बालक पर समुदाय के शैक्षिक प्रभाव की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
बालक पर समुदाय के शैक्षिक प्रभाव की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।
उत्तर – बालक पर समुदाय के शैक्षिक प्रभाव को निम्न प्रकार समझाया जा सकता है—
(1) मानसिक विकास – समुदाय में बच्चे अपनी मूल शक्तियों के विकास के लिए पूरा-पूरा अवसर प्राप्त करते हैं, विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों से मिलते हैं, विभिन्न परिस्थितियों में से होकर गुजरते हैं, विभिन्न विषयों पर तर्क-वितर्क करते हैं। परिणामस्वरूप उनका मानसिक एवं बौद्धिक विकास होता है। समुदाय द्वारा आयोजित विभिन्न समारोह, नाटक, सिनेमा आदि की सहायता से भी बच्चों का मानसिक विकास होता है।
(2) शारीरिक विकास – बच्चे परिवार तथा समुदाय के सदस्यों का अनुकरण कर रहन-सहन के तरीके सीखते हैं। स्वस्थ रहने के लिए आदतों का निर्माण परिवार और समुदाय के सदस्यों का अनुकरण करने से ही होता है। समुदाय के सदस्य स्थान-स्थान पर व्यायाम शाखाएँ, अखाड़े, खेल के मैदान और पार्क आदि की व्यवस्था करते हैं इससे बच्चों के शारीरिक विकास में बड़ी सहायता मिलती है। समुदा स्थानीय निकायों का संगठन करते हैं जो सफाई की व्यवस्था करते हैं या जनसाधारण को स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कराते हैं और लोगों के रोगग्रस्त होने पर चिकित्सा की व्यवस्था करते हैं जो समुदाय ये सब कार्य नहीं करते, उनसे बच्चों के शारीरिक विकास की आशा नहीं की जा सकती।
(3) आध्यात्मिक विकास – बच्चे के आध्यात्मिक विकास में भी समुदाय का हाथ रहता है। यदि समुदाय धर्मप्रधान होता है तो बच्चों में धार्मिक भावना का विकास होता है। वे आत्मा और परमात्मा के बारे में सोचते हैं। यदि समुदाय में धर्म का स्थान नहीं होता तो परिवार में पड़े धार्मिक संस्कार भी धुँधले पड़ने लगते हैं। हमारा देश धर्म प्रधान देश है कोई भी समुदाय धर्म विहीन नहीं है। हमारे यहाँ तो समुदायों में बड़े-बड़े धार्मिक संगठन हैं। वे अनेक संस्थाओं का निर्माण करते हैं और धर्म का प्रचार करते हैं । धर्म प्रचार और आध्यात्मिकता के विकास में भारतीय समुदय विशेष रूप से प्रयत्नशील है।
(4) सामाजिक विकास – समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह होता है जिसके सदस्यों के बीच ‘हम’ की भावना होती है और इसके सदस्य आपस में मिल-जुलकर रहते हैं और अपनी सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति एक दूसरे के सहयोग से करते हैं। ऐसे समूहों के बीच बच्चों में प्रेम, सहानुभूति और प्रेम की भावना बढ़ती है। उनमें दया, क्षमा, त्याग और परोपकार आदि गुणों का विकास होता है और वे समाज में समायोजन करना सीखते हैं। इस प्रकार उनका सामाजिक विकास होता है ।
समुदाय में समय-समय पर साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक आयोजन होते रहते हैं। बच्चे भी उनमें भाग लेते हैं समुदाय प्रौढ़ शिक्षा, जन शिक्षा और स्त्री शिक्षा की व्यवस्था कर इस ओर बहुत अधिक सहायक होते हैं ।
(5) व्यावसायिक एवं औद्योगिक शिक्षा – जिस समुदाय में जो व्यवसाय व उद्योग होते हैं, बच्चे प्रायः उन्हीं से सीखते हैं। कृषक के बच्चे को खेती करने की शिक्षा उसके अपने परिवार और गाँव के अन्य लोगों से मिल जाती है। शेष शिक्षा भी बच्चे अपने परिवार से ही ग्रहण करते हैं, हाँ भारी उद्योगों की शिक्षा के लिए उन्हें विद्यालयों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके लिए समुदाय विद्यालयों और महाविद्यालयों का निर्माण करते हैं। आज तो कृषि और कुटीर उद्योग धन्धों की शिक्षा की व्यवस्था भी विद्यालयों में होने लगी है परन्तु बिना समुदाय के सहयोग के ये भी अपना कार्य करने में सफल नहीं हो सकते ।
(6) सांस्कृतिक विकास – बच्चे जिस समुदाय में रहते हैं उसी के तौर-तरीके सीखते हैं। रीति-रिवाज, मूल्यों और मान्यताओं की शिक्षा भी बच्चे समुदाय से ही प्राप्त करते हैं। उन सबके प्रति उनमें एक भावनात्मक संगठन होता है और वह उनकी संस्कृति कहलाती है। समुदाय विभिन्न औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा संस्थाओं का निर्माण कर संस्कृति का संरक्षण करते हैं। उनमें वांछित विकास करने का प्रयत्न करते हैं, इन कार्यों को विद्यालय के माध्यम से पूरा किया जाता है।
(7) चारित्रिक एवं नैतिक विकास – बच्चे के चारित्रिक एवं नैतिक विकास में परिवार के बाद समुदाय का ही प्रभाव पड़ता है। जो बच्चे ऐसे समुदाय में रहते हैं और अनुशासन का आदर करते हैं तो ऐसे समुदायों में रहने वाले बच्चे अनुशासित होते हैं। उदार विचारों वाले समुदायों के बच्चों में उदारता की भावना का विकास होता है । वे नम्रता तथा सहयोग के साथ कार्य करना सीखते हैं। समुदाय का उच्च धार्मिक पर्यावरण सहिष्णुता को जन्म देता है और उससे बच्चों में अनेक चारित्रिक एवं नैतिक गुणों का विकास होता है। धार्मिक व्यक्ति प्रेम, सहानुभूति और सहयोग में विश्वास रखते हैं और विश्व बन्धुता की भावना से प्रेरित होते हैं। वे सत्य के पुजारी होते हैं और प्राणी मात्र की सेवा के लिए तत्पर रहते हैं । इस प्रकार समुदाय का शुद्ध धार्मिक पर्यावरण बच्चों में चारित्रिक एवं नैतिक दृष्टि से प्रभाव डालता है। पतित समुदाय में रहकर बच्चे अनैतिक हो जाते हैं ।
समुदाय ही विद्यालयों का निर्माण कर उनमें समाज के उच्च, नैतिक पर्यावरण प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते हैं तथा इस प्रकार समाज को सुधार की ओर ले जाते हैं। जो समुदाय इस ओर जितने अधिक सचेत हैं, उनके द्वारा बच्चों का उतना ही अधिक चारित्रिक एवं नैतिक विकास होता है।
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