राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 से 1986 ने विकलांग बालकों की शिक्षा के लिए क्या कदम सुझाए हैं ?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 से 1986 ने विकलांग बालकों की शिक्षा के लिए क्या कदम सुझाए हैं ?
उत्तर – राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 से 1986 ने विकलांग बालकों की शिक्षा के लिए निम्न कदम सुझाए हैं—
(1) अध्यापकों को प्रशिक्षण – प्रत्येक विद्यालय के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किये हुए 7-8 अध्यापकों की आवश्यकता होगी। अगर हमें इस योजना में अपने उद्देश्य को प्राप्त करना है तो लगभग 3500-4000 प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होगी। इन अध्यापकों की संख्या उन अध्यापकों के अतिरिक्त है जो पहले से ही संस्थाओं में कार्यरत हैं।
(2) व्यावसायिक अध्यापकों को प्रशिक्षण – राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं को तथा क्षेत्रीय शिक्षा संस्थाओं को व्यावसायिक अध्यापकों को प्रशिक्षण का प्रबन्ध करना चाहिए इस योजना के अन्तर्गत लगभग 3000-4000 अध्यापकों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए यह प्रशिक्षण लगभग दो सप्ताह का होना चाहिए।
(3) व्यावसायिकों को प्रशिक्षण – अध्यापकों के अतिरिक्त, 400 मनोवैज्ञानिक तथा प्रत्येक जिला स्तर पर 2 डॉक्टरों की आवश्यकता पड़ेगी ताकि वे अपंग बालकों का स्तर निर्धारित कर उनके पुनर्वास का प्रबन्ध हो सके। दूसरे कार्यकर्त्ताओं को कम-से-कम दो सप्ताह का प्रशिक्षण आवश्यक है। इसके अतिरिक्त वाणी-सुधारक, बहरों के लिए भी प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता पड़ेगी।
(4) पाठ्यक्रम में बदलाव – अपंग बालकों की आवश्यकताओं व उनके सीखने के दौरान आने वाली परेशानियों को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम बनाना अति आवश्यक है उदाहरण के लिए एक अंधे बालक के लिए साइंस विषय के प्रैक्टिकल तथा एक बहरे बालक की एक से अधिक भाषा को सीखने की समस्या को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम में बदलाव आवश्यक है। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पाठ्यक्रम का कोई भाग छूट न जाये ।
(5) विशेष विद्यालयों की स्थापना – विशेष विद्यालयों की स्थापना जिला स्तर पर की जानी चाहिए शुरू करने के लिए कम्पोजिट विद्यालय स्थापित किये जाने चाहिए। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वहाँ की जनसंख्या कितनी है तथा माता-1 1-पिता बच्चों को दूर भेजना चाहते हैं या नहीं। निपुण अध्यापकों व प्रशिक्षकों की सेवाएँ बारी-बारी से एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय में ली जानी चाहिए लेकिन अगर एक जिले में अपंग बालकों की संख्या 60-70 तक हो जाती है तो वहाँ पर विशिष्ट विद्यालय की स्थापना की जानी चाहिए।
सातवीं योजना तक ऐसे 400 विद्यालय स्थापित किए जायेंगे। लेकिन उन जिलों को प्राथमिकता दी जाये जहाँ पर पहले से कोई विशिष्ट विद्यालय नहीं है । इन विद्यालयों में कम से कम 60 बच्चे विकलांग होने आवश्यक है। 8वीं योजना में 5,000 विद्यालय और स्थापित किये जायेंगे ताकि यह संख्या 7500 तक पहुँच जाये। नौवीं योजना के अन्त तक इनकी संख्या 10,000 करने का लक्ष्य रखा गया है।
(6) अनुदेशन व्यवस्था को प्रभावी बनाना – प्राय: यह देखने में आया है कि इन विद्यालयों में अनुदेशन व्यवस्था बड़ी ढीली ढाली होती है। अतः कार्यक्रम की सफलता के लिए अति आवश्यक है कि अनुदेशन व्यवस्था को प्रभावी बनाया जाए ताकि बच्चों को इसका लाभ मिल सके।
(7) परीक्षाओं में लचीलापन – गम्भीर रूप से अपंग बालकों के लिए परीक्षाओं में लचीलापन रखना अति आवश्यक है। इन विद्यालयों को एन.सी.ई.आर.टी. जहाँ पर इस प्रकार की सुविधा का सामान है, उनसे यह सामान प्राप्त करना चाहिए राष्ट्रीय केन्द्र जिनको विशेषता प्राप्त है उनकी सहायता लेनी चाहिए ताकि उसका लाभ बालकों को मिल सके।
(8) विद्यालयों का प्रभावी निरीक्षण – जो विद्यालय पहले से ही विशिष्ट शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, उनका प्रभावी ढंग से परीक्षण होना चाहिए तथा दूसरे सामान्य विद्यालयों की भाँति इनको भी सरकार द्वारा ग्रांट दी जानी चाहिए चूँकि बालकों की विभिन्नताएँ तथा आवश्यकताएँ अलग-अलग हैं। अतः यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पैसे की कमी नहीं रहे। समाज कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय को इस कार्य के लिए सहयोग करना चाहिए पुनर्वास केन्द्रों में कार्यरत लोगों को भी विशिष्ट बालकों की शिक्षा के लिए सहयोग करना चाहिए।
(9) व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र – प्रत्येक जिला स्तर पर, जहाँ पर विशिष्ट विद्यालय स्थापित किए गए हैं, उसके साथ या उसी विद्यालय में व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किए जाएँगे। इन विद्यालयों में विशिष्ट विद्यालयों में पढ़ रहे बालकों व दूसरे अपंग बालकों को जीविका कमाने के लिए प्रशिक्षण दिया जायेगा।
उस विशेष इलाके में जिन कार्यों से रोजगार मिलने की सम्भावना होगी, उन्हीं के लिए प्रशिक्षण दिया जायेगा। लड़के तथा लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल का निर्माण किया जाएगा। लड़कों के हॉस्टल के लिए 40 तथा लड़कियों के हॉस्टल के लिए 20 की संख्या होनी चाहिए यह हॉस्टल ‘विशिष्ट विद्यालय’ तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण केन्द्र के विद्यार्थियों के लिए होंगे।
(10) तकनीकी का प्रयोग – यह युग तकनीकी का युग है। सामान्य शिक्षा की भाँति विशिष्ट शिक्षा प्रदान करने में भी आधुनिक तकनीकी का प्रयोग करना चाहिए । इनका प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपंग बालकों की आवश्यकता के अनुसार इनका प्रयोग हो । रेडियो, टी.वी., वीडियो, कम्प्यूटर आदि का फायदा सामान्य बालकों के समान अपंग बालकों को भी मिलना चाहिए।
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