भूमिज विद्रोह (Bhumij or Land Revolt)
भूमिज विद्रोह (Bhumij or Land Revolt)
भूमिज विद्रोह को गंगानारायण हंगामा (Ganga Narayan Hangama) भी कहा जाता है। यह विद्रोह जनजातीय जमींदारों और जनजातीय लोगों का संयुक्त विद्रोह था, जिसकी अगुआई बड़ाभूम के राजा बेलाक नारायण के पोते गंगानारायण ने की थी।
भूमिज विद्रोह (1832-33 ई.)
विद्रोह के कारण एवं स्वरुप :
ढालभूम, बड़ाभूम और पाटकुम परगना, जो उन दिनों मिदनापुर (वर्तमान में प. बंगाल) जिला में शामिल थे, वहां गंगा-नारायण के नेतृत्व में भूमिज आदिवासियों का व्यापक | विद्रोह हुआ। यह विद्रोह बड़ाभूम राजा, पुलिस के अधिकारीगण, मुंसिफ, नमक-दरोगा तथा अन्य दिक्कुओं के खिलाफ भूमिजों के शिकायत की देन थी। साथ ही स्थानीय व्यवस्था पर कंपनी की शासन व्यवस्था का थोपा जाना भी लोगों को पसंद नहीं था। इस तरह चारों तरफ व्यापक निराशा और आदिवासियों के उत्पीड़न ने इस विद्रोह को आवश्यक बना दिया। आदिवासियों को न्याय की कोई आशा नहीं थी, क्योंकि पुलिस भ्रष्ट थी, कचहरियों के अमला नाजायज फायदा उठाते थे और राजस्व अधिकारी उनका शोषण करते थे। छोटे अधिकारियों की घूसखोरी आम बात थी। इस तरह जबरन वसूली, संपत्ति से वंचित किया जाना और अपमान एवं उत्पीड़न की पृष्ठभूमि में भूमिजों के लिए विद्रोह के अलावा कोई चारा नहीं रह गया।
इस विद्रोह की शुरुआत 6 अप्रैल, 1832 को बड़ाभूम परगना के दीवान माधव सिंह की क्रूर हत्या से हुई। बड़ाभूमि परगना के जमींदार के चचेरे भाई गंगानारायण सिंह ने यह हत्या की थी। बड़ाभूम के गद्दी के वास्तविक हकदार गंगानारायण सिंह के पिता की उपेक्षा करके उन्हें पैतृक संपत्ति से बेदखल करना ही इस विद्रोह का मुख्य कारण था।
जनजातीय परंपरा में पटरानी का पुत्र ही गद्दी का वास्तविक हकदार होता था। किंतु गंगानारायण के पिता के विपक्षियों ने कंपनी से मिलकर ऐसा नहीं होने दिया और उन्हें गद्दी से वंचित होना पड़ा क्योंकि अंग्रेज सबसे बड़े लड़के के उत्तराधिकारी के नियम को मानते थे।
भूमिज विद्रोह के प्रमुख तथ्य (for MCQs) :
- भूमिज विद्रोह का आरंभ 1832 ई. में गंगा नारायण के नेतृत्व में हुआ। इसका प्रभाव वीरभूम और सिंहभूम के क्षेत्रों में रहा।
- यह विद्रोह वीरभूम (बड़ाभूम) राजा, पुलिस अधिकारियों, मुंसिफ, नमक दारोगा तथा अन्य दिक्कूओं के खिलाफ भूमिजों की शिकायतों की देन था।
- विद्रोह का दूसरा कारण स्थानीय व्यवस्था पर कम्पनी की शासन व्यवस्था का थोपा जाना था। साथ ही, इसके पीछे अंग्रेजों की दमनकारी लगान व्यवस्था से उत्पन्न असंतोष भी काम कर रहा था।
- भूमिज विद्रोह की विधिवत शुरुआत 26 अप्रैल, 1832 ई. को वीरभूम परगना के जमींदार के सौतेले भाई और दीवान माधव सिंह की हत्या के साथ हुई।
- यह हत्या गंगा नारायण सिंह के द्वारा की गयी। गंगा नारायण वीरभूम के जमींदार का चचेरा भाई था। दीवान के रूप में माधव सिंह काफी बदनाम हो चुका था। उसने कई तरह के करों को लगाकर जनता को तबाह कर दिया था।
- माधव सिंह के खिलाफ गंगा नारायण ने भूमिजों को एक अभूतपूर्व नेतृत्व प्रदान किया। माधव सिंह का अंत करने के पश्चात गंगा नारायण की टक्कर कंपनी के फौज के साथ हुई। कंपनी की फौज का नेतृत्व ब्रैडन एवं लेफ्टिनेंट टिमर के हाथों में था।
- कोल एवं हो जनजातियों ने. इस विद्रोह में गंगा नारायण का खुलकर साथ दिया।
- 7 फरवरी, 1833 ई. को खरसावां के ठाकुर चेतन सिंह के खिलाफ लड़ते हुए गंगा नारायण मारा गया।
- खरसावां के ठाकुर ने उसका सर काट कर अंग्रेज अधिकारी कैप्टन विलकिंसन के पास भेज दिया। गंगा नारायण के मारे जाने से कैप्टन विलिकिंसन ने राहत की सांस ली।
- गंगा नारायण के मृत्यु के पश्चात यह विद्रोह शिथिल पड़ गया।
- यद्यपि इस विद्रोह में गंगा नारायण की अंततः पराजय हुई, किन्तु इसने यह स्पष्ट कर दिया था कि जंगल महाल में प्रशासकीय परिवर्तन की आवश्यकता है।
- कोल विद्रोह की ही भांति भूमिज विद्रोह के बाद भी कई प्रशासनिक परिवर्तन लाने हेतु अंग्रेज विवश हुए।
- 1833 ई. के रेगुलेशन XIII के तहत शासन-प्रणाली में व्यापक परिवर्तन किया गया। राजस्व नीति में परिवर्तन हुआ एवं छोटानागपुर को दक्षिण-पश्चिम सीमांत एजेंसी का एक भाग मान लिया गया।
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