पर्यावरण प्रदूषण क्या है ? इसके कितने प्रकार हैं ? वायु प्रदूषण के कारण एवं उसे रोकने के उपायों को उदाहरण सहित समझाइये ।
पर्यावरण प्रदूषण क्या है ? इसके कितने प्रकार हैं ? वायु प्रदूषण के कारण एवं उसे रोकने के उपायों को उदाहरण सहित समझाइये ।
उत्तर – पर्यावरणीय प्रदूषण–प्रदूषण का अर्थ है दूषित करना या अशुद्ध करना। वे तत्व जो किसी पदार्थ को दूषित करते हैं प्रदूषक (Pollutants) कहलाते हैं। पर्यावरण हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पृथ्वी, जल, वायु आदि प्राकृतिक पर्यावरण के मुख्य अंग हैं। जब कोई प्रदूषक पर्यावरण के एक या अधिक अंगों से मिलकर इन्हें मनुष्य के प्रयोग के अयोग्य या हानिकारक बना देता है तो इसे प्राकृतिक पर्यावरण का प्रदूषण कहा जाता है। प्रदूषण चाहे भौतिक तत्वों का हो अथवा सामाजिक व जैविक तत्वों का, इससे पर्यावरण में रहने वाले सभी जीव प्रभावित होते हैं ।
(i) इ. पी. ओडम के अनुसार, “वायु, जल एवं मृदा के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में होने वाला ऐसा अवांछित परिवर्तन जो मनुष्य के साथ ही सम्पूर्ण परिवेश के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्वों को हानि पहुँचाता है, प्रदूषण कहलाता है। “
(ii) आर. इ. डेस्मान के अनुसार, “पर्यावरण प्रदूषण उस स्थिति को कहते हैं जब मानव द्वारा पर्यावरण में अवांछित तत्वों एवं ऊर्जा का उस सीमा तक संग्रहण हो जाए जो पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा आत्मसात् न किए जा सकें।”
(iii) अमेरिकी राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अनुसार, “प्रदूषण वायु, भूमि तथा जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन है, जिससे मनुष्य या अन्य जीवों की प्रक्रियाओं, जीवन दशाओं, सांस्कृतिक गुणों तथा प्राकृतिक संसाधनों को कोई हानि हो या हानि होने की आशंका हो।”
पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार-निम्न हैं हैं—
(1) वायु प्रदूषण, (2) जल प्रदूषण, (3) मृदा प्रदूषण, (4) ध्वनि प्रदूषण, (5) रेडियोधर्मी प्रदूषण, (6) नैतिक प्रदूषण।
वायु प्रदूषण के कारण– वायु प्रदूषण के स्रोतों का वर्गीकरण सामान्यतः प्रचलित दो रूपों में किया जाता है। इन स्रोतों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार हैं–
(1) वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत कुछ प्राकृतिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप भी वायु प्रदूषण होता है, यद्यपि वह सीमित व क्षेत्रीय होता है। इसमें ज्वालामुखियों के उद्गार एक प्रमुख प्राकृतिक प्रक्रिया है जिससे विस्फोट के क्षेत्र का वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है। ज्वालामुखी उद्गार के समय विशाल मात्रा में धुआँ राख एवं चट्टानों के टुकड़े तथा अनेक प्रकार की गैसें तीव्र गति से वायुमण्डल में प्रवेश करती हैं और वहाँ प्रदूषण में वृद्धि करती है। वनों में लगने वाली आग भी प्रदूषण का कारण बनती है क्योंकि इससे धुआँ व राख के कण विस्तीर्ण हो जाते हैं। तेज हवाओं एवं आंधी तूफानों के धूलकण भी वायु प्रदूषण के कारण हैं।
(II) वायु प्रदूषण के मानवीय स्रोत–मानव अपनी विभिन्न क्रियाओं से वायु को दूषित करता जा रहा है। उद्योग, परिवहन, रसायनों के प्रयोग में वृद्धि, ऊर्जा के विविध उपयोग आदि ने मानव को अनेक सुविधाएँ प्रदान करने के साथ ही वायु प्रदूषण का संकट भी उपस्थित किया है। इन मानवीय स्रोतों का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया गया है—
(1) दहन क्रियाओं द्वारा – मनुष्य अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु ऊर्जा का उपयोग करता है और इसके लिए वह विभिन्न दहन क्रियाएँ करता है जिससे विभिन्न प्रकार की गैसें एवं सूक्ष्म कण वायु में प्रविष्ट होकर उसे दूषित करते हैं। इस दहन क्रिया में प्रमुख घरेलू कार्यों में दहन, वाहनों में दहन, ताप विद्युत ऊर्जा हेतु दहन सम्मिलित हैं। —
(i) घरेलू कार्यों में वहन — भोजन बनाने, पानी गर्म करने, चाय बनाने, दूध गर्म करने आदि अनेक घरेलू कार्यों में मानव लकड़ी, कोयला, गोबर के कण्डे, मिट्टी का तेल व गैस आदि का प्रयोग करता है। इस दहन क्रिया में कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड आदि गैसें उत्पन्न होकर वायु को प्रदूषित करती हैं।
(ii) वाहनों में दहन—सभी तरह के वाहनों जैसे मोटर, कार, ट्रक, रेल, बस, वायुयान, मोटरसाइकिल, जलयान आदि में दहन हेतु पेट्रोल, डीजल, कोयला अन्य पेट्रोलियम पदार्थों का उपयोग किया जाता है जो प्रदूषण के कारण बनते हैं। पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के धुएँ में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड व लैड भी होता है। डीजल से चलने वाले वाहनों के धुएँ में, कार्बन कण, हाइड्रोकार्बन, कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड उपस्थित रहते हैं। पेट्रोल चालित वाहन डीजल वाहनों से अधिक प्रदूषण फैलाते हैं। –
(iii) ताप विद्युत ऊर्जा हेतु दहन—कोयले को जलाकर ताथ ऊर्जा (Thermal Power) प्राप्त करने से वायु प्रदूषण का खतरा अधिक बढ़ जाता है। कोयले के जलने से सल्फर डाई-आक्साइड, कार्बन के ऑक्साइड, अन्य गैसें, धुआँ, राख एवं कालिख पैदा होकर वायु को प्रदूषित करते हैं। राजस्थान में कोटा नगर में स्थापित ताप विद्युत केन्द्र से विगत वर्षों में नगर का पर्यावरण अत्यधिक प्रदूषित हो रहा है।
( 2 ) उद्योगों द्वारा वर्तमान समय में उद्योग वायु प्रदूषण मुख्य स्रोत हैं। उद्योगों से उत्पन्न होने वाला वायु प्रदूषण उद्योग के प्रकार, आकार, कच्चा माल, उत्पाद, उपउत्पाद, संयंत्र आदि पर निर्भर करता है। उद्योगों में एक ओर दहन क्रिया होती है और दूसरी ओर विविध पदार्थों का धुआँ चिमनियों से निकलकर वायु को प्रदूषित करता है। रासायनिक उद्योगों से निकलने वाली गैस वायु प्रदूषण फैलाती हैं।
अम्लीय वर्षा (Acid rain) भी वायु प्रदूषण का एक खतरनाक प्रकार है जब सल्फर डाई-ऑक्साइड वायु में पहुँच कर सल्फरिक एसिड में परिवर्तित हो जाता है तो वह सूक्ष्म जलकणों के रूप में नगरों पर छाया रहता है और अन्त में जलकणों के रूप में गिरता है, जिसमें सल्फेट आयन अधिक होता है— तब उसे अम्लीय वर्षा कहते हैं जो मानव तथा वनस्पति के लिए अत्यन्त हानिकर होती है ।
(3) विलायकों के प्रयोग द्वारा—अनेक प्रकार के पालिश, स्प्रे, पेन्ट आदि करने के लिए जिन विलायकों का प्रयोग किया जाता है जिनके हाइड्रोकार्बन पदार्थ वायु में मिलकर प्रदूषित करते हैं । विभिन्न रसायन शालाओं में प्रयोग किए जाने वाले विलायक, असावधानी से वायु में पहुँच कर उसे प्रदूषित करते हैं।
(4) कृषि कार्यों द्वारा–वर्तमान समय में कृषि की प्रक्रिया में भी वायु प्रदूषण होने लगा है। यह प्रदूषण फसल को रोगों एवं कीटों से बचाने व अधिक उत्पादन हेतु कीटनाशक एवं पेस्ट, दवाइयों के छिड़काव तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से होता है। ये पाउडर या द्रव रूप में होते हैं। छिड़काव के उपरान्त इनके सूक्ष्म कण वायुमण्डल में तैरते रहते हैं और वायुमण्डल को प्रदूषित करते हैं।
(5) निर्माण कार्य—बांधों, नहरों, सुरंगों, इमारतों आदि के निर्माण के समय भारी मशीनरी एवं उपकरणों का उपयोग खुदाई, लदाई, ढलाई आदि अनेक कार्यों में होता है। इसके अतिरिक्त मिट्टी एवं चट्टानों की खुदाई आदि के दौरान भी वायु प्रदूषण होता है। भारत में केरल की शांत-घाटी परियोजना को इसी कारण बन्द किया गया था।
( 6 ) युद्ध एवं विस्फोटक पदार्थों द्वारा—युद्ध में अनेक प्रकार के विस्फोटक पदार्थ, केमिकल, हथियार, जैविक हथियार एवं परमाणु व न्यूट्रान बमों का उपयोग किया जाता है। इनमें से अनेक हानिकारक एवं विनाशक रसायन वायुमण्डल में प्रवेश कर जाते हैं जैसा कि 1991 के खाड़ी युद्ध के समय में हुआ। इससे पूरी पृथ्वी का पर्यावरण दूषित होने का खतरा भी उत्पन्न हो जाता है।
(7) खनन द्वारा — खानों में खनन कार्य करते समय खनिज के कण एवं धूल उत्पन्न होती है। खनिज के प्रकार के अनुसार विभिन्न खनिज धूल से विभिन्न रोग फैलते हैं जैसे सिलिका धूल से सिलिकासिस,, एसबेस्टस धूल से एस्बेस्टिसस आदि। यह रोग मुख्यतः श्वसन एवं फेफड़ों के होते हैं।
( 8 ) रेडियोधर्मिता द्वारा–परमाणु शक्ति का प्रयोग मनुष्य को असीम शक्ति प्रदान करता है परन्तु तनिक-सी सावधानी वायु प्रदूषण फैलाने व मौत का कारण बन जाती है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, नाभिकीय रिएक्टरों या इन संयंत्रों में दुर्घटनाओं एवं परमाणु बम विस्फोट से रेडियो एक्टिव पदार्थ वायुमण्डल में दूर-दूर तक फैल जाते हैं तथा बाद में धीरेधीरे अवपात (Fall out) के रूप में जमीन पर आ जाते हैं। इनसे पूरा वातावरण रेडियो एक्टिव विकिरण से प्रभावित होता है ।
उपर्युक्त वायु प्रदूषण के स्रोतों या कारणों के विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोतों से अधिक भयंकर दुष्प्रभाव मानवीय स्रोतों का पड़ता है।
वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के उपाय— वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया जा सकता है–
(1) परम्परागत ईंधन जैसे लकड़ी, कोयला आदि को घर में जलाने को रोकना अथवा सीमित करना होगा। इसके साथ ही उन्नत तकनीक के चूल्हे निर्धूम चूल्हे का उपयोग करने को अनिवार्य बनाया जाए।
(2) फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषकों से मानव आबादी को बचाने के लिए फैक्ट्रियाँ दूरस्थ स्थानों पर वायु प्रवाह दिशा के विपरीत स्थानों पर आधारित की जानी चाहिए।
(3) फैक्ट्रियों की चिमनियों की ऊँचाई अधिक निर्धारित मापदण्ड अनुसार रखनी होगी।
(4) स्वचालित वाहनों से प्रदूषण बहुत बढ़ गया है अतः इन पर रोक लगाना अथवा इनकी कार्य प्रणाली में सुधार करना होगा जिससे ये प्रदूषक कम उगले। इनके धुएँ निकलने वाले पाइप के मुँह पर छलनी एवं पश्च ज्वलक बर्नर लगाना चाहिए। एन्जिन सही कार्य करें इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए। शीशा रहित पेट्रोल एवं डीजल का उपयोग करना चाहिए।
(5) वायु प्रदूषण को रोकने के लिए प्रभावी कानून समय-समय पर सरकार द्वारा बनाए गए हैं परन्तु दृढ़ता से उनका पालन किया जाना चाहिए।
(6) फैक्ट्रियों में प्रदूषण शमक उपकरणों एवं तकनीकी का उपयोग करना होगा। इसके लिए वैद्युत अवक्षेपित एवं चक्रावात पृथक्कारी उपकरण लगाने चाहिए ये वायु प्रदूषण को कम करने का कार्य करते हैं।
(7) वायु प्रदूषण को रोकने के लिए संपन वृक्षारोपण किया जाना चाहिए। पृथ्वी पर 33 प्रतिशत वन होने पर प्रदूषण न्यून होगा। उद्योग के चारों और हरित पट्टी की निर्धारित एवं निश्चित कर देना चाहिए। ऐसा आबादी क्षेत्र के चारों ओर भी किया जाना चाहिए।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here