रूढ़िवादिता किसे कहते हैं ? कक्षा-कक्ष में भाषा द्वारा रूढ़िवादिता की चुनौती को कैसे कम किया जा सकता है ?
रूढ़िवादिता किसे कहते हैं ? कक्षा-कक्ष में भाषा द्वारा रूढ़िवादिता की चुनौती को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर— रूढ़िवादिता – प्रत्येक समाज में विभिन्न प्रकार की परम्पराओं का प्रचलन होता है। ये परम्पराएँ समाज की भलाई के लिए बनाई जाती हैं। जब इन परम्पराओं के माध्यम से समाज का अहित होने लगता है तो यही परम्पराएँ समाज के लिए विकास मार्ग की रूकावट सिद्ध होती हैं।
पूर्वाग्रहों की भाँति रूढ़ियुक्तियाँ भी एक प्रकार की तथ्यहीन या भ्रामक अवधारणाएँ हैं। इस सम्प्रत्यय का प्रयोग सबसे पहले पील लिपमैन द्वारा किया गया। पूर्वाग्रहों के विकास में इनकी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है इन्हें पूर्वाग्रहों का संज्ञानात्मक कारण माना जाता है, क्योंकि रूढ़ियुक्तियाँ मनुष्य की सोच या चिन्तन का परिणाम होती हैं; जैसेअन्धेरे में पढ़ी रस्सी को साँप मान लेना एक भ्रामक निष्कर्ष है। उसी प्रकार लोग किसी व्यक्ति के बारे में उसके वर्ग के आधार पर अच्छी या खराब बातों का निर्धारण करते पाये जाते हैं। चाहे वास्तव में उसमें वे गुण हों या ना हों। ऐसे निर्णय ही रूढ़ियुक्तियाँ कहे जाते हैं। ये अनुकूल या प्रतिकूल भी हो सकती है। यह कहना कि पाकिस्तानी धोखेबाज, अमरीकी बुद्धिमान तथा जापानी बड़े परिश्रमी होते हैं रूढ़ियुक्तियों के उदाहरण हैं, क्योंकि आवश्यक नहीं है कि सभी पाकिस्तानी धोखेबाज, सभी अमरीकी बुद्धिमान और सभी जापानी परिश्रमी ही होते हैं ।
भाषागत रूढ़िबद्धता को समाप्त करने हेतु प्रयास— भाषागत रूढ़िबद्धता को समाप्त करने हेतु निम्नलिखित प्रयास किए जाने चाहिए—
(1) पूरे देश (भारत) में सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में हिन्दी को अपनाए ।
(2) प्रत्येक राज्य में इसे आवश्यक रूप से पढ़ाया जाए।
(3) विभिन्न भाषाओं के साहित्य का अन्य भाषाओं- आदान प्रदान में किया जाये ताकि हम भाषाओं के माध्यम से ज्ञान को विस्तृत रूप से अपने देशवासियों में बाँट सकें ।
(4) प्रत्येक राज्य के राजनेताओं का कर्त्तव्य है कि वह एक दूसरे की भाषा का आदर करें। अन्य भाषाओं को विद्यालय तथा विश्वविद्यालय स्तर पर स्तरानुकूल भारत की सभी भाषाओं को पढ़ना अनिवार्य कर दें जिससे भाषागत पूर्वाग्रह कम हो ।
(5) अध्यापकों को चाहिए कि सभी भाषाओं से सम्बन्धित सांस्कृतिक कार्यक्रम रखवाएँ इससे एक-दूसरे के सम्पर्क में आएंगे एवं भाषागत विवाद कम होगा।
(6) छात्रों को प्रत्येक राज्य के खान-पान से परिचित करवाया जाए।
(7) राज्यों के राजनेताओं को विश्वास में ले कि वे अपनी मातृभाषा को नष्ट हुआ न समझे। हम उनकी भाषा का सम्मान करते हैं लेकिन राष्ट्र की एकता के लिए हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना आवश्यक है। वह साहित्य अपनी मातृभाषा में लिख सकते हैं। लेकिन देश की अखण्डता के लिए हिन्दी भाषा के प्रचार में रुकावट न डालें।
इस तरह भाषा – विवाद का जहर जब तक समाप्त नहीं कर दिया जाता है तब तक देश का विकास तीव्रता से होना सम्भव नहीं है।
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