अमूर्त ज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
अमूर्त ज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर— अमूर्त ज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ: अमूर्त ज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—
(1) प्रत्यक्ष का अभाव– जिस प्रकार मूर्त ज्ञान में वस्तु प्रत्यक्ष रूप से दृष्टिगोचर होती है उसी प्रकार अमूर्त ज्ञान में वस्तु को प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, जैसे- सांख्य योग, ज्ञान मीमांसा एवं आदर्शवाद आदि से संबंधित विचारों एवं वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप में नहीं दिखाया जा सकता। इन वस्तुओं को वैचारिक आधार पर ही सिद्ध किया जा सकता है। इस प्रकार प्रत्यक्ष का अभाव अमूर्त ज्ञान में पूर्ण रूप से पाया जाता है।
(2) परम्पराओं से संबंध– अमूर्त ज्ञान का संबंध परम्पराओं में पाया जाता है। अमूर्त ज्ञान का विकास हमारी सांस्कृतिक एवं धार्मिक परम्पराओं से संबंधित होता है, जैसे- भारतीय समाज में सामाजिक परम्पराओं एवं धार्मिक परम्पराओं का व्यावहारिक स्वरूप अमूर्त मान्यताओं पर आधारित होता है। इन परम्पराओं के सन्दर्भ में कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
(3) तर्क एवं चिन्तन से संबंध– अमूर्त ज्ञान का संबंध तर्क एवं चिन्तन से संबंधित होता है। अमूर्त ज्ञान में किसी भी वस्तु का वर्णन व्यक्ति अपने तर्क एवं चिन्तन के आधार पर करता है क्योंकि इसमें वस्तु प्रत्यक्ष नहीं होती है। इसलिये इस ज्ञान में ज्ञान प्रदान करने वाले का तर्क एवं चिन्तन ज्ञान के वर्णन में पूर्ण प्रभावी होता है। इस वर्णन के आधार पर ही वह वस्तु का निरूपण करता है । अतः अमूर्त ज्ञान में तर्क एवं चिन्तन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
(4) दर्शन से संबंध– अमूर्त ज्ञान में दर्शन का महत्वपूर्ण योगदान है। इस ज्ञान का विकास भी दार्शनिक विचारों के आधार पर ही सम्भव होता है क्योंकि समस्त अमूर्त ज्ञान के विषय दर्शन से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित होते हैं, जैसे- आदर्शवादी दर्शन की विचारधारा सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के आदर्श पर आधारित होती है। इसी प्रकार अनेक विचारधाराएँ जो कि दर्शन से संबंधित होती हैं, अमूर्त ज्ञान में वृद्धि करती हैं।
(5) आदर्शों से संबंध– आदर्शों का संबंध भी अमूर्त ज्ञान से ही होता है। भारतीय दर्शन में मोक्ष को अन्तिम एवं उच्च आदर्श माना जाता है जो कि पूर्णतः पारलौकिक आदर्श से संबंधित है। यह ज्ञान भी अमूर्त विचारों पर ही आधारित है क्योंकि मोक्ष को प्राप्त करने की स्थिति को मूर्त रूप में नहीं देखा जा सकता है। इसी प्रकार मानव जीवन के उच्च आदर्श अमूर्त ज्ञान से ही संबंधित होते
(6) मनोविज्ञान से संबंध– दार्शनिक ज्ञान की भाँति मनोविज्ञान का ज्ञान भी अमूर्त ज्ञान से संबंधित है। इसमें रुचि, बुद्धि-लब्धि एवं समायोजन की क्षमता आदि अनेक विषय ऐसे हैं जो कि मनोविज्ञान के विचारों एवं तर्कों से स्पष्ट होते हैं। बुद्धि एवं समायोजन की योग्यता आदि अमूर्त विषय हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा जा सकता। इसका अनुमान बालक के व्यवहार से ही लगाया जा सकता है।
(7) विश्वसनीयता का अभाव– अमूर्त ज्ञान में विश्वसनीयता का अभाव पाया जाता है क्योंकि इस ज्ञान में व्यक्ति के व्यक्तिगत विचारों का समावेश होता है जो कि प्रामाणिक भी हो सकते हैं तथा अप्रामाणिक भी। उदाहरणार्थ, शिक्षण विधियों के सन्दर्भ में आदर्शवाद एवं प्रकृतिवाद आदि से संबंधित अनेक विचारधाराएँ प्रचलित हैं। इन विचारधाराओं में शिक्षाशास्त्रियों के स्वयं के अनभुव सम्मिलित होते हैं जो कि क्षेत्र एवं परिस्थिति विशेष में सत्य भी सिद्ध हो सकते हैं तथा असत्य भी। अतः इसमें अविश्वसनीयता की स्थिति की अधिकता पायी जाती है।
(8) वैधता का अभाव– अमूर्त ज्ञान में वैधता का भी अभाव पाया जाता है क्योंकि इस ज्ञान को प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत करने में कठिनाई होती हैं। इसलिये जनसामान्य की दृष्टि से अमूर्त ज्ञान की वैधता को सिद्ध करने में कठिनाई होती हैं इसमें अनेक प्रकार की कल्पनाओं का समावेश इसी वैधता पर प्रश्न चिह्न लगाती है।
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