Bihar Board Class 9Th Hindi chapter 3 ग्राम-गीत का मर्म Solutions | Bseb class 9Th Chapter 3 ग्राम-गीत का मर्म Notes

Bihar Board Class 9Th Hindi chapter 3 ग्राम-गीत का मर्म Solutions | Bseb class 9Th Chapter 3 ग्राम-गीत का मर्म Notes

प्रश्न- ग्राम गीत का मर्म में लेखन ने मर्म शब्द का प्रयोग क्यों किया है ? सुधांशु जी (लेखक) के विचारों को प्रस्तुत करें। 
उत्तर— ‘ग्राम गीत का मर्म’ के लेखक लक्ष्मी नारायण सुधांशु प्रकृति प्रेमी थे एवं उनको ग्रामीण जीवन से काफ़ी लगाव था। इस निबंध में मर्म का अर्थ प्राण है अर्थात जो शरीर में रक्त संचारण करे वह मर्म कहलाता है। यानि जिन कारणों एवं विषयों पर ग्रामगीत आधारित होता है वह इसका मर्म कहलाता है।
प्रश्न- जीवन का आरंभ जैसे शैशव है, वैसे ही कला-गीत का ग्राम-गीत है। लेखक के इस कथन का क्या आशय है ?
उत्तर— लेखक कहते हैं कि जैसे जीवन का आरंभ बचपन से होता है वैसे ही कला-गीत का प्रारंभ ग्राम गीतं से होता है क्योंकि ग्राम गीतों में जीवन की शुद्धता व भावो की सरलता का मार्मिक वर्णन मिलता है। ग्रामगीत के माध्यम से मनुष्य की लालसा, वासना, प्रेम, वीरता, क्रोध व कर्तव्य की व्याख्या आसानी से की जा सकती है।
प्रश्न- गार्हस्थ कर्म विधान में स्त्रियाँ किस तरह के गीत गाते हैं ? 
उत्तर— स्त्री प्रकृति में गार्हस्थ्य कर्मविधान से गीतों की रचना का अटूट संबंध है। चक्की पीसते समय, धान कूटते समय महिलाएँ शरीर – श्रम को कम करने के लिए मधुर गीत गाते हैं वहीं जन्म, मुंडन, विवाह, पर्व-त्योहार के मौको पर उल्लास से भरी गीत गायी जाती है।
प्रश्न- मानव जीवन में ग्राम गीतों का क्या महत्व है ? 
उत्तर— मानव जीवन में ग्राम-गीत मनोरंजन का अच्छा साधन होता है। धान कूटते समय, चरखा काटते समय या खेती के समय शारीरिक श्रम को हल्का करने के लिए गीत गाये जाते हैं। कहीं-कहीं प्रेम, वीरता, क्रोध आदि को दिखाने के लिए भी गीतों को गाया जाता है।
प्रश्न- “ग्राम-गीत हृदय की वाणी है, मस्तिष्क की ध्वनि नहीं”-आशय स्पष्ट करे।
उत्तर— सामान्यतः ग्राम-गीतों में मस्तिष्क की आवाज न सुनकर, हृदय की वाणी को वरियता दी जाती है। हल जोतने, नाव खेवने, पालकी ढ़ोने आदि के समय पुरूषो ने भी गीत बनाये परन्तु इनमें उन्होंने मस्तिष्क का उपयोग किया। वहीं स्त्रियों द्वारा तैयार की गई गीतों में उनकी कोमल भावना को दर्शाया जाता है। इसलिए कहा गया है “ग्राम गीत हृदय की वाणी है, मस्तिष्क की ध्वनि नहीं।”
प्रश्न- ग्राम-गीत की प्रकृति क्या है ?
उत्तर— ग्राम गीत की प्रकृति स्त्रैण है क्योंकि गाँव में जितने भी बड़े अवसर जैसे जन्म, मुंडन, विवाह, यज्ञ आदि होते हैं उनमें स्त्रियों के द्वारा ही गीत गये जाते हैं।
प्रश्न- कला-गीत एवं ग्राम-गीत में क्या अंतर है ? 
उत्तर— ग्राम-गीत में जीवन की शुद्धता और भावो की सरलता का जो वर्णन मिलता है वह कला-गीत में नहीं मिलता। ग्राम-गीत के अन्तर्गत मानवीय जीवन के संस्कार जैसे जन्म, मृत्यु, विवाह आदि से जुड़े गीत गाये जाते हैं वहीं कला-गीत में मुक्तक और प्रबन्ध काव्य का समावेश होता है। ग्राम गीत को जो प्रकृति स्त्रैण थी वह कला गीत में आकर पौरूषपूर्ण हो गई।
प्रश्न- ‘ग्रामगीत का ही विकास कला गीत में हुआ’। कैसे ? पठित पाठ के आधार पर बताये।
उत्तर— कला गीत के इतिहास के अध्ययन से यह पता चलता है कि अभी भी कलागीत ग्राम गीतों के संस्कार से मुक्ति नहीं पा सका है। सभ्य जीवन के अनुक्रम में कलागीत अत्यधिक सांस्कृतिक और अर्थपूर्ण हो गया है। परन्तु इसकी नींव ग्राम गीतों से ही रखी गयी है अर्थात हम कह सकते हैं कि ग्रामगीत ही सभ्य रूप लेकर कलागीत में परिवद्रित हो गयी
प्रश्न- ग्राम गीतों में प्रेम दशा की क्या स्थिति है ?
उत्तर— ग्रामगीतों में प्रेम दशा को अत्यंत व्यापकत्व व विधायनी बताया गया है। प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है वह क्रोध, शोक, उत्साह, विस्मय तथा जुगुत्सा में नहीं दिखता ।
प्रश्न- ग्राम-गीतों में मानव जीवन के किन प्राथमिक चित्रों का दर्शन होते हैं ?
उत्तर— ग्राम गीतों में मनुष्य की अपनी लालसा, वासना, प्रेम, घृणा, उल्लास आदि प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं।
प्रश्न- ग्राम-गीतों का मुख्य विषय क्या है ? निबंध के आधार पर लिखें :- 
उत्तर— ग्रामगीतों का मुख्य विषय पारिवारिक जीवन है। प्रेम विवाह, सास-ससुर के बर्ताव, माँ, बाप, भाई-बहन आदि का स्नेह को ही ज्यादातर ग्रामगीतों में दिखाया जाता है। जन्म, मुण्डन, यज्ञोपबीत, विवाह, पर्व-त्योहार आदि के अवसर पर ग्रामगीत ही गाये जाते हैं।
प्रश्न- ग्रामगीत का मेरूदंड क्या है ?
उत्तर— अत्यंत मांगलिक अवसरों जैसे-विवाह, मुण्डन, यज्ञ, आदि के समय निर्धन से निर्धन परिवार भी नियमों का पालन करते हैं। इसलिए एक दरिद्र गृहिणी भी भोजन का अन्न सोने के सूप में फटककर साफ करती है। अतः दरिद्रता के बीच संपत्तिशलता का यह रूप ही ग्राम-गीत का मेरूदंड है।
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