चिन्तन में सहायक एवं बाधक तत्त्वों को स्पष्ट कीजिए।

चिन्तन में सहायक एवं बाधक तत्त्वों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – चिन्तन के सहायक तत्त्व (Favourable Elements of Thinking)— चिन्तन के सहायक तत्त्व निम्नलिखित हैं—
(1) ध्यान एवं रुचि (Attention and Interest) –चिन्तन में ध्यान एवं रुचि का बड़ा महत्त्व होता है । यदि समस्या पर ध्यान केन्द्रित होगा तो हम उसका समाधान शीघ्रता से खोज लेंगे। यदि उसमें हमारी रुचि होगी तो भी हम ध्यानपूर्वक समस्या पर चिन्तन-मनन कर सकते हैं।
(2) अभिप्रेरणा (Motivation)–चिन्तन के लिए अभिप्रेरणा/ प्रेरणा के अभाव में चिन्तन सम्भव नहीं है। प्रेरणा से चिन्तन के लिए आवश्यक शक्ति संचालन आसानी से हो पाता है।
(3) बुद्धि का विस्तृत क्षेत्र (Wide Range of Intelligence)– चिन्तन प्रक्रिया के लिए बुद्धि का विस्तृत क्षेत्र होना चाहिए। चिन्तन के लिए समझ का होना बहुत जरूरी होता है।
(4) विकास काल (Incubation) – चिन्तन के लिए विकासकाल भी अनुकूल तत्त्व है। जब चिन्तन किया जा रहा हो और हल नहीं निकल रहा हो तो थोड़ी देर चिन्तन को विराम देकर फिर चिन्तन शुरू करना चाहिए। इस काल में समस्या समाधान के लिए हल का विकास होता है और अन्ततः समस्या का समाधान निकल जाता है ।
(5) सतर्कता एवं लचीलापन (Alterness and Flexibility) – सार्थक और सकारात्मक चिन्तन के लिए सतर्कता एवं लचीलापन भी उपयुक्त तत्त्व है। सतर्कता से चिन्तन गलतियाँ नहीं होती तथा लचीलेपन से चिन्तन में पूर्वाग्रह एवं रूढ़िवादिता का समावेश नहीं होता है।
(6) समय सीमा का बन्धन नहीं (No Time Limitation) – समस्या के समाधान के लिए चिन्तन स्वाभाविक रूप से होना चाहिए तथा इसमें समय सीमा का बन्धन नहीं होना चाहिए। जल्दबाजी में समस्या का समाधान उचित नहीं होता है ।
चिन्तन के बाधक तत्त्व (Unfavourable Elements of
Thinking)– चितन के बाधक तत्त्व निम्नलिखित हैं—
(1) पूर्वाग्रह ( Prejudice) — पूर्वाग्रह चिन्तन में बाधक होता है। पूर्व से हम यदि किसी विषय वस्तु के बारे में सोच लेते हैं और खुले दिमाग से चिन्तन नहीं करते हैं तो समस्या का हल प्राप्त करने में कठिनाई होती है ।
(2) संवेग (Emotions)— संवेगों का चिन्तन पर विपरीत और प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। संवेगावस्था में मानसिक विभेद उत्पन्न होना या गड़बड़ा जाना स्वाभाविक होता है। उदाहरण के लिए क्रोधावस्था में आदमी ठीक से और सही चिन्तन नहीं कर सकता है। अतः सार्थक और सकारात्मक चिन्तन के लिए संवेगों पर नियंत्रण होना आवश्यक है।
(3) सुझाव ( Suggestions ) — सुझाव भी एक तरह से चिन्तन में बाधक होते हैं क्योंकि व्यक्ति सुविधा और निर्देशानुसार ही चिन्तन करता है। अतः सार्थक चिन्तन के लिए सुझाव नहीं वरन् आत्म निर्देशन / स्व निर्देशन / स्वनिर्णय लेने की आवश्यकता है।
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