वर्ग विभाजन के आधारों का विस्तार से वर्णन कीजिए ।
वर्ग विभाजन के आधारों का विस्तार से वर्णन कीजिए ।
उत्तर— वर्ग विभाजन के आधार– राबर्ट बीरस्टीड ने वर्ग विभाजन के निम्नलिखित सात आधार बताये हैं—
(1) निवास की स्थिति–व्यक्ति का निवास स्थान कहाँ है एवं उसके पड़ोसी कौन हैं यह भी वर्ग स्थिति को तय करता है। इसी कारण शहरों में कॉलोनियों में रहने वाले लोगों की स्थिति गन्दी बस्तियों में रहने वाले लोगों से प्रायः ऊँची होती है।
(2) निवास स्थान की अवधि –एक व्यक्ति के वर्ग का विभाजन उनके निवास स्थान की अवधि के आधार पर भी किया जा सकता है। एक व्यक्ति प्रायः जिस स्थान पर रहने लगता है या उनके पूर्वज जिस स्थान पर रहते हैं उस निवास को वह नहीं छोड़ना चाहता है क्योंकि उसके साथ उसके भावात्मक सम्बन्ध होते हैं एवं नवीन स्थान पर जाने में उसकी वर्ग स्थिति खतरे में पड़ने का डर रहता है।
(3) व्यवसाय की प्रकृति–व्यवसाय की प्रकृति के आधार पर भी मनुष्य की वर्ग की स्थिति को निर्धारित किया जा सकता है। प्राध्यापक, इंजीनियर, राजनीतिज्ञ आदि को समाज में उच्च वर्ग का स्थान प्राप्त होता है। चाहे उनकी पारिवारिक तथा आर्थिक स्थिति कैसी भी हो। वहीं दूसरी ओर ठेकेदारों, तस्करों आदि के पास अथाह सम्पत्ति होने के बाद भी समाज उन्हें निम्न वर्ग में रखता है। अलग-अलग देशों में अलगअलग व्यवसायों को उच्च एवं निम्न वर्ग में रखा जाता है, जैसे-भारत में पुरोहित के व्यवसाय को उच्च माना जाता है जबकि पश्चिम देशों में उद्योग व्यापार आदि से सम्बन्धित लोगों को उच्च वर्ग का माना जाता है।
(4) शिक्षा – शिक्षा लगभग सभी समाज में वर्ग स्थिति निर्धारण का महत्त्वपूर्ण कारक रही है। समाज एक शिक्षित, प्रशिक्षित, तकनीकी, औद्योगिक तथा विज्ञान में दक्ष व्यक्ति को ही उच्च वर्ग का दर्जा प्रदान करता है। यदि व्यक्ति शिक्षित नहीं है तो उसे समाज में उच्च वर्ग का स्थान प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। भारत में आध्यात्मिक तथा आर्थिक शिक्षा प्राप्त व्यक्ति की वर्ग स्थिति उच्च मानी जाती है ।
(5) धर्म – परम्परागत समाज में व्यक्ति की धार्मिक स्थिति के आधार पर उसकी स्थिति का निर्धारण किया जाता है। जो पुरोहित धार्मिक कर्मकाण्डों को कराते हैं समाज उन्हें उच्च तथा प्रतिष्ठित स्थान प्रदान करता है। भारत में धर्मगुरुओं, पुरोहितों आदि को प्राचीन काल से सम्मान एवं आदर की दृष्टि से देखा जाता है ।
(6) धन, सम्पत्ति एवं आय–सम्पत्ति, धन एवं आय वर्ग निर्धारण के प्रमुख आधारों में से है। अधिक आय के द्वारा ही सम्पत्ति एवं धन का संकलन किया जाता है तथा इसी के सहारे सुख-सुविधाओं की वस्तुएँ क्रय की जाती हैं, उच्च शिक्षा प्राप्त की जाती है एवं जीवन स्तर को ऊँचा उठाया जाता है। इस संदर्भ में यह भी महत्त्वपूर्ण है कि मात्र सम्पत्ति एवं धन का स्वामित्व ही सब कुछ नहीं होता है वरन् वर्ग निर्धारण में यह भी महत्त्वपूर्ण है कि सम्पत्ति एवं आय के स्रोत क्या हैं ?
(7) परिवार एवं नातेदारी– वर्ग विभाजन में व्यक्ति की पारिवारिक स्थिति तथा उसके नातेदारों की सामाजिक प्रस्थिति भी बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। जैसे—टाटा, बिरला एवं अम्बानी खानदान में जन्म लेने वाले लोगों को स्वतः ही उच्च वर्ग में सम्मिलित कर लिया जाता है साथ ही इन परिवारों के सम्बन्धियों की स्थिति भी उच्च समझी जाती है।
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