजिक कारण – समाज में महिला तथा पुरुषों की भूमिका अलग समझी जाती है। पुरुषों को घर का मुखिया माना जाता है तथा सर्वप्रथम भोजन प्राप्त करने का अधिकारी समझा जाता है। महिलाओं को पालन-पोषण तथा देखभाल करने वाले घरेलू सदस्य के रूप में माना जाता है। समाज में बालक तथा बालिकाओं के प्रति कई अलग नियम बनाए गए हैं जो प्रत्येक क्षेत्र में लागू होते हैं। महिलाओं से सम्बन्धित निर्णय भी पुरुष सदस्य ही लेते हैं लेकिन महिलाओं को पुरुषों से सम्बन्धित निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है।
(2) राजनीतिक कारण – राजनीति में भी पुरुषों को नारी से ज्यादा अधिकार प्राप्त है। उन्हें उच्च पद दिए जाते हैं। महिलाओं को जो पद दिए भी जाते हैं तो उसका संचालन पुरुष ही करते हैं।
(3) शैक्षणिक कारण – बालक एवं बालिका की शिक्षा में भी अन्तर देखा जाता है। बालकों को उच्च स्तर की शिक्षा देने की व्यवस्था है लेकिन बालिकाओं को ससुराल जाना होता है अतः उन पर खर्च करने से क्या मतलब है। बालक नहीं पढ़ना चाहता है फिर भी उसे पढ़ने का समय दिया जाता है जबकि बालिका पढ़ना चाहती है लेकिन उसे घरेलू कार्यों में व्यस्त रखा जाता है तथा माता-पिता जल्दी ही शादी करने का मन बनाये रखते हैं ।
(4) आर्थिक कारण – आकर्षक भविष्य, ऋण, सम्पत्ति आदि में भी पुरुषों का वर्चस्व कायम है। ये भिन्नता बालक तथा बालिकाओं के मध्य बाल्यकाल से ही स्थापित कर दी जाती है जो समाज का एक अंग बन जाती है लेकिन अब इन असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
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