लिंग समानता में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
लिंग समानता में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – लिंग समानता में शिक्षक की भूमिका — शिक्षक को लिंग सम्बन्धी भेदभाव एवं लिंग सम्बन्धी भ्रामक धारणाओं से दूर रहना चाहिए। उसको अपनी साथी अध्यापिकाओं को हमेशा अपने समकक्ष समझने का प्रयास करना चाहिए। शिक्षक द्वारा जब तक लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रहों एवं रूढ़िवादी धारणाओं पर अंगुली नहीं उठाई जाएगी तब तक समाज में इस प्रकार की स्थिति बनी रहेगी। इस प्रकार लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रहों को एवं रूढ़ियों को शिक्षक को न तो अपने मन में स्थान देना चाहिए और न ही इसका समर्थन करना चाहिए। एक शिक्षक को लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रह एवं रूढ़िवादिता को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित प्रयास करने चाहिए
(1) स्त्रियों का सम्मान–समाज में स्त्रियों को पुरुषों से कम सम्मान दिया जाता है क्योंकि समाज में पुरुष की प्रधानता मानी जाती है। पुरुष की प्रधानता के अनेक कारण माने जाते हैं। एक शिक्षक को इन सभी पूर्वाग्रहों एवं रूढ़िवादिताओं को दूर करने के लिए स्वयं अपनी पत्नी को समाज में सम्मान देना चाहिए एवं महिला शिक्षिकाओं को भी प्रदान करना चाहिए। इससे अन्य व्यक्ति भी प्रेरित होंगे, स्त्रियों को सम्मान प्रदान करेंगे। इससे लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रह एवं रूढ़िवादिता को दूर किया जा सकेगा।
( 2 ) महिला सशक्तीकरण का विकास–लिंग सम्बन्धी पूर्वाग्रहों एवं रूढ़ियों को समाप्त करने के लिए शिक्षक को महिला सशक्तीकरण की भावना को सुदृढ़ करने का प्रयास करना चाहिए। स्त्रियों के प्रति समाज में होने वाले अन्याय का विरोध करने का प्रयास करना चाहिए। स्त्रियों को इस तथ्य से अवगत करना चाहिए कि वह भी पुरुषों से कम नहीं है, पुरुषों की भाँति सभी कार्यों को कर सकती हैं तथा पुरुषों से भी अच्छा प्रदर्शन कर सकती हैं। इससे लिंग सम्बन्धी सभी पूर्वाग्रह एवं रूढ़िवादी धारणाएँ समाप्त हो जाएँगी।
(3) बालिका शिक्षा को प्रोत्साहन–लिंग सम्बन्धी रूढ़ियों एवं पूर्वाग्रहों को समाप्त करने के लिए एक शिक्षक को बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करना चाहिए। कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर बालिकाओं को पुरस्कृत किया जाना चाहिए। विद्यालय में शिक्षक द्वारा बालिकाओं को महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपे जाने चाहिए जिससे उनको यह अनुभव न हो कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। जो अभिभावक किसी समस्या के कारण बालिकाओं को विद्यालय नहीं भेजते हैं शिक्षक को उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
(4) पुरुष एवं स्त्री के प्रति समन्वित दृष्टिकोण का विकासशिक्षक को यह प्रयास करना चाहिए कि वह समाज में नारी एवं पुरुष के सह अस्तित्व को बताए जिससे कि समाज यह समझ सके कि नारी के अभाव में इस संसार की सृष्टि सम्भव नहीं है। इसलिए नारी के साथ भेदभाव करना एक अपराध ही नहीं वरन् समाज के विनाश की नींव डालना है। नारी एवं पुरुष दोनों ही मिलकर इस समाज को नवीन दिशा प्रदान कर सकते हैं।
(5) महान स्त्रियों का वर्णन–शिक्षक द्वारा विद्यालय एवं समाज दोनों में ही स्त्रियों द्वारा किए जाने वाले महान कार्यों के बारे में बताया जाना चाहिए; जैसे—सरोजिनी नायडू, महारानी लक्ष्मीबाई, सती अनुसूइया, गार्गी एवं शबरी आदि। इन स्त्रियों ने लौकिक एवं पारलौकिक समाज दोनों के लिए ही कार्य किए। इस प्रकार की स्थिति से समाज में लिंग के आधार पर भेदभाव की स्थिति समाप्त होगी तथा नारी का वर्चस्व बढ़ेगा।
( 6 ) स्त्रियों की महानता के सम्बन्ध में प्रमाण प्रस्तुत करना – सामान्यत: भेदभाव के कारण स्त्रियों को समाज में सम्मान नहीं मिलता और इसके लिए शिक्षक को स्त्रियों की शक्ति के रूप में धार्मिक एवं ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत करने चाहिए; जैसे–सीता राम एवं राधेश्याम में सीता एवं राधा दोनों का ही नाम पहले आता है। इस प्रकार प्राचीनकाल से ही नारी को आदि शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया है। इस प्रकार आज लिंग भेद करना एक भूल होगी। इससे लिंग भेद की स्थिति समाप्त होगी।
( 7 ) स्त्रियों की योग्यता का अधिक उपयोग–शिक्षक को विद्यालय में छात्राओं की योग्यता का सर्वाधिक उपयोग करना चाहिए। इससे यह सिद्ध किया जा सकता है कि छात्राओं में छात्रों से अधिक योग्यता होती है। इसके साथ-साथ छात्राओं में जो भी प्रतिभाएँ पाई जाती हैं, उनके विकास की व्यवस्था भी एक शिक्षक को अपने ऊपर लेनी चाहिए। स्त्रियों की प्रतिभाओं के विकास एवं उनके उपयोग से सभी पूर्वाग्रह एवं रूढ़ियाँ समाप्त हो सकेंगी।
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