नाटक शिक्षा और अधिगम के मध्य सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए ।
नाटक शिक्षा और अधिगम के मध्य सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर— नाटक शिक्षा और अधिगम के मध्य सम्बन्ध–जिस बात को हम कहकर, पढ़कर उतनी अच्छी और प्रभावशाली विधि से छात्रों को नहीं समझा सकते, उसी बात को नाटक द्वारा प्रदर्शित करके छात्रों के हृदय में दृढ़ता से बिठाया जा सकता है क्योंकि नाटक की सारी सामग्री दृश्य-शृव्य होती है। दृश्य-श्रृव्य सामग्री को समझना अधिक सरल होता है। नाटक शिक्षण में छात्रों को अनेक सम्वाद याद कराए जाते हैं। सम्वाद याद करने से छात्रों की स्मरण शक्ति दृढ़ होती है। नाटक एक अभिनयपूर्ण खेल है जो कुछ खेल की क्रिया द्वारा सिखाया जाता है। इसलिए छात्र द्वारा इसे सरलता से सीख लिया जाता है। नाटक में भाग लेकर, उनका अभिनय करके अथवा उसको सुनने से छात्रों में शिष्टाचारपूर्वक वार्तालाप करने का तरीका आ जाता है। वे समझने लगते हैं कि किस प्रश्न का किस प्रकार उत्तर दिया जाता है? किस प्रकार किसी से प्रश्न पूछे जाते हैं? किस प्रकार गति तथा शक्ति से अपनी बात कही जाती है? इसके अतिरिक्त नाटकों को दिखाकर अनेक पाठ्य विषयों का ज्ञान जिस सरलता से छात्रों को दिया जा सकता है, उतनी सरलता से उस विषय के अध्ययन से नहीं दिया जा सकता। उदाहरण के लिए, जिस समय छात्र सम्राट अशोक द्वारा कलिंग विजय के विषय में अपनी इतिहास की पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करता है, उस समय के घटनाक्रम का तो ज्ञान दिया जा सकता है, किन्तु उस समय की पोशाक, साधु-संन्यासियों को समाज में स्थान आदि का अनुमान उसे तभी होता है, जब भारत के महान् सम्राट अशोक एक बौद्ध संन्यासी के सामने नतमस्तक होता है और उसे अनुभव होता है कि मानवता के सामने उसकी कितनी बड़ी पराजय हुई है। कक्षा की पुस्तक में वीर बालक, राखी की मर्यादा आदि एकांकियों की रचना छात्रों में उदात्त भाव भरने के लिए की गयी है। जो छात्र नाटक में भाग लेते हैं, अभिनय में किये जाने वाले अंग-संचालन, हास्य- विनोद से उनका शारीरिक विकास भी होता है। छात्रों के नैतिक उत्थान और चारित्रिक विकास में भी नाटकों का विशेष स्थान है। नाटक में भाग लेने वाले छात्र वास्तुकला, संगीत कला, चित्रकला एवं मूर्तिकला आदि सभी से सम्बन्धित क्रियाएँ करते हैं। इसलिए इन कलाओं की शिक्षा उन्हें क्रियाशीलता सिद्धान्त द्वारा दी जाती है। पर्दे सजाना, रंगमंच को तैयार करना एवं गीत तैयार करना आदि ऐसी बातें हैं, जिनको छात्र स्वतः सीख जाते हैं।
छात्रों को एकांकी नाटक में भाग लेने को प्रोत्साहित किया जाए । नाटक की सम्पूर्ण साज-सज्जा तैयार करने का उत्तरदायित्व उन्हीं को सौंपा जाए। अध्यापक वर्ग समझता है कि छोटे-छोटे बच्चे इन कार्यों को सम्पन्न नहीं कर सकते, यह उनकी भूल है। कक्षा 6, 7, 8 के छात्रों में इतनी क्षमता अवश्य होती है कि वे नाटक में खेलने के लिए सामग्री एकत्रित कर सकें । प्रत्येक कक्षा की पाठ्य पुस्तक के लिए एकांकी नाटक अथवा सम्वादों का चयन किया जा सकता है। इस चयन के कुछ उद्देश्य होते हैं । कक्षा का जैसा स्तर होता है, छात्रों का वैसा ही मानसिक विकास होता है ।
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