पाठ्यचर्या निर्माण में आने वाली प्रमुख बाधाओं का उल्लेख कीजिये ।

पाठ्यचर्या निर्माण में आने वाली प्रमुख बाधाओं का उल्लेख कीजिये ।

उत्तर–पाठ्यचर्या निर्माण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाएँ निम्न हैं—
( 1 ) शिक्षकों की जड़ता एवं रूढ़िबद्धता—किसी भी शैक्षिक कार्यक्रम का आयोजन एवं उसका क्रियान्वयन शिक्षकों द्वारा ही किया जाता है। नवीन कार्यक्रमों का क्रियान्वयन एवं उनकी सफलता शिक्षकों में पाठ्यचर्या के प्रति उत्साह, श्रमशीलता एवं भविष्योन्मुख सोच पर निर्भर करती है। प्रसिद्ध पाठ्यचर्या विशेषज्ञ डॉ. सी.ई. बी बी के अनुसार, “पाठ्यचर्या में परिवर्तन लाने तथा नवाचारों को अपनाने के मार्ग में शिक्षकों की जड़ता एवं रूढ़िवादिता सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न करती है। शिक्षक नवीन प्रयोग करने में, नवाचारों को अपनाने में तथा उसका संरक्षण करने में संकोच करते हैं। अभिभावकों तथा अन्य शैक्षिक रुचि वाले अभिकरणों की प्रतिकूल प्रक्रियाओं का भी उन्हें भय रहता है।”
( 2 ) राष्ट्रीय हठधर्मिता—पाठ्यचर्या विकास के सम्बन्ध में किसी राष्ट्र के सम्मुख दो स्थितियाँ होती हैं: पहली किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था विदेशी प्रतिमानों पर नहीं चल सकती इसलिए उसे अपने प्रतिमान विकसित करने की परम आवश्यकता है। दूसरी–दूसरे देशों के सफल शिक्षा सम्बन्धी प्रयोगों से प्रत्येक देश न्यूनाधिक अंशों में अवश्य लाभान्वित हो सकता है। इस प्रकार जहाँ एक तरफ किसी विदेशी प्रतिमान का अन्धानुकरण किसी देश के लिए हानिप्रद सिद्ध हो सकता है, वहीं दूसरी ओर किसी उपयोगी विचार व दृष्टिकोण को विदेशी होने के कारण अस्वीकार कर देना भी अविवेकपूर्ण कार्य है|
( 3 ) आस्थाओं एवं सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्धता में कमीकिसी भी कार्यक्रम की सफलता आस्था, दृढ़ता तथा उसके सिद्धान्तों के प्रति प्रतिबद्धता पर निर्भर होती है। नवीन परिवर्तनों के प्रति कार्यकर्ताओं में अधिकांशतः आस्था एवं विश्वास की कमी पाई जाती है जिससे वे उसके प्रति प्रतिबद्ध भी नहीं हो पाते हैं। ऐसे में इन परिवर्तित कार्यक्रमों से सम्बन्धित व्यक्ति ऊपरी मन से ही इन्हें स्वीकार करते हैं जिसके परिणामस्वरूप परिवर्तन के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है।
(4) अभिमत एवं आस्था में विभेद कर सकने की असमर्थता – परिवर्तन के प्रति अभिमत एवं आस्था को सामान्यतया एक ही अर्थ में ले लिया जाता है लेकिन इनमें अन्तर होता है। अभिमत आस्था की दिशा में ही एक कदम है फिर भी इसे आस्था नहीं माना जा सकता है। आस्था में अभिमत की अपेक्षा बहुत अधिक दृढ़ता होती है।
( 5 ) परम्परा के प्रति प्रेम एवं झुकाव—पाठ्यचर्या में सम्मिलित होने वाले सभी प्रकरणों एवं अन्तर्वस्तुओं का कुछ न कुछ औचित्य होता है। कुछ प्रकरणों का कुछ समय बाद कोई औचित्य नहीं रह जाता तथा वे कालातीत हो जाते हैं लेकिन फिर भी वे पाठ्यचर्या के अंग बने रहते हैं। परम्पराओं के प्रति झुकाव के कारण ही ऐसा होता है। इस कमी को समस्त स्तरों की पाठ्यचर्याओं एवं शैक्षिक कार्यक्रमों में अनुभव किया जाता है। ऐसे प्रकरण जो पाठ्यचर्या के आकार को केवल विस्तृत करते हैं उन्हें पाठ्यचर्या से निकालकर उनके स्थान पर उपयोगी एवं समयानुकूल प्रकरण को सम्मिलित करना चाहिए।
( 6 ) समुचित नियोजन का अभाव–समुचित नियोजन पाठ्यचर्या विकास के लिए अति आवश्यक है। समुचित नियोजन के अभाव में प्रभावी पाठ्यचर्या सम्भव नहीं हो सकती है। इसके अतिरिक्त परिवर्तन के प्रति प्रायः सभी क्षेत्रों में एक मनोवैज्ञानिक अवरोध की भावना भी पाई जाती है। इस अवरोध की भावना को समुचित नियोजन द्वारा कम किया जा सकता है तथा धीरे-धीरे इसे समाप्त भी किया जा सकता है लेकिन प्रायः यह देखने में आता है कि अनेक पाठ्यचर्या सम्बन्धी कार्यक्रमों का समुचित नियोजन नहीं किया जाता है तथा उनके क्रियान्वयन का उचित रूप से निरन्तर मूल्यांकन भी नहीं किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप शैक्षिक कार्यक्रम विफल हो जाते हैं।
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