एक अध्यापक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान की क्या उपयोगिता है ?

एक अध्यापक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान की क्या उपयोगिता है ? 

                                             अथवा
अध्यापकों के लिए शिक्षा मनोविज्ञान की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
उत्तर— एक अध्यापक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान की उपयोगिता– वर्तमान समय में शिक्षा मनोविज्ञान का अध्ययन बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो गया है। इस विषय के नवीन अनुसंधानों का व्यवहार समझने में उनके अभिभावकों एवं अध्यापकों को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहायता मिली है। शिक्षा मनोविज्ञान ने व्यक्ति के जीवन को सफल व सुखमय बना दिया है। शिक्षा मनोविज्ञान के कारण शिक्षा के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन आये हैं। वर्तमान में शिक्षा, सैद्धान्तिक एवं दार्शनिक स्वरूप से बदलकर, व्यावहारिक जीवन से सम्बन्धित हो गई है। शिक्षा मनोविज्ञान से अध्यापकों के दृष्टिकोण में भी उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिला है। शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा के उद्देश्यों को सरल बनाया है तथा अध्यापक की व्यावसायिक कार्यकुशलता को बेहतर बनाया है। शिक्षा मनोविज्ञान ने छात्र व अध्यापक दोनों के शैक्षिक सामर्थ्य को उन्नत बनाया है। प्रमुख रूप से शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को निम्न प्रकार से सहायता प्रदान करता है—
(1) बालक के स्वभाव व व्यवहार को समझने में उपयोगी (Child’s Temperament and Behaviour Useful in Understanding)– शिक्षा मनोविज्ञान में बालक का विभिन्न आयुस्तरों पर क्रमिक विकास एवं उनके संवेगों को जानने का प्रयास किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान बालक के स्वभाव को समझने में बहुत ही सहायक होता है क्योंकि यह उनकी शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक विशेषताओं सहित अंतःक्रियाओं का सूक्ष्म अध्ययन करता है। अध्यापक बच्चों का स्वभाव एवं उनकी मूल प्रवृत्तियों को जानने के पश्चात् ही उचित विधि से शिक्षण देने में सफल रहता है ।
(2) पाठ्यक्रम निर्माण में सहायक (Helpful in Curriculum Construction)– पाठ्यक्रम निर्माण में बालकों की रुचि, योग्यता तथा पाठ्यक्रम का बालकों पर पड़ने वाले प्रभाव का विशेष ध्यान रखा जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान से व्यक्तिगत भिन्नताओं की जानकारियाँ मिलती हैं जो पाठ्यक्रम निर्माण में सहायक होती हैं। अध्यापक बालकों की मनोदशा को समझकर पाठ्यक्रम के प्रति बालकों में रुचि उत्पन्न करता है। शिक्षा मनोविज्ञान ने बालक के सर्वांगीण विकास में पाठ्यक्रम के साथ-साथ सहगामी क्रियाओं को महत्त्वपूर्ण माना है। इसके लिए विद्यालयों में अध्यापकों द्वारा खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि की विशेष रूप से व्यवस्था की जाती है।
(3) चरित्र निर्माण में सहायक (Helpful in Character Building)– शिक्षा मनोविज्ञान से बालक के स्वभाव और आदतों का ज्ञान हो जाने से उसके समाज विरोधी व्यवहार का अध्ययन करने में सहायता मिलती है। अक्सर किशोरावस्था में बालक अपने पथ से विमुक्त होकर गलत तथा अनैतिक कार्यों में संलग्न हो जाते हैं। शिक्षक अपने नैतिक आचरण से उनके व्यवहार पर नियंत्रण स्थापित कर उनका चरित्र निर्माण करता है ।
(4) शैक्षिक समस्याओं की जानकारी (Knowledge of Educational Problems)– किशोरावस्था तीव्र संवेगों का काल होती है। इस दौरान अध्ययन में छात्रों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त इस उम्र में बालकों में अनुशासनहीनता, बाल-अपराध, असंतोष जैसी बुराइयाँ घर करने लगती हैं। शिक्षक, शिक्षा मनोविज्ञान की सहायता से उक्त समस्याओं का गहन अध्ययन कर उनका छात्रों के सम्मुख व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करता है। वर्तमान में अध्यापक, छात्रों की अनुशासनहीनता को भय व दण्ड से दूर करने की बजाय समस्या के वास्तविक कारणों का पता लगाने का प्रयास करते हैं ।
(5) बालकों के विकास का ज्ञान (Development of Children’s Knowledge)– बालकों का विकास कुछ निश्चित नियमों व सिद्धान्तों के आधार पर ही होता है। परन्तु कुछ बालकों के विकास क्रम में भिन्नताएँ पाई जाती हैं जिसके कारण उनका व्यवहार असामान्य हो जाता हैं। विभिन्न आयु-स्तरों व अवस्थाओं में बालकों में विशिष्ट व्यवहार की अभिव्यक्ति होती है। अध्यापक बालकों के क्रमिक विकास को समझकर ही पाठ्यक्रम व शिक्षण विधियों का चुनाव करता है । मनोविज्ञान के ज्ञान से शिक्षक किसी भी प्रकार की शैक्षणिक परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है ।
(6) उचित शिक्षण विधियों का चुनाव (Choose the Appropriate Learning Methods)– बालकों के सम्पूर्ण विकास के लिए शिक्षा मनोविज्ञान ने अध्यापक के सामने अनेक वैज्ञानिक शिक्षण विधियाँ प्रस्तुत की हैं। अध्यापक इन विधियों का प्रयोग शैक्षिक प्रक्रिया में बालकों के मानसिक स्तर के अनुसार उचित तकनीकी का चुनाव करने में करता है। विभिन्न परिस्थितियों में छात्रों को सुगमता से ज्ञान प्रदान करने के लिए आधुनिक शिक्षण विधियाँ बहुत ही उपयोगी हैं।
(7) मूल्यांकन में नवीन विधियों का प्रयोग (Use of Innovative Methods in Evaluation)– शिक्षक से प्राप्त ज्ञान का छात्र पर किस मात्रा तक प्रभाव पड़ा और उनमें क्या-क्या व्यावहारिक परिवर्तन आये हैं इसकी जानकारी शिक्षा मनोविज्ञान प्रदान करता है। अध्यापक छात्रों की प्रगति का अनुमान लगाने के लिए विभिन्न मूल्यांकन विधियों का प्रयोग करता है। शिक्षा मनोविज्ञान की सहायता से शिक्षक बालकों की मानसिक योग्यता का सही आंकलन कर निर्देशन का कार्य करता है।
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