चित्रकला क्या है?

चित्रकला क्या है?

          अथवा
टिप्पणी लिखिए—चित्रकला ।
उत्तर— चित्रकला–पूर्व पाषाण युग में मनुष्य कन्दराओं में रहता था और पत्थरों द्वारा शिकार कर जीवन-यापन करता था । उत्तर – पाषाण काल में गाँव बसने शुरू हो गए थे। उस काल के मानव द्वारा बनाए चित्र भी प्राप्त हुए हैं। उसके द्वारा चित्रांकन के पीछे जादू-टोना, टोटका, जन्तर-मन्तर, भय, चिर-स्मृति, सुन्दरता और सौन्दर्य की भावनाएँ निहित थीं।
1750 से 2500 ई. पू. को सैन्धव सभ्यता (सिन्धु सभ्यता) काल माना गया है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में चित्रकारी के नमूने मिले हैं। कोयटा मिट्टी के पकाए हुए सिर, किला-गुल-मुहम्मद में भी मृणमूर्तियाँ मिली हैं, लेकिन उनमें चित्रकारी का अभाव है। बलूचिस्तान में झब नदी की घाटी की खुदाई में जो वस्तुएँ मिली हैं, उनसे भारतीय मृणमूर्तियों की कला का परिचय मिलता है। गहरे बैंगनी और लाल रंग के बर्तन, पकी मिट्टी की मूर्तियाँ, एक कूबड़दार सांड की मूर्ति, एक घोड़े का आगे का भाग भी मिला है। इस स्थान से कई नारी मूर्तियाँ मिलीं जो कमर तक हैं और हाथ नहीं हैं। लोथल की खुदाई में मृणपात्रों के अतिरिक्त चित्रकला के सुन्दर नमूने मिले हैं।
आर्यों के आने से पहले यहाँ चित्रकला विकसित रूप में थी । द्रविड़ आदिवासी भी चित्रकला में दक्ष थे। चाणक्य की नीतियों के फलस्वरूप भारत में मौर्यों का राज्य स्थापित हुआ। चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, सम्राट अशोक जैसे प्रसिद्ध शासक थे। सम्राट अशोक के काल में ‘जोगीमारा’ गुफा बनाई गयी थी। यहीं से गुहा चित्रों के निर्माण का इतिहास आरम्भ होता है। जोगीमारा, सीताबोंगा, वसिष्ट व लक्ष्मण बोगरा गुफाएँ मध्य प्रदेश की सरगुजा रियासत में रामगढ़ की पहाड़ियों में मिली हैं। जोगीमारा गुफा में ईसा से लगभग 300 वर्ष पूर्व के कुछ चित्र अवशेष हैं।
अजन्ता के भित्ति पटों पर उकेरे गए चित्रों को बौद्ध कला माना जाता है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जलगाँव मार्ग पर अजन्ता गुहा मन्दिर का समूह है। यहाँ बुद्ध जीवन, जातक कथाओं के चित्र, नाट्यशास्त्र के आधारों पर नाटक, विशिष्ट राजदरबारों और सामान्य जनों के जीवन के विविध प्रसंगों से संबंधित चित्र मिलते हैं।
अजन्ता की भाँति बाघ की गुफाओं में मानव, वनस्पति तथा पुष्प-जगत का चित्रण हुआ है। इन गुफाओं की संख्या नौ है । सभी बिहार में हैं और इन्हें पाँचवीं और छठी शताब्दी के लगभग का माना जाता है इन गुफाओं में बुद्ध के जीवन और दर्शन को चित्रित किया गया है। भगवान बुद्ध को कमल पर आसीन चित्रित किया गया है। ।
उत्तर मध्य काल (1000 ई. से 1550 ई.) में चोल चित्रकला, होयसल की चित्रकला, विजय नगर की चित्रकला और काकतीय चित्रकला उल्लेखनीय हैं। तंजौर के आस-पास के क्षेत्रों में चोल राजाओं का शासन था। मन्दिर निर्माण में चोल राजाओं ने विशेष रुचि दिखाई। इन मन्दिरों के चित्र चोल चित्रकला को व्याख्यायित करते हैं। तंजौर मंदिर के प्रमुख चित्रों में वयोवृद्ध शिव, शिव-विवाह, विभिन्न संतों के चित्र, नटराज शिव, त्रिपुरान्तक, देवाकृतियाँ उत्कृष्ट चित्र हैं। मूडाविदरी में जैन धर्म के ग्रन्थों में कुछ चित्रित ग्रंथ हैं। इनमें सुपार्श्वनाथ वाली यक्षी, तीर्थंकर महावीर धरणेन्द्र, यक्ष व पदमावती, यक्षी से घिरे सुपार्श्वनाथ आदि के चित्र हैं। विजयनगर राज्य के संस्थापक कृष्णदेव राय एक कुशल चित्रकार थे। श्रीरंगम, त्रिवलूर, चिदम्बरम, चिदम्बरम कांचीपुरम्, तिरुपति तिरुवन्न मलाई आदि स्थानों पर उस समय के चित्रकला के नमूने मिलते हैं।
मध्यकाल में जिन चित्रों का सृजन हुआ है वे धार्मिकता का रूप लिए हुए हैं और आधुनिक चित्रकला में जो सृजन हुआ है उनमें सृजक की संवेदनशीलता, बौद्धिकता, आत्म-अभिव्यक्ति का भाव अधिक है।
“किसी भी समस्त धरातल पर रेखाओं तथा रंगों की सहायता से लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई को अंकित कर किसी भी रूप को बनाना चित्रकला है। “
एक प्रसिद्ध विद्वान् ने चित्रकला की परिभाषा इस प्रकार दी है, “किसी समतल धरातल पर रंग तथा रेखाओं की सहायता से लम्बाई, चौड़ाई, गोलाई और ऊँचाई को अंकित कर किसी रूप और भाव को अभिव्यक्त कर उसकी अनुभूति करना ही चित्रकला है। “
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि चित्रकला में किसी रूप का सृजन समतल धरातल पर हम इस प्रकार करते हैं कि रेखाओं और रंगों द्वारा लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई का आभास लेकर चित्र की रचना होती है उसे हम चित्रकला कहते हैं।
चित्रकला के रूप- चित्रकला इन रूपों में पायी जाती है—
(i) काल्पनिक रूप (कल्पनाओं के आधार पर आलेखन, अलंकरण, सूक्ष्म रूप, भावपूर्ण चित्रण, आधुनिक संवेदनशील चित्रण),
(ii) धार्मिक रूप,
(iii) वास्तविक चित्रण (भूदृश्य, व्यक्ति का चित्रण, जीवन चित्रण, वस्तु का चित्रण, प्राकृतिक चित्रण),
(iv) परम्परागत रूप,
(v) पशु-पक्षी के रूप ।
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