भाषा के विविध रूप कौन-कौन से हैं ?

भाषा के विविध रूप कौन-कौन से हैं ?

                      अथवा
भाषा का अर्थ स्पष्ट कीजिए। भाषा के विभिन्न प्रकारों को उदाहरण से समझाइए ।
उत्तर— भाषा के विभिन्न रूप-प्रयोग की दृष्टि से प्रयोग की दृष्टि से भाषा के दो रूप हैं—
(1) मौखिक भाषा– मौखिक भाषा का प्रयोग हम अपनी बोलचाल की भाषा में हर समय करते हैं । मौखिक भाषा अक्षरों का केवल ध्वन्यात्मक रूप है। इसका प्रयोग मौखिक रूप से विचार-विनिमय के लिए किया जाता है। प्राचीन काल में समस्त ज्ञान मौखिक रूप से ही सुरक्षित रहा है।
(2) लिखित भाषा– जब हम अपने मौखिक विचारों को किसी भी लिपि में लिखकर दूसरों तक पहुँचाते हैं, तो इसे लिखित भाषा कहते हैं। भाषा का लिखित रूप अधिक स्थायी माना जाता है। जब हम अपने विचार अथवा सन्देश एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना चाहते हैं तो लिखित भाषा का ही प्रयोग करते हैं।
व्यावहारिक दृष्टि से– व्यावहारिक दृष्टि से भाषाओं को निम्न वर्गों में रखा जा सकता है—
(1) मूल भाषा–  मूल भाषा को प्राचीन भाषा भी कह सकते हैं। मूल भाषाएँ आधुनिक भाषाओं की जननी है। इन्हीं भाषाओं के माध्यम से तथा परिस्थितियों के कारण आज की भाषाएँ प्रगट हुई हैं । अतः यह कहा जा सकता है कि जो भाषा किसी भाषा-परिवार की आदि जन्मदात्री होती है, उसे उस भाषा-परिवार की मूल भाषा कहते हैं। भारत की मूल भाषा संस्कृत कही जाती है।
(2) मातृ भाषा– मातृ भाषा वह भाषा होती है जिसे कोई बालक अपनी माता का अनुकरण करके स्वाभाविक रूप से सीखता है। वास्तव में वह मातृ भाषा का संकुचित अर्थ है। बालक जिस प्रदेश में जन्म लेता है, उसकी बोली या क्षेत्रीय भाषा वह पहले सीखता है। वास्तव में बालक की मातृभाषा उसकी क्षेत्रीय भाषा होती है ।
(3) सांस्कृतिक भाषा– किसी जाति, समाज या राष्ट्र की संस्कृति जिस भाषा में निहित रहती है, उसे सांस्कृतिक भाषा कहते हैं । अपनी संस्कृति से अच्छी प्रकार परिचित होने के लिए सांस्कृतिक भाषा का ज्ञान बहुत आवश्यक है। उदाहरण के लिए संस्कृत भारत की सांस्कृतिक भाषा है। यूरोप में ग्रीक एवं लैटिन सांस्कृतिक भाषाएँ हैं।
(4) प्रादेशिक भाषा– किसी प्रदेश विशेष में प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा को प्रादेशिक भाषा कहा जाता है। उत्तर भारत के बड़े क्षेत्र में प्रयोग होने वाली हिन्दी भाषा इस क्षेत्र की प्रादोशिक भाषा कही जा सकती है। इसी तरह पंजाब प्रान्त में प्रयोग होने वाली पंजाबी भाषा, बंगाल प्रान्त में प्रयोग होने वाली बंगाली भाषा इन प्रदेशों की प्रादेशिक भाषाएँ कही जा सकती हैं। एक प्रादेशिक भाषा में कई प्रकार की बोलियाँ सम्मिलित हो सकती हैं। जैसे- हिन्दी में राजस्थानी भोजपुरी, बुन्देली, बृज तथा अवधि आदि ।
(5) बोली– एक भाषा के अन्तर्गत कई बोलियाँ होती हैं । वास्तव में बोली भाषा का वह रूप होता है जो एक सीमित क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों के द्वारा मौखिक रूप में प्रयोग किया जाता है। बोली को भाषा का पूर्ण दर्जा नहीं दिया जा सकता है। एक भाषा के अन्तर्गत जब कई अलग-अलग रूप विकसित हो जाते हैं, तो उन्हें बोली कहते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा की बृज, अवधी, भोजपुरी, बुन्देली आदि कई बोलियाँ हैं ।
(6) राष्ट्र भाषा– किसी राष्ट्र के निर्माण, विकास एवं भावात्मक एकता के लिए राष्ट्र भाषा का होना आवश्यक है। राष्ट्र भाषा प्राय: वह भाषा होती है जिसका प्रयोग उस राष्ट्र के अधिकतर व्यक्ति करते हैं । यह भाषा राजकीय कार्यों एवं सार्वजनिक कार्यों में प्रयुक्त की जाती है। भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्र भाषा का दर्जा प्रदान किया जाता है । भारत की अधिकांश जनता हिन्दी समझती व जानती है। .
(7) विदेशी भाषा– वह भाषाएँ जो अन्य देशों की भाषाएँ हैं तथा उस देश की मूल भाषा, संस्कृति भाषा तथा मातृ नहीं है, विदेशी भाषा कहलाती हैं। हमारे देश के लिए चीनी, जापानी, रूसी, फ्रेंच, जर्मन आदि विदेशी भाषाएँ हैं। आज हमारे लिए विदेशी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना भी आवश्यक है। हमें एक दूसरे के निकट आने तथा संसार के नवीन ज्ञान तथा विज्ञान को समझने के लिए विदेशी भाषा का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
अथवा
भाषा का अर्थ स्पष्ट कीजिए। भाषा के विभिन्न प्रकारों को उदाहरण से समझाइए ।
उत्तर— भाषा के विभिन्न रूप-प्रयोग की दृष्टि से प्रयोग की दृष्टि से भाषा के दो रूप हैं—
(1) मौखिक भाषा– मौखिक भाषा का प्रयोग हम अपनी बोलचाल की भाषा में हर समय करते हैं । मौखिक भाषा अक्षरों का केवल ध्वन्यात्मक रूप है। इसका प्रयोग मौखिक रूप से विचार-विनिमय के लिए किया जाता है। प्राचीन काल में समस्त ज्ञान मौखिक रूप से ही सुरक्षित रहा है।
(2) लिखित भाषा– जब हम अपने मौखिक विचारों को किसी भी लिपि में लिखकर दूसरों तक पहुँचाते हैं, तो इसे लिखित भाषा कहते हैं। भाषा का लिखित रूप अधिक स्थायी माना जाता है। जब हम अपने विचार अथवा सन्देश एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना चाहते हैं तो लिखित भाषा का ही प्रयोग करते हैं।
व्यावहारिक दृष्टि से– व्यावहारिक दृष्टि से भाषाओं को निम्न वर्गों में रखा जा सकता है—
(1) मूल भाषा–  मूल भाषा को प्राचीन भाषा भी कह सकते हैं। मूल भाषाएँ आधुनिक भाषाओं की जननी है। इन्हीं भाषाओं के माध्यम से तथा परिस्थितियों के कारण आज की भाषाएँ प्रगट हुई हैं । अतः यह कहा जा सकता है कि जो भाषा किसी भाषा-परिवार की आदि जन्मदात्री होती है, उसे उस भाषा-परिवार की मूल भाषा कहते हैं। भारत की मूल भाषा संस्कृत कही जाती है।
(2) मातृ भाषा– मातृ भाषा वह भाषा होती है जिसे कोई बालक अपनी माता का अनुकरण करके स्वाभाविक रूप से सीखता है। वास्तव में वह मातृ भाषा का संकुचित अर्थ है। बालक जिस प्रदेश में जन्म लेता है, उसकी बोली या क्षेत्रीय भाषा वह पहले सीखता है। वास्तव में बालक की मातृभाषा उसकी क्षेत्रीय भाषा होती है ।
(3) सांस्कृतिक भाषा– किसी जाति, समाज या राष्ट्र की संस्कृति जिस भाषा में निहित रहती है, उसे सांस्कृतिक भाषा कहते हैं । अपनी संस्कृति से अच्छी प्रकार परिचित होने के लिए सांस्कृतिक भाषा का ज्ञान बहुत आवश्यक है। उदाहरण के लिए संस्कृत भारत की सांस्कृतिक भाषा है। यूरोप में ग्रीक एवं लैटिन सांस्कृतिक भाषाएँ हैं।
(4) प्रादेशिक भाषा– किसी प्रदेश विशेष में प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा को प्रादेशिक भाषा कहा जाता है। उत्तर भारत के बड़े क्षेत्र में प्रयोग होने वाली हिन्दी भाषा इस क्षेत्र की प्रादोशिक भाषा कही जा सकती है। इसी तरह पंजाब प्रान्त में प्रयोग होने वाली पंजाबी भाषा, बंगाल प्रान्त में प्रयोग होने वाली बंगाली भाषा इन प्रदेशों की प्रादेशिक भाषाएँ कही जा सकती हैं। एक प्रादेशिक भाषा में कई प्रकार की बोलियाँ सम्मिलित हो सकती हैं। जैसे- हिन्दी में राजस्थानी भोजपुरी, बुन्देली, बृज तथा अवधि आदि ।
(5) बोली– एक भाषा के अन्तर्गत कई बोलियाँ होती हैं । वास्तव में बोली भाषा का वह रूप होता है जो एक सीमित क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों के द्वारा मौखिक रूप में प्रयोग किया जाता है। बोली को भाषा का पूर्ण दर्जा नहीं दिया जा सकता है। एक भाषा के अन्तर्गत जब कई अलग-अलग रूप विकसित हो जाते हैं, तो उन्हें बोली कहते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी भाषा की बृज, अवधी, भोजपुरी, बुन्देली आदि कई बोलियाँ हैं ।
(6) राष्ट्र भाषा– किसी राष्ट्र के निर्माण, विकास एवं भावात्मक एकता के लिए राष्ट्र भाषा का होना आवश्यक है। राष्ट्र भाषा प्राय: वह भाषा होती है जिसका प्रयोग उस राष्ट्र के अधिकतर व्यक्ति करते हैं । यह भाषा राजकीय कार्यों एवं सार्वजनिक कार्यों में प्रयुक्त की जाती है। भारतीय संविधान में हिन्दी को राष्ट्र भाषा का दर्जा प्रदान किया जाता है । भारत की अधिकांश जनता हिन्दी समझती व जानती है। .
(7) विदेशी भाषा– वह भाषाएँ जो अन्य देशों की भाषाएँ हैं तथा उस देश की मूल भाषा, संस्कृति भाषा तथा मातृ नहीं है, विदेशी भाषा कहलाती हैं। हमारे देश के लिए चीनी, जापानी, रूसी, फ्रेंच, जर्मन आदि विदेशी भाषाएँ हैं। आज हमारे लिए विदेशी भाषा का ज्ञान प्राप्त करना भी आवश्यक है। हमें एक दूसरे के निकट आने तथा संसार के नवीन ज्ञान तथा विज्ञान को समझने के लिए विदेशी भाषा का ज्ञान अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
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