प्रोजेक्ट से आप क्या समझते हैं ? इसके विभिन्न पदों को समझाइये ।
प्रोजेक्ट से आप क्या समझते हैं ? इसके विभिन्न पदों को समझाइये ।
अथवा
शिक्षण की प्रयोजना विधि क्या है ? इस विधि के पदों की विस्तृत विवेचना कीजिये ।
उत्तर – प्रायोजना (Project) – अधिकांश विद्यालयों में शिक्षा पद्धति व्यक्तिगत जीवन से दूर केवल सूचना एवं तकनीकी प्रदान करने मात्र तक ही सीमित रहती है। छात्र निष्क्रिय श्रोता बनकर सूचनाओं को ग्रहण करते हैं किन्तु इन सूचनाओं पर चिन्तन-मनन कर उन्हें चरितार्थ करने का प्रयास नहीं के बराबर होता है। बालकों की वैयक्तिक विभिन्नता पर ध्यान दिये बिना सभी छात्रों को समान रूप से यन्त्रवत् शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षण विधियों को प्रयुक्त किया जाता है । अत: विद्यालय के कार्यों में अधिकांश छात्र रुचि नहीं लेते हैं। सामाजिक दृष्टिकोण के अभाव में भी बालक के वर्तमान एवं भावी जीवन से शिक्षा नहीं जुड़ पाती है। यही कारण है कि बालकों को शिक्षा से जोड़ने तथा उसे सार्थक बनाने के उद्देश्य से किलपैट्रिक महोदय ने प्रायोजना सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। किलपैट्रिक (W.H. Kilpatrik) के अनुसार प्रायोजना वह क्रिया है जिसमें पूर्ण संलग्नता के साथ सामाजिक वातावरण में बालकों के द्वारा लक्ष्य प्राप्त किया जाता है। इस विधि में छात्रों के समक्ष एक समस्या प्रस्तुत की जाती है और उसका हल निकालने के लिए छात्रों को अभिप्रेरित किया जाता है। इसमें छात्र अपनी रुचि के अनुसार काम करता है।
थॉमस तथा लैंग ( Thomas and Lenga) के अनुसार, “प्रायोजना इच्छानुसार सम्पादित वह कार्य है जिसमें रचनात्मक प्रयास अथवा विचार हो और जिससे कुछ मूर्त परिणाम निकले। “
बैलार्ड (Ballard) के अनुसार, “प्रायोजना यथार्थ जीवन का ही एक भाग है जो विद्यालय में किया जाता है। “
किलपैट्रिक के अनुसार, “प्रायोजना वह सहृदय उद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण संलग्नता से सामाजिक वातावरण में किया जाता है अथवा एक प्रायोजना वह उद्देश्यपूर्ण कार्य है जो पूर्ण निष्ठा के साथ सामाजिक वातावरण में सम्पन्न किया जाता है।”
प्रायोजना के पद (Steps of Project) –प्रायोजना के निम्न पद होते हैं—
(1) परिस्थिति उत्पन्न करना (Creating the Situation )– शिक्षक बालकों की योग्यताओं क्षमताओं के आधार पर स्थिति परिस्थितियों का निर्माण करें जिनके द्वारा बालक किसी न किसी समस्या या प्रायोजना को स्वयं चुन सके ।
(2) प्रायोजना कार्य का चुनाव (Choosing the Project)– बालकों ने जिन-जिन परिस्थितियों का अध्ययन किया है उनसे सम्बन्धित ऐसी परिस्थिति का निर्माण किया जाता है कि बालक स्वयं प्रायोजना का चुनाव कर लेता है ।
(3) रूपरेखा तैयार करना (Planning the Project)– प्रायोजना के चयन के उपरान्त उसे पूर्ण करने के लिए छात्र कार्यक्रम बनाते हैं। कार्यक्रम के निर्धारण में बालकों को आपसी विचार-विमर्श की स्वतंत्रता दी जाती है ।
(4) प्रायोजना का क्रियान्वयन (Execution of the Project)– कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार होने के बाद प्रायोजना के अन्तर्गत कार्य प्रारम्भ हो जाता है। बालकों का समूह अपने-अपने स्तर पर सौंपे गये दायित्वों का निर्वहन करते हैं ।
(5) प्रायोजना कार्य का मूल्यांकन (Evaluating of the Project)– कार्य पूरा कर लेने के पश्चात् यह आवश्यक हो जाता है कि बालक अपने समूह द्वारा किये कार्य का स्वयं निरीक्षण तथा मूल्यांकन करे। इससे बालकों में आत्म आलोचना का विकास होता है।
(6) कार्य का लेखा-जोखा रखना (Recording of the Project)– विद्यार्थियों द्वारा प्रायोजना के चुनाव से लेकर पूरा कार्य होने तक सभी क्रिया-कलापों का ब्यौरा रखा जाता है। वे अपने कार्य के बारे में कठिनाइयों तथा कार्य की समालोचना आदि कार्य पंजिका में अंकित करते हैं। वे किये गये कार्य, उनकी विधियाँ, उपकरण, पुस्तकें आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन लिखकर रखते हैं, जो भविष्य में काम आता है।
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