निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये—

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये—

(i) माता-पिता को पृष्ठपोषण
(ii) ग्रेडिंग प्रदान करने की विधियाँ
उत्तर – माता-पिता को पृष्ठपोषण (Feedback to Parents) — छात्र के जीवन में माता-पिता की भूमिका अभिन्न होती है। छात्र के जीवनचर्या की सबसे महत्त्वपूर्ण व सूक्ष्म जानकारी उसके मातापिता को अधिक होती है अतः यदि किसी शिक्षक को छात्र के विषय में सूचना प्राप्त करनी हो या उसको परिणामों व गतिविधियों को सम्प्रेषित करना हो तो वह एक पृष्ठपोषण सत्र (Feedback Session) का आयोजन कर सकता है। सम्मुख पृष्ठपोषण (Face-to-face feedback) सबसे उत्तम पृष्ठपोषण होता है। यह पृष्ठपोषण निष्कर्ष तथा संस्तुतियों विचारविमर्श करने की अनुमति देता है।
पृष्ठपोषण सत्र को सफल बनाने के लिए माता-पिता की सन्तुष्टि आवश्यक है। कई माता-पिता इस सत्र में शिक्षक का पूर्ण समर्थन करते हैं तो कई माता-पिता आक्रामक (Aggressive) हो जाते हैं। एक शिक्षक को माता-पिता के साथ सम्प्रेषण में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। यदि शिक्षक किसी छात्र के बारे में नकारात्मक या अस्पष्ट सूचना देता है तो कुछ अभिभावक चिन्तित भावुक हो जाते हैं व कुछ सामान्य रहते हैं। माता-पिता को पृष्ठपोषण देते समय शिक्षक को छात्र की सभी सकारात्मक, नकारात्मक तथा सुधारात्मक गतिविधियों की संक्षेप में सूचना देनी चाहिए जिससे माता-पिता भी अपने स्तर से पृष्ठपोषण प्राप्त करने में सहयोग प्रदान कर सकें ।
किसी छात्र के दुर्व्यवहार के बारे में उसके माता-पिता से बात करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इस स्थिति में शिक्षक एक अच्छे पृष्ठपोषण की उम्मीद कैसे कर सकता है जबकि प्रतिक्रिया के नकारात्मक होने की सम्भावना अधिक हो ? शिक्षक के सवालों तथा टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया माता अथवा पिता में से किसी की भी हो सकती है। शिक्षक अपने पूर्व अनुमान से माता-पिता की प्रतिक्रिया की उम्मीद निम्न प्रकार से करता है—
(i) शिक्षक की टिप्पणी रक्षात्मक हो ।
(ii) माता-पिता की इच्छानुरूप पृष्ठपोषण हो ।
(iii) छात्रों के अनुशासनहीन व्यवहार के लिए दोषारोपण न हो ।
(iv) छात्रों के दुर्व्यवहार को कम करने के लिए सुधारात्मक व्यवस्था हो न कि दण्डात्मक हो ।
माता-पिता को पृष्ठपोषण प्रदान करने के चरण (Stages to Provide Feedback to Parents) – शिक्षक द्वारा दिया जाने वाला पृष्ठपोषण चरणबद्ध होना चाहिए जिसके द्वारा वह माता-पिता के खुले विचारों को प्राप्त कर सकता है। छात्रों के विषय में प्राय: माता-पिता खुलकर विचार व्यक्त नहीं करते अतः ऐसा वातावरण बनाया जाए जिससे पृष्ठपोषण पूर्ण सन्तुष्ट करने वाला हो। अपने बच्चों की बात आने पर बहुत से व्यावहारिक माता-पिता भी तर्कहीन हो जाते हैं। निम्न विधियों के द्वारा माता-पिता की सहयोगिता को बढ़ाया जा सकता है
(1) एक माता-पिता को संशय का लाभ दे (Give a Parent the Benefit of the Doubt) – यदि शिक्षक यह मानता है कि सभी माता-पिता अपने बच्चों को प्यार करते हैं और उनके जीवन के लिए सब कुछ अच्छा करना चाहते हैं, तब शिक्षक और अधिक प्रभावी ढंग से उन लोगों के साथ संवाद करने की संभावना रहती । इस मान्यता को शिक्षक प्रत्येक माता-पिता के साथ संवाद करते समय ध्यान में रखना चाहिए।
माता-पिता की मनोदशा को समझने के लिए शिक्षक को निम्नलिखित बातों का ज्ञान होना चाहिए—
(i) सभी माता-पिता को अपने बच्चे बहुत प्रिय होते हैं।
(ii) वे अपने बच्चों के लिए रखते हैं।सबसे अच्छी वस्तु की अपेक्षा
(iii) माता-पिता शिक्षक से अपने बच्चों की सराहना सुनना पसन्द करते हैं ।
(iv) माता-पिता अपने बच्चों के पोषण तथा व्यक्तिगत विकास के लिए प्रतिबद्ध होते हैं ।
(v) माता-पिता सम्मान की इच्छा रखते हैं।
(2)  माता-पिता को पहले सुनने का अवसर (First Listen to Parents)—आप जब तक किसी व्यक्ति के दृष्टिकोण, विचार को सुनेंगे नहीं तब तक उसको समझ नहीं सकते हैं । अतः एक शिक्षक को पहले माता-पिता को बोलने का अवसर देना चाहिए। अधिकांश मातापिता अपने बच्चों की धारणा बताना चाहते हैं। माता-पिता अपनी चिन्ताओं को शिक्षक से साझा करते हैं किन्तु वे अपने बच्चों के द्वारा किए गए कार्यों से गर्व का अनुभव भी साझा करते हैं । अतः एक शिक्षक को चाहिए कि वह अपने चेहरे के भावों से यह प्रकट करें कि वह उनकी बातों को ध्यानपूर्वक सुन रहा है। निम्न प्रकार से शिक्षक जता सकता है कि वह माता-पिता की बात सुन रहा है —
(i) वार्तालाप के समय माता-पिता की ओर दृष्टि केन्द्रित करनी चाहिए ।
(ii) उनकी बातों पर सहमति होने पर सिर हिलाना चाहिए ।
(iii) प्रासंगिक सवाल पूछने चाहिए।
(iv) शिक्षक को तटस्थ तथा शांत रहना चाहिए ।
(3) सकारात्मक दबाव का चिह्न (Positive Accentuate) – माता-पिता को पृष्ठपोषण देने से पहले शिक्षक को उनके बच्चों के बारे में सकारात्मक टिप्पणी देनी चाहिए। बच्चों के रचनात्मक व्यवहार को बताने में अधिक जोर देना चाहिए। उदाहरण के लिए – जब दो बच्चे खेलते हैं तो वे हमेशा एक-दूसरे को सकारात्मक प्रतिक्रिया ही देते हैं जिसके कारण वे खेल का पूर्ण आनन्द लेते हैं । अतः इसी प्रकार शिक्षक व माता-पिता में भी तालमेल होना चाहिए जिससे वे पृष्ठपोषण का पूर्ण लाभ उठा सकें।
(4) हर कीमत पर बचाव करने से बचें (Avoid Defensiveness at Any Costs)– शिक्षक सबसे सकारात्मक सन्देह वाहक होता है किन्तु फिर भी शिक्षक के कुछ भी संवाद माता-पिता को क्रोधित करने के लिए पर्याप्त होते हैं। कुछ माता-पिता अपने बच्चे के प्रति ऐसी आलोचना का सामना करने के बाद अपना धैर्य खो देते हैं तथा शिक्षक से बहस करके शान्ति को भंग कर देते हैं। ऐसी परिस्थति में शिक्षक को मौन रहकर अथवा चेहरे के हाव-भावों के द्वारा पृष्ठपोषण प्रदान करना चाहिए अर्थात् शिक्षक का अमौखिक व्यवहार उसके शब्दों से कहीं अधिक प्रभावशाली होना चाहिए।
(5) विचारों का प्रत्यक्ष सम्प्रेषण (Communicatien your Thoughts Directly) — शिक्षक को पृष्ठपोषण देते समय अपने विचारों को स्पष्ट रूप से, शान्त तथा संक्षेप में माता-पिता के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। शिक्षक चाहे छात्र के लिए पृष्ठपोषण दे रहा हो अथवा मातापिता के व्यवहार के लिए पृष्ठपोषण दे रहा हो। उसके विचारों के सम्प्रेषण से यह बिन्दु स्पष्ट होना चाहिए। अतः इन सन्देहों को समाप्त करने के लिए शिक्षक को सीधा संवाद करना चाहिए जिससे माता-पिता अपने बच्चों का गलत समर्थन करने का विरोध करें। छात्र अथवा उसके माता-पिता के बारे में यदि शिक्षक का विचार नकारात्मक है तब भी उसको प्रत्यक्ष रूप से प्रदर्शित करना चाहिए। इससे माता-पिता को अपने बच्चों की आलोचना सुनने की क्षमता का विकास होगा तथा वे पृष्ठपोषण का महत्त्व समझने में सफल होंगे।
(6) भविष्य की योजना (Plan Ahead) – इससे पहले कि आप किसी भी विषय पर माता-पिता को सूचित करने के लिए बात करें तो यह सुनिश्चित करें कि आप क्या कहना चाहते हैं और आप क्या आशा करते हैं इस वार्तालाप के माध्यम से हम सब बिन्दुओं का पूर्व नियोजन करना एक शिक्षक के लिए आवश्यक है। यदि शिक्षक मातापिता को सूचित करता है कि वह उनके बच्चे के बारे में बात करना चाहता है तथा उसके लिए एक मीटिंग का समय तय करता है किन्तु उस समय शिक्षक के पास समय न होने पर माता-पिता पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः इन सब विवादों से बचने के लिए पूर्व योजना बनाना आवश्यक है ।
(ii) ग्रेडिंग प्रदान करने की विधियाँ (Methods of Providing). Grading) – ग्रेडिंग प्रदान करने की निम्नलिखित विधियाँ हैं—
(1) वितरण – अन्तराल विधि (Distribution Gap Method)– पाठ्यक्रम ग्रेड या परीक्षण पर आधारित इस विधि का प्रयोग व्यापक रूप से होता है। ये विधि छात्रों के सापेक्ष रैंकिंग पर आवृत्ति वितरण या छात्रों के परीक्षा परिणाम पर आधारित होती है। आवृत्ति वितरण विधि सावधानीपूर्वक अन्तराल, कई लगातार स्कोर जिनकी आवृत्ति शून्य है का निरीक्षण करती है। एक क्षैतिज रेखा अन्तराल के शीर्ष पर खींची जाती है जबकि द्वितीय अन्तराल को खोजा जाता है। ये प्रक्रिया उस समय तक लगातार अपनायी जाती है जब तक कि सभी ग्रेड रेंज की पहचान नहीं कर ली जाती है। समस्त अन्तरालों की पहचान तथा भ्रम की स्थिति से बचने के लिए सतत् टेस्ट स्कोर को अपनाया जाना चाहिए। इससे अन्तराल की संभावना विभिन्न स्थानों पर स्पष्ट रूप से प्रकट होगी ।
(2) प्रतिशत ग्रेडिंग (Percent Grading) – प्रतिशत ग्रेडिंग का प्रयोग ग्रेड देने के लिए सर्वाधिक किया जाता है। इसमें छात्रों से लिखित परीक्षाएँ, प्रोजेक्ट, परीक्षण इत्यादि के माध्यम से उनके ज्ञान, कौशल एवं योग्यता का मापन किया जाता है। उनके प्राप्तांक के आधार पर ग्रेड प्रदान किया जाता है। जैसे—किसी 100 अंकों की परीक्षा में छात्र ने 85 प्रश्नों को सही किया और 85 अंक प्राप्त किए तो उसका प्रतिशत 85 कहलाएगा। लम्बे समय तक किसी भी रूप में प्रतिशत ग्रेडिंग का प्रयोग संदिग्ध माना जाता है।
(3) वक्र पर ग्रेडिंग (Grading on the Curve) – ग्रेड प्रदान करने की यह विधि समूह तुलना (Group Comparisons) पर आधारित है। इसमें किसी की मनमाने ढंग से ग्रेड प्रदान नहीं किया जाता है। इसमें प्रत्येक को रोड़ उसके प्रदर्शन के आधार पर प्रदान किया जाता है जो पूर्व में निर्धारित होता है। इसमें अधिकतम दस प्रतिशत लोग एक समान ग्रेड प्राप्त कर सकते हैं। इसके पश्चात् मध्य एवं निम्न प्रेड का निर्धारण प्राप्त अंकों या स्कोर के आधार पर किया जा सकता है। कोटा-सेटिंग रणनीति ( Quota Setting Strategies) प्रशिक्षक से प्रशिक्षक एवं विभाग की अलग करती है एवं बहुत ही कम औचित्यपूर्ण प्रतिवाद को अपनाती है। कुछ प्रशिक्षक सामान्य वक्र या घंटी आकार के वक्र (Bell Shaped Curve) के उपयोग का बचाव करते हुए कहते हैं कि यह कोटा-सेटिंग के लिए एक उपयुक्त मॉडल है।
(4) सापेक्ष ग्रेडिंग विधि (Relative Grading Method) – सापेक्ष ग्रेडिंग विधि का उपयोग उस स्थिति में किया जाता है जब कक्षा का बड़ा (40 से अधिक छात्र) होता है। ऐसे में छात्रों को समूह में विभाजित कर समूह-तुलना के माध्यम से सापेक्ष ग्रेडिंग प्रदान की जाती है। इसके लिए कुछ आवश्यक प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है जिसका वर्णन निम्नलिखित है
प्रत्येक परीक्षण के पश्चात् रा स्कीर (Raw Score) को मानक स्कोर (Z-T) में परिवर्तित कर लिया जाता है। इसके लिए मानक विचलन, माध्य को उपयुक्त परीक्षणों, पेपर के सेट एवं प्रस्तुतियों के माध्यम से ज्ञात करते हैं। मानक स्कोर हमें एक सामान्य मानक मापदण्ड के साथ प्रत्येक ग्रेडिंग घटक पर प्रदर्शन का आंकलन करने की संस्तुति करते हैं। जब सापेक्ष तुलना का निर्माण किया जाता है, उस स्थिति में रा स्कोर (Raw Score) को ग्रेड एवं औसत में अलग-अलग परिवर्तित करने की सलाह नहीं दी जाती है। ऐसा करने से छात्रों की उपलब्धियाँ समाप्त हो जाएगी उनके अन्तर आपस में समाहित हो जाएँगे और छात्र एक व्यापक श्रेणी में वर्गीकृत के लिए बाध्य होंगे।
यदि माध्य (Mean) एवं माध्यिका (Median) समान मूल्य के होते हैं तो आगे की संगणना के लिए माध्य का प्रयोग करते हैं अन्यथा माध्यिका का प्रयोग करते हैं। माना हमने माध्यिका को चुना और उसके पश्चात् मानक विचलन की माध्यिका से समान मूल्य की माध्यिका को घटा देते हैं। ये ‘सी’ के लिए कट ऑफ अंक होता है। पूर्ण कार्य या गुणवत्तापूर्ण कार्य के लिए उपलब्ध अन्य सापेक्ष आँकड़ों का प्रयोग करें जिससे पुनर्मूल्यांकन किया जा सके तथा त्रुटियों को ढूँढ़ा जा सके।
(5) पूर्ण मानक ग्रेडिंग विधि (Absoulte Standard Grading Method) – पूर्ण मानक ग्रेडिंग विधि शिक्षण एवं अधिगम रणनीतियों के साथ संगतता स्थापित करने की एक महत्त्वपूर्ण विधि है। प्रशिक्षक शिक्षार्थी के व्यवहार को अनुदेशन के अन्त में वर्णन करता है जिससे ग्रेडिंग के तत्वों का निर्धारण किया जा सके तथा प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जा सके। शिक्षा का लक्ष्य/उद्देश्य छात्रों को अधिगम के लिए मार्गदर्शन करना तथा उनकी उपलब्धियों का मापन करना है। प्रत्येक बार परीक्षण के ध्यम से छात्र की उपलब्धि को मापा जाता है, जो स्कोर की तुलना प्रशिक्षक द्वारा निर्धारित मापदण्डों पर की जाती है, छात्र न्यूनतम मापदण्ड स्तर को नहीं प्राप्त करते हैं, उन्हें पुन: अपना पेपर लिखना होता है या उनके प्रोजेक्ट में परिवर्तन कर फिर से मूल्यांकन किया जाता है। यह प्रक्रिया उस समय तक अपनाई जाती है, जब तक छात्र प्रशिक्षक द्वारा स्थापित न्यूनतम मानकों को पूरा नहीं कर लेता है। यह मानक इस ग्रेडिंग विधि की सफलता की महत्त्वपूर्ण चाबी (Key) है।
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