निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए —

निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए —

(ब) बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
(ब) गर्भधारण पूर्व निदान तकनीकी अधिनियम, 1994

अथवा
पीसीपीएनडीटी अधिनियम क्या है ?
उत्तर — (अ) बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 –  बाल विवाह वह है जिसमें लड़के या लड़की की कम उम्र में शादी की जाती है। यह प्रथा पुराने जमाने से हमारे देश में चली आ रही है। एक ऐसी लड़की का विवाह जो 18 साल से कम की है, या ऐसे लड़के का विवाह जो 21 साल से कम का है, बाल विवाह कहलाएगा और इसे बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 द्वारा प्रतिबंधित किया गया है।
बाल विवाह के लिए दोषी –  18 साल से अधिक लेकिन 21 साल से कम उम्र का बालक जो विवाह करता है। जिस बालक या बालिका का विवाह हो, उसके माता-पिता, संरक्षक अथवा वे व्यक्ति जिनकी देखरेख में बालक/बालिका हैं। वह व्यक्ति जो बाल विवाह को संपन्न संचालित करें अथवा दुष्प्रेरित करें। जैसे बाल विवाह कराने वाला पंडित आदि । वह व्यक्ति जो बाल विवाह कराने में शामिल हो या ऐसे विवाह करने के लिए प्रोत्साहित करें, निर्देश दे या बाल विवाह को रोकने में असफल रहे अथवा उसमें सम्मिलित हो । वह व्यक्ति जो मजिस्ट्रेट के विवाह निषेध सम्बन्धी आदेश की अवहेलना करें।
बाल विवाह के लिए दण्ड – बाल विवाह के आरोपियों को दो साल तक का कठोर कारावास या एक लाख रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों एक साथ हो सकते हैं। बाल विवाह कराने वाले माता-पिता, रिश्तेदार, विवाह कराने वाला पंडित, काजी आदि भी हो सकता है। जिसको तीन महीने तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
बाल विवाह कानून के तहत किसी महिला को कारावास की सजा नहीं दी जा सकती। केवल जुर्माना भरना पड़ेगा।
बाल विवाह की शिकायत—जिस व्यक्ति का बाल विवाह करवाया जा रहा हो, उसका कोई रिश्तेदार, दोस्त या जानकार बाल विवाह के बारे में थाने जाकर पूरी जानकारी दे सकता है। इस पर पुलिस पूछताछ करके मजिस्ट्रेट के पास रिपोर्ट भेज देगी। मजिस्ट्रेट के कोर्ट में केस चलेगा और बाल विवाह साबित होने पर अपराधी व्यक्तियों को सजा दी जायेगी।
बाल विवाह निषेध अधिकारी के कर्त्तव्य – इस कानून के तहत राज्य सरकार द्वारा एक अधिकारी नियुक्त किया जाता है, जिसके निम्नलिखित कर्त्तव्य होंगे—
(1) बाल विवाह रोकने के लिए कदम उठाना।
(2) बाल विवाह के निषेध के लिए कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों के प्रभावी अभियोजन के लिए साक्ष्य जमा करना।
(3) बाल विवाह को बढ़ावा न देने/मदद न करने / सहायता न करने।
(4) अनुमति न देने के लिए लोगों और स्थान के निवासियों को सलाह देना।
(5) बाल विवाह और संबंधित मुद्दों पर चर्चा व उसके दुष्परिणामों के बारे में जागरूकता और संवेदीकरण बनाना।
(6) बाल विवाह निषेध अधिकारी (सी एम पी ओ) एक लोक सेवक है और सद्भावना कार्य करने के लिए उसके खिलाफ कोई कारवाई नहीं की जा सकेगी।
( ब ) गर्भधारण पूर्व निदान तकनीकी अधिनियम, 1994 – गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन का प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 (पी सी पी एन डी टी) (वर्ष 2003 में यथा संशोधित)
(1) पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PCPNDT) अधिनियम, 1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए भारत की संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक’ पी एन डी टी’ एक्ट 1996, के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जाँच पर पाबन्दी है ।
(2) यह प्रसव पूर्व निदान तकनीक के रूप में जेण्डर संबंधी लिंग-निर्धारण तथा लिंग चयनित उन्मूलन को रोकने और उसके दुरुपयोग पर रोक लगाता है ।
अपराध और दण्ड—
पी सी पी एन डी टी से सम्बन्धित विज्ञापन का निषेध – लिंग चयन की सेवाएँ प्रदान करने से संबंधित विज्ञापन से जुड़े किसी व्यक्ति/ संगठन को एक ऐसी अवधि के लिए दंडित किया जा सकता है, जो 3 वर्ष हो तथा इसके साथ ₹10,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
चिकित्सा कार्मिक को दण्ड – कोई चिकित्सा कार्मिक जो लिंग चयन करता है या अपनी सेवाएँ किसी चिकित्सा क्लीनिक में देता है, जहाँ ये सेवाएँ प्रदान की जाती हैं तो उसे एक ऐसी अवधि के लिए दंडित किया जा सकता है, जो 3 वर्ष हो तथा इसके साथ 10,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
यदि एक गर्भवती महिला को अपने पति या किसी रिश्तेदार द्वारा लिंग निर्धारण कराने के लिए मजबूर किया जाता है तो उन्हें इस अपराध के लिए एक ऐसी अवधि के लिए दंडित किया जा सकता है जो 3 वर्ष हो तथा इसके साथ ₹10,000 तक का जुर्माना लगया जा सकता है ।
कंपनियों द्वारा अपराध – यदि किसी भी कंपनी को पी सी पी एन डी टी का दोषी पाया जाता है, तो प्रत्येक प्रभारी व्यक्ति को अपराध के समय दंडित किया जाएगा।
पी सी पी एन डी टी अधिनियम के किसी उल्लंघन को–
(1) तुरन्त पुलिस द्वारा पंजीकृत कराएँ और किसी भी स्रोत से ज्ञान/सूचना प्राप्त करने  पर जाँच करें।
(2) इस अपराध के लिए जमानत नहीं दी जायेगी ।
( 3 ) एफ, आई. आर. के माध्यम से पंजीकृत और अदालत द्वारा मुआवजे के भुगतान से नहीं निपटाई गई शिकायत को मुकदमे से ही तय किया जायेगा।
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