विद्यार्थी के ‘स्व के विकास’ में प्रमुख संचार माध्यमों का दायित्व बताइये।
विद्यार्थी के ‘स्व के विकास’ में प्रमुख संचार माध्यमों का दायित्व बताइये।
उत्तर— विद्यार्थी के ‘स्व के विकास’ में प्रमुख संचार माध्यमों का दायित्व – संचार माध्यमों को दो भागों में वर्गीकृत करके हम इनके दायित्वों का वर्णन कर रहे हैं—
(1) प्रिन्ट मीडिया — प्रिन्ट मीडिया का महत्त्व बहुत है । विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ, समाचार पत्रों से बालक का सर्वांगीण विकास होता है। शिक्षण संस्थाओं में पाठ्यपुस्तकें ही शिक्षा का मुख्य साधन है। दूरस्थ शिक्षण संस्थाओं के विद्यार्थी मुद्रित सामग्री द्वारा ही अनुदेशन प्राप्त करते हैं। इन्टरनेट की सुविधा ने शिक्षा को भी ऑन लाइन कर दिया है लेकिन प्रिन्ट मीडिया का महत्त्व कम नहीं आँका जाता है। ये बालकों के स्व के विकास में विशेष स्थान रखता है।
(i) समाचार पत्र – समाचार पत्र बालक के स्व निर्माण में बहुत ही महत्त्व रखता है। वस्तुत: समाचार पत्रों में विभिन्न विषयों पर भी सामग्री लेख कहानियाँ, सुविचार, कविताएँ तथा मनोरंजनात्मक प्रकरण भी प्रकाशित किए जाते हैं। इस तरह बालक के अन्दर जीवनमूल्यों का प्रवेश होता है। जिससे सकारात्मक स्व निर्माण को आधार मिलता है। इससे उसका ज्ञान कोष बढ़ता है। सामान्य ज्ञान का विस्तार होता है। उत्तरदायित्व से नागरिकता का विकास होता है। स्वाध्याय से रुचि विकसित होती है। अतः बालकों को प्रतिदिन समाचार पढ़ने की आदत विकसित करनी चाहिए एवं प्रत्येक विद्यालय में समाचार पत्र मँगवाने चाहिए।
(ii) पत्र-पत्रिकाएँ–पत्र-पत्रिकाएँ बालक के स्व के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ बालकों को न केवल नवीन ज्ञान प्रदान करती है अपितु उन्हें रचनात्मक कार्य करने के लिए भी प्रेरित करती है। इससे उनका विषय ज्ञान बढ़ता है। अतः प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकालय की उचित व्यवस्था होनी चाहिए एवं नित्य पत्र-पत्रिकाएँ आनी चाहिए। शोध पत्रिकाएँ हमें नवीनतम ज्ञान प्रदान करती हैं।
(iii) साहित्यिक पुस्तकें – साहित्यिक पुस्तकें बालक की स्वधारणा को सकारात्मक बनाती हैं। ये पुस्तकें संदर्भित पुस्तकों का काम करती हैं। इससे विद्यार्थियों के विचार मौलिक तथा व्यापक बनते हैं, उनमें स्वाध्याय की आदत विकसित की जा सकती है। वह अपनी लेखन “क्षमता विकसित कर सकते हैं। साहित्यिक पुस्तकें विद्यालय में उपलब्ध कर लेनी चाहिए। पढ़ने हेतु पुस्तकालय कालांश होना चाहिए।
(2) इलेक्ट्रॉनिक मीडिया — वर्तमान समय में विज्ञान के विकास तथा संचार क्रान्ति के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का भी विकास हुआ है। इन साधनों में संचार क्रान्ति उत्पन्न कर दी है। वर्तमान में दुनिया की दूरी संकुचित हो गयी है। अमेरिका में होने वाली सूचना कुछ मिनटों में ही सम्पूर्ण भारत एवं दुनिया में पहुँच सकती है। इसलिए वर्तमान समय में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है । इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अन्तर्गत निम्नलिखित माध्यम आते हैं—
(i) रेडियो – रेडियो सबसे प्रभावशाली संचार का माध्यम है। रेडियो पर बालकों को विभिन्न विषयों से सम्बन्धित जानकारियाँ प्राप्त होती हैं । इससे सभी स्तर के व्यक्ति लाभान्वित हो सकते हैं। रेडियो द्वारा विद्यार्थियों को तथ्यात्मक ज्ञान प्रदान किया जा सकता है ।
(ii) दूरदर्शन- दूरदर्शन जनसंचार साधनों के अन्तर्गत उपलब्ध सभी साधनों में सबसे सशक्त माध्यम है क्योंकि इसमें सम्प्रेषण के साथसाथ दृश्य साधन भी उपलब्ध है। दूरदर्शन में समस्त विश्व की जानकारी प्राप्त होती है इससे बालक के मस्तिष्क का विकास होता है एवं सोचने की शक्ति व कुछ करने की शक्ति को बढ़ावा मिलता है। उनमें सृजनात्मकता शक्ति का विकास होता है।
(iii) कम्प्यूटर–कम्प्यूटर शिक्षक के स्थानापन्न का कार्य करता है। इस रूप में छात्र सीधे कम्प्यूटर से व्यवहार करता है। इससे छात्र की विचार शक्ति का निर्माण होता है। उसे सही तथा गलत उत्तर की पहचान होती है जिससे वह उचित-अनुचित में भेद कर सकता है एवं निर्णय शक्ति की क्षमता का विकास होता है।
(iv) मल्टीमीडिया—मल्टीमीडिया एक प्रकार से एकत्रित रीट्राइव्ड तथा मेन्यूपलेट की गयी सूचना है जिसमें प्लेन टेक्स्ट, पिक्चर, श्रव्य दृश्य तथा एनीमेशन टाइप की सूचनाएँ रहती हैं। इसके द्वारा शिक्षण सामग्री को चित्र साउण्ड एवं एनीमेशन आदि का प्रयोग कर रोचक बनाया जा सकता है। इस तरह के शिक्षण में बालक की कल्पना शक्ति का विकास होता है।
(v) इंटरनेट—इंटरनेट नेटवर्कों का एक विशाल नेटवर्क है जो हजारों कम्प्यूटर से जुड़ा होता है। इंटरनेट ने आज मनुष्य के जीवन में क्रान्ति ला दी है, बैंकिंग, रोजगार, टूरिज्म, एजुकेशन आदि में उसने पैर जमा रखे हैं। इससे बालक को जो भी पाठ्य सामग्री की आवश्यकता होती है वह घर बैठे उपलब्ध हो जाती है। इससे बालक की अध्ययन क्षमता का विकास होता है। बालक में रुचि का विकास होता है। सुविचार व प्रेरक प्रसंगों द्वारा बालकों में नैतिक मूल्यों का विकास करना संभव
(vi) मोबाइल – मोबाइल द्वारा बालक कक्षा के अलावा कहीं भी बैठकर सीख सकता है। इसमें उसे स्वयं करके सीखने की प्रवृत्ति का विकास होता है। इसके द्वारा अध्यापक कक्षा अन्तः क्रिया को बढ़ावा दे सकता है इससे बालक में आत्मविश्वास बढ़ता है। इससे बालक मे * सीखने की प्रवृत्ति का विकास किया जा सकता है। बालक स्वाध्याय की प्रवृत्ति का विकास कर सकता है। इससे उनमें तकनीकी कौशल की भी वृद्धि होती है।
इस तरह मीडिया बालक के स्व-निर्माण में कारगर सिद्ध है ।
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