बिहार में अंग्रेजी शासन की स्थापना

बिहार में अंग्रेजी शासन की स्थापना

प्रारंभ से ही बिहार व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। मध्यकाल में भी बिहार व्यापार का प्रमुख केंद्र था। यहाँ एडवर्ड टेरी, राल्फ फिट्ज, पीटर मुंडी, ट्रैवर आदि व्यापारियों ने बिहार का दौरा कर व्यापारिक गतिविधियों का विस्तृत वर्णन किया। बंगाल के नवाब मुर्शिद कुली खान एवं अलीवर्दी खान के शासन काल में विदेशी व्यापारिक कंपनियों ने मुख्य रूप से बिहार में व्यापारिक गतिविधियों में अपने आपको लगाए रखा और उनकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाएँ दबी रहीं। 16 अक्तूबर, 1756 को मनिहारी के युद्ध में सिराजुद्दौला द्वारा शौकतजंग पराजित हुआ। सिराजुद्दौला को अंग्रेजों की ओर से युद्ध का खतरा था। अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम की किलेबंदी प्रारंभ की। इससे सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच तनाव उत्पन्न हो गया, जिसके परिणामस्वरूप 23 जून, 1757 को प्लासी का युद्ध हुआजिसमें अंग्रेज विजयी हुए। उन्होंने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया तथा उसके पुत्र मीरन को बंगाल का उप-नवाब बनाया गया, लेकिन बिहार की वास्तविक सत्ता राजा रामनारायण के हाथों में आ गई।

1760 ई. में मीर कासिम अंग्रेजों की सहायता से बंगाल का नवाब बना, लेकिन अंग्रेजों से उसका संबंध अधिक दिनों तक मधुर नहीं रह सका। मीर कासिम ने 1761 ई. में अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर स्थानांतरित कर ली। मुंगेर की रक्षा के लिए उसने दुर्ग का निर्माण किया। बिहार के नवाब दीवान रामनारायण से भी उसके संबंध अच्छे नहीं थे। उसे अनुशासनहीनता के आरोप में मीर कासिम ने बंदी बनाना चाहा, लेकिन रामनारायण अंग्रेजों से जा मिला। मीर कासिम ने कंपनी के गवर्नर बैंसिटार्ट को पत्र लिखकर, उसे लौटाने की माँग की। बैंसिटार्ट ने रामनारायण को उसके हवाले कर दिया और उसने रामनारायण की हत्या करवा दी।

मीर कासिम ने कंपनी के कर्मचारियों द्वारा ‘दत्तक’ के दुरुपयोग पर रोक लगा दी, जिससे अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी मीर कासिम से क्रुद्ध हो गई। मीर कासिम ने अंग्रेजों के समर्थक सेठ हीराचंद एवं उसके भाई स्वरूपचंद को मुंगेर में नजरबंद कर दिया। पटना के अंग्रेज एजेंट एलिस को नगर पर आक्रमण करने का आदेश दिया गया। एलिस ने 24 जून, 1763 को पटना पर अधिकार कर लूटपाट की एवं अनेक निर्दोष लोगों की हत्या करवा दी। विवश होकर मीर कासिम ने अंग्रेज एजेंट एलिस के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई प्रारंभ की। एलिस को बंदी बनाकर मुंगेर ले आया। पटना में मीर कासिम ने अंग्रेज अधिकारियों का कत्लेआम किया और यह घटना ‘पटना हत्याकांड’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस हत्याकांड के उपरांत मीर कासिम और अंग्रेजों के बीच युद्ध अवश्यंभावी हो गया। 2 सितंबर, 1763 को बिहार के राजमहल के उदवानाला के युद्ध में मीर कासिम अंग्रेजों के हाथों पराजित हुआ। मीर कासिम अंग्रेजों के हाथ नहीं आया और 4 दिसंबर, 1763 को कर्मनाशा नदी पार कर अवध राज्य की सीमा में प्रवेश कर गया।

अंग्रेजों ने मीरजाफर को पुनः बंगाल का नवाब घोषित किया। अंग्रेजों ने पटना के कर्नलगंज और मारूफगंज की मंडियों पर अधिकार कर लिया। पूर्णिया के लकड़मंडी पर भी अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया और नवाब को वहाँ से होनेवाली 50 हजार रुपए वार्षिक आय से वंचित कर दिया। पटना की पराजय के बाद मीर कासिम अवध के नवाब बख्शुजाउद्दौला एवं मुगल सम्राट् शाह आलम द्वितीय के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की तैयारी करने लगा। मीर कासिम ने अवध के नवाब बख्शुजाउद्दौला एवं मुगल सम्राट् शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के साथ पटना की ओर प्रस्थान किया। अंग्रेजी सेना का प्रधान कार्नक घबरा गया। कलकत्ता काउंसिल ने हेक्टर मुनरो को सेनापति नियुक्त किया। मुनरो जुलाई, 1764 में पटना पहुँचा तथा रोहतास के किलेदार साहूमल को प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर लिया। मुनरो सोन नदी पार कर बक्सर पहुँचा, जहाँ 22 अक्तूबर, 1764 को भारत की तीन प्रमुख ताकतों के साथ उसका युद्ध हुआ, जिसका परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में रहा। बक्सर की पराजय ने जहाँ मीर कासिम के भाग्य का सूर्यास्त कर दिया, वहीं बिहार पर अंग्रेजों का पूर्णरूप से अधिकार हो गया। मुगल सम्राट् ने तत्काल परिस्थिति को ध्यान में रखकर 1765 में बिहार, बंगाल और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को प्रदान कर दी।




अंग्रेज और आधुनिक बिहार

मुगल साम्राज्य के पतन के फलस्वरूप उत्तरी भारत में अराजकता का माहौल हो गया। बंगाल के नवाब अलीवर्दी खाँ ने १७५२ में अपने पोते सिराजुद्दौला को अपना उत्तराधिकारी नियुक्‍त किया था। अलीवर्दी खां की मृत्यु के बाद १० अप्रैल १७५६ को सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। प्लासी के मैदान में १७५७ ई. में हुए प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला की हार और अंग्रेजों की जीत हुई। अंग्रेजों की प्लासी के युद्ध में जीत के बाद मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया और उसके पुत्र मीरन को बिहार का उपनवाब बनाया गया, लेकिन बिहार की वास्तविक सत्ता बिहार के नवाब नाजिम राजा रामनारायण के हाथ में थी।

तत्कालीन मुगल शहजादा अली गौहर ने इस क्षेत्र में पुनः मुगल सत्ता स्थापित करने की चेष्टा की परन्तु कैप्टन नॉक्स ने अपनी सेना से गौहर अली को मार भगाया। इसी समय मुगल सम्राट आलमगीर द्वितीय की मृत्यु हो गई तो १७६० ई. गौहर अली ने बिहार पर आक्रमण किया और पटना स्थित अंग्रेजी फैक्ट्री में राज्याभिषेक किया और अपना नाम शाहआलम द्वितीय रखा।

अंग्रेजों ने १७६० ई. में मीर कासिम को बंगाल का गवर्नर बनाया। उसने अंग्रेजों के हस्तक्षेप से दूर रहने के लिए अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर कर दी। मीर कासिम के स्वतन्त्र आचरणों को देखकर अंग्रेजों ने उसे नवाब पद से हटा दिया। मीर कासिम मुंगेर से पटना चला आया। उसके बाद वह अवध के नवाब सिराजुद्दौला से सहायता माँगने के लिए गया। उस समय मुगल सम्राट शाहआलम भी अवध में था। मीर कासिम ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला एवं मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय से मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए एक गुट का निर्माण किया। मीर कासिम, अवध का नवाब शुजाउद्दौला एवं मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय तीनों शासकों ने चौसा अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ा। इस युद्ध में वह २२ अक्टूबर १७६४ को सर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना द्वारा पराजित हुआ। इसे बक्सर का युद्ध कहा जाता है। बक्सर के निर्णायक युद्ध में अंग्रेजों को जीत मिली। युद्ध के बाद शाहआलम अंग्रेजों के समर्थन में आ गया। उसने १७६५ ई. में बिहार, बंगाल और उड़ीसा क्षेत्रों में लगान वसूली का अधिकार अंग्रेजों को दे दिया। एक सन्धि के तहत कम्पनी ने बिहार का प्रशासन चलाने के लिए एक नायब नाजिम अथवा उपप्रान्तपति के पद का सृजन किया। कम्पनी की अनुमति के बिना यह नहीं भरा जा सकता था। अंग्रेजी कम्पनी की अनुशंसा पर ही नायब नाजिम अथवा उपप्रान्तपति की नियुक्‍ति होती थी।

बिहार के महत्वपूर्ण उपप्रान्तपतियों में राजा रामनारायण एवं शिताब राय प्रमुख हैं १७६१ ई. में राजवल्लभ को बिहार का उपप्रान्तपति नियुक्‍त किया गया था। १७६६ ई. में पटना स्थित अंग्रेजी कम्पनी के मुख्य अधिकारी मिडलटन को राजा रामनारायण एवं राजा शिताब राय के साथ एक प्रशसन मंडल का सदस्य नियुक्‍त किया गया। १७६७ ई. में राजा रामनारायण को हटाकर शिताब राय को कम्पनी द्वारा नायब दीवान बनया गया। उसी वर्ष पटना में अंग्रेजी कम्पनी का मुख्य अधिकारी टॉमस रम्बोल्ड को नियुक्‍त किया गया। १७६९ ई. में प्रशासन व्यवस्था को चलाने के लिए अंग्रेज निरीक्षक की नियुक्‍ति हुई।




१७६५ ई. में बक्सर के युद्ध के बाद बिहार अंग्रेजों की दीवानी हो गयी थी, लेकिन अंग्रेजी प्रशासनिक जिम्मेदारी प्रत्यक्ष रूप से नहीं थी। कोर्ट ऑफ डायरेक्टर से विचार-विमर्श करने के बाद लार्ड क्लाइब ने १७६५ ई. में बंगाल एवं बिहार के क्षेत्रों में द्वैध शासन प्रणाली को लागू कर दिया। द्वैध शासन प्रणाली के समय बिहार का प्रशासनिक भार मिर्जा मुहम्मद कजीम खाँ (मीर जाफर का भाई) के हाथों में था। उपसूबेदार धीरज नारायण (जो राजा रामनारायण का भाई) की सहायता के लिए नियुक्‍त था। सितम्बर १७६५ ई. में क्लाइब ने अजीम खाँ को हटाकर धीरज नारायण को बिहार का प्रशासक नियुक्‍त किया। बिहार प्रशासन की देखरेख के लिए तीन सदस्यीय परिषद्‌ की नियुक्‍ति १७६६ ई. में की गई जिसमें धीरज नारायण, शिताब राय और मिडलटन थे। द्वैध शासन लॉर्ड क्लाइब द्वारा लागू किया गया था जिससे कम्पनी को दीवानी प्राप्ति होने के साथ प्रशासनिक व्यवस्था भी मजबूत हो सके। यह द्वैध शासन १७६५-७२ ई. तक रहा। १७६६ ई. में ही क्लाइब के पटना आने पर शिताब राय ने धीरज नारायण के द्वारा चालित शासन में द्वितीय आरोप लगाया। फलतः क्लाइब ने धीरज नारायण को हटाकर शिताब राय को बिहार का नायब नजीम को नियुक्‍त किया। बिहार के जमींदारों से कम्पनी को लगान वसूली करने में अत्यधिक कठिन एवं कठोर कदम उठाना पड़ता था। लगान वसूली में कठोर एवं अन्यायपूर्ण ढंग का उपयोग किया जाता था। यहाँ तक की सेना का भी उपयोग किया जाता था। जैसा कि बेतिया राज के जमींदार मुगल किशोर के साथ हुई थी। इसी समय में (हथवा) हूसपुरराज के जमींदार फतेह शाही ने कम्पनी को दीवानी प्रदान करने से इंकार करने के कारण सेना का उपयोग किया गया। लगान से कृषक वर्ग और आम आदमी की स्थिति अत्यन्त दयनीय होती चली गई। द्वैध शासनकाल या दीवानी काल में बिहार की जनता कम्पनी कर संग्रह से कराहने लगी। क्लाइब २९ जनवरी १७६७ को वापस चला गया। वर्सलेट उत्तराधिकारी के रूप में २६ फ़रवरी १७६७ से ४ दिसम्बर १७६७ तक बनकर आया। उसके बाद कर्रियसे २४ दिसम्बर १७६९ से १२ अप्रैल १७७२ उत्तराधिकारी रूप बना। फिर भी बिहार की भयावह दयनीय स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। १७६९-७० ई.में बिहार-बंगाल में भयानक अकाल पड़ा।

१७७० ई. में बिहार में एक लगान परिषद्‌ का गठन हुआ जिसे रेवेन्यू काउंसिल ऑफ पटना के नाम से जाना जाता है। लगान्‌ परिषद के अध्यक्ष जार्ज वंसीतार्त को नियुक्‍त किया गया। इसके बाद इस पद पर थामस लेन (१७७३-७५ ई.), फिलिप मिल्नर इशक सेज तथा इवान ला (१७७५-८० ई. तक) रहे। १७८१ ई. में लगान परिषद को समाप्त कर दिया गया तथा उसके स्थान पर रेवेन्यू ऑफ बिहार पद की स्थापना कर दी गई। इस पद पर सर्वप्रथम विलियम मैक्सवेल को बनाया।२८ अगस्त १७७१ पत्र द्वारा कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स ने द्वैध शासन को समाप्त करने की घोषणा की।

१३ अप्रैल १७७२ को विलियम वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का गवर्नर नियुक्‍त किया गया। १७७२ ई. में शिताब राय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये। उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र कल्याण सिंह की बिहार के पद पर नियुक्‍ति हुई। बाद में कलकत्ता परिषद्‌ से सम्बन्ध बिगड़ जाने से उसे हटा दिया गया। उसके बाद १७७९ ई. में सारण जिला शेष बिहार से अलग कर दिया गया। चार्ल्स ग्रीम को जिलाधिकारी बना दिया गया। १७८१ ई. में प्रान्तीय कर परिषद्‌ को समाप्त कर रेवेन्यू चीफ की नियुक्‍ति की गई। इस समय कल्याण सिंह को रायरैयान एवं खिषाली राम को नायब दीवान नियुक्‍त कर दिया गया।




इसी समय भरवल एवं मेंसौदी के रेंटर हुसैन अली खाँ जो बनारस राजा चैत्य सिंह के विद्रोह में शामिल था उसे गिरफ्तार कर लिया गया। हथवा के राजा फतेह सिंह, गया के जमींदार नारायण सिंह एवं नरहर के राजा अकबर अली खाँ अंग्रेजों के खिलाफ हो गये। १७८१-८२ ई. में ही सुल्तानाबाद की रानी महेश्‍वरी ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। १७८३ ई. में बिहार में पुनः अकाल पड़ा, जॉन शोर को इसके कारणों एवं प्रकृति की जाँच हेतु नियुक्‍त किया गया। जॉन शोर ने एक अन्‍नागार के निर्माण की सिफारिश की। १७८१ ई. में ही बनारस के राजा चैत्य सिंह का विद्रोह हुआ इसी समय हथवा के राजा फतेह सिंह, गया के जमींदार नारायण सिंह एवं नरहर के जमींदार राजा अकबर अली खाँ भी अंग्रेजों के खिलाफ खड़े थे। १७७३ ई. में राजमहल, खड्‍गपुर एवं भागलपुर को एक सैन्य छावनी में तब्दील कर जगन्‍नाथ देव के विद्रोह को दबाया गया। १८०३ ई. में रूपनारायण देव के ताल्लुकदारों धरम सिंह, रंजीत सिंह, मंगल सिंह के खिलाफ कलेक्टर ने डिक्री जारी की फलतः यह विद्रोह लगान न देने के लिए हुआ। १७७१ ई. में चैर आदिवासियों द्वारा स्थायी बन्दोबस्त भूमि कर व्यवस्था विरोध में विद्रोह कर दिया। मीर जाफर द्वारा सत्ता सुदृढ़ीकरण के लिए १७५७-५८ ई. तक खींचातानी होती रही।

अली गौहर के अभियान- मार्च १७५९ में मुगल शहजादा अली गौहर ने बिहार पर चढ़ाई कर दी परन्तु क्लाइब ने उसे वापसी के लिए बाध्य कर दिया, फिर पुनः १७६० ई. बिहार पर चढ़ाई की। इस बार भी वह पराजित हो गया। १७६१ ई. शाहआलम द्वितीय का अंग्रेजों के सहयोग से पटना में राज्याभिषेक किया।

१७६४ ई. बक्सर का युद्ध हुआ। युद्ध के बाद बिहार में अनेकों विद्रोह हुए। इस समय बिहार का नवाब मीर कासिम था।

जॉन शोर के सिफारिश से अन्‍नागार का निर्माण पटना गोलघर के रूप में १७८४ ई. में किया गया। जब बिहार में १७८३ ई. में अकाल पड़ा तब अकाल पर एक कमेटी बनी जिसकी अध्यक्षता जॉन शोर था उसने अन्‍नागार निर्माण की सिफारिश की। गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस के आदेश पर पटना गाँधी मैदान के पश्‍चिम में विशाल गुम्बदकार गोदाम बना इसका निर्माण १७८४-८५ ई. में हुआ। जॉन आस्टिन ने किया था। १७८४ ई. में रोहतास को नया जिला बनाया गया और थामस लॉ इसका मजिस्ट्रेट एवं क्लेवर नियुक्‍त किया गया। १७९० ई. तक अंग्रेजों ने फौजदारी प्रशासन को अपने नियन्त्रण में ले लिया था। पटना के प्रथम मजिस्ट्रेट चार्ल्स फ्रांसिस ग्राण्ड को नियुक्‍त किया गया था। १७९० ई. तक अंग्रेजों ने फौजदारी प्रशासन को अपने नियन्त्रण में ले लिया था। पटना के प्रथम मजिस्ट्रेट चार्ल्स फ्रांसिस ग्राण्ड को नियुक्‍त किया गया था। १७५७ ई. से लेकर १८५७ ई. तक बिहार में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह चलता रहा। बिहार में १७५७ ई. से ही ब्रिटिश विरोधी संघर्ष प्रारम्भ हो गया था। यहाँ के स्थानीय जमींदारों, क्षेत्रीय शासकों, युवकों एवं विभिन्‍न जनजातियों तथा कृषक वर्ग ने अंग्रेजों के खिलाफ अनेकों बार संघर्ष या विद्रोह किया। बिहार के स्थानीय लोगों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ संगठित या असंगठित रूप से विद्रोह चलता रहा, जिनके फलस्वरूप अनेक विद्रोह हुए।




हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Whats’App ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *