विद्यालय के प्रमुख दायित्वों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

विद्यालय के प्रमुख दायित्वों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

उत्तर— विद्यालय के दायित्व—विद्यालय के दायित्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट होता हैं—
(1) विद्यालय का आकार–विद्यालय का आकार ज्यादा बड़ा नहीं होना चाहिए। एक अध्ययन में पाया गया है कि छोटे स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पाठ्येत्तर कार्यों में बड़े स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों की अपेक्षा अधिक रुचि लेते थे जिनसे उनका सामाजिक स्व का विकास तीव्र गति से होता था।
(2) शिक्षक का व्यक्तित्व — स्कूल में शिक्षक की भूमिका सबसे प्रधान होती है। शिक्षक का व्यक्तित्व एवं उनके छात्रों के साथ होने वाली अन्तःक्रियाओं का बच्चों के समाजीकरण पर सीधा प्रभाव पड़ता है । अतः शिक्षक का व्यक्तित्व चहुँमुखी होना चाहिए। यदि शिक्षक स्वयं चारित्रिक गुणों से युक्त है एवं बच्चों के साथ स्नेहमयी अन्त क्रियाएँ करते हैं तो इनसे बच्चों में प्रोत्साहन तथा उत्साह उत्पन्न होता है तथा उसके ‘स्व’ में सांवेगिक, समायोजन की क्षमता बढ़ जाती है तथा ऐसे बच्चों का समाजीकरण तेजी से होता है।
(3) विद्यालय का भौतिक वातावरण — विद्यालय के भौतिक वातावरण से अभिप्राय पर्याप्त स्वच्छता, समस्त स्टाफ की बैठने की व्यवस्था, कम्प्यूटर की व्यवस्था एवं समस्त आवश्यक स्टाफ, सफाई कर्मचारी की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे विद्यार्थी विद्यालय में आकर आनन्द प्राप्त करें एवं ज्ञान प्राप्त कर सकें।
(4) समस्त अध्यापकों की परस्पर घनिष्ठता – विद्यालय में बालक एक स्वच्छ ‘स्व’ को आकार दे सकें इसके लिए आवश्यक है कि सभी स्टाफों में प्रेम एवं सद्भावना का विकास हो साथ ही प्रधानाचार्य का भी समस्त स्टाफ के साथ अच्छा सम्प्रेषण बना रहे। प्रधानाचार्य का यदि कोई जानकार है तो उसके साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार न रखें। इससे बालकों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(5) कार्य का समान वितरण – प्रधानाचार्य को चाहिए कि प्रत्येक अध्यापक को दो-दो के जोड़े से कार्य वितरित करें एवं लिखित रूप से कार्य सौंपे। इससे बालक में सहयोगिता की भावना का विकास होता है।
(6) शिक्षक का समायोजन – शिक्षक को चाहिए कि सभी के साथ समायोजन स्थापित कर सके तो उसे उत्तम व्यवहार रखना चाहिए। वस्तुतः बालक शिक्षक को आदर्श मॉडल मानकर चलता है अतः उसी के नक्शेकदम पर चलता है लेकिन यदि शिक्षक स्वयं ही कुसमायोजित हो तो बालक भी कुसमायोजित हो जाते हैं, तथा ‘स्व’ का सही विकास नहीं हो पाता है।
(7) विद्यालय संचालक – सर्वप्रथम आवश्यक है कि विद्यालय का संचालक किस प्रकार है ? सरकारी विद्यालय का संचालक स्वयं प्रधानाचार्य होता है एवं प्राइवेट में प्रधानाचार्य तो कठपुतली एवं संस्था संचालक मुख्य होता है जिस विद्यालय का संचालक अयोग्य हो विद्यालय से सम्बन्धी ज्ञान का अभाव हो तो, लालची हो ऐसे विद्यालय में बालक अपने स्वयं को आकार नहीं दे पाते हैं।
(8) शिक्षक चरित्रवान व सदाचरण वाला होना चाहिए–  बालक के स्वच्छ स्व आकार के निर्माण में आवश्यक है कि शिक्षक चरित्रवान हो । वर्तमान में विद्यालयों में सचरित्र वाले शिक्षक प्रायः कम ही देखने को मिलते हैं। अखबारों में आए दिन पढ़ते हैं कि अमुक अध्यापक ने अमुक छात्रा के साथ दुर्व्यवहार किया। इससे बालक के ‘स्व’ के निर्माण में अवरुद्धता आ जाती है ।
(9) अभिभावक से सम्पर्क – विद्यालय को हमेशा अभिभावक से सम्पर्क बनाए रखना चाहिए। उसके व्यक्तित्व की पूरी जानकारी ले जिससे शिक्षक उसके स्व को भली प्रकार आकार दे सके। यदि विद्यार्थी सदैव विद्यालय देर से पहुँचे, गृहकार्य न करे, चोरी करे, झूठ बोले पढ़कर नहीं आए तो उसके लिए उसे अभिभावक से सम्पर्क स्थापित करना आवश्यक हो जाता है। साथ ही शिक्षक को भी छात्र से उसके सम्बन्धों की जानकारी अभिभावकों को देते रहना चाहिए जिससे बालक के स्व के विकास में योगदान दे सकें ।
(10) व्यक्तिगत भिन्नता का ध्यान रखे –आज की शिक्षा बालकेन्द्रित शिक्षा है जिसमें अध्यापन बालक को केन्द्र में रखकर किया जाता है। अतः शिक्षक का दायित्व है कि पहले वह छात्रों को पहचाने तथा देखें कि उनका योग्यता स्तर क्या है ? जो बालक तीव्र बुद्धि के हैं उन्हें अलग श्रेणीबद्ध करें एवं कमजोर छात्रों को अलग श्रेणी बद्ध करें। फिर अध्यापन करें। यही नहीं शिक्षक के लिए यह भी आवश्यक है कि वह प्रतिभाशाली, सृजनात्मक, विकलांग, पिछड़े बालकों आदि पर विशेष ध्यान दें ताकि तदनुरूप उनके स्व के निर्माण में सहायता प्रदान कर सकें। इसके अलावा कुछ शैतान छात्र भी होते हैं जिनका काम अध्यापकों पर छीटाकशी करना, आलोचना करना, अन्य छात्रों को परेशान करना, मौजमस्ती करने वाला होता है। उन्हें विभिन्न योजनाओं का निर्माण कर सही रास्ते पर लाने का प्रयास करना चाहिए।
(11) श्रेष्ठ मार्गदर्शक बनें—आजकल बच्चा पैदा होते ही मातापिता को उसके कैरियर की चिन्ता होने लगती है। वह अपनी आकांक्षाओं के अनुरूप उसको डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनाने का विचार रखते हैं जबकि बालक कुछ और बनना चाहता है परन्तु शिक्षक का दायित्व है कि वह उसकी योग्यता के अनुसार उसे कैरियर चुनने में मदद करें। इससे बालक का सकारात्मक स्व का विकास सम्भव है।
(12) मित्रतापूर्ण व्यवहार – शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों के साथ मित्रवत व्यवहार रखें। उनसे गलती होने पर फटकारे नहीं अपितु समझाए। डांटने से बालक अध्यापक से चिड़ जाते हैं। उदाहरण के लिए- किसी अध्यापक को खडूस, किसी को ठोल्या, किसी को गोंचू, पागल, आदि उपनामों से पुकारते हैं जो अध्यापक उनकी समस्याओं को समझता है। उनसे प्रेमपूर्वक बातें करता है विद्यार्थी सदैव उनकी बात मानते हैं उसका सम्मान करते हैं। उसके विषयों में रुचि लेते हैं जिससे उनके मन में अध्यापक के प्रति स्वच्छ मनोवृत्ति उत्पन्न होती है जो उनके स्व आकार का सकारात्मक रूप देते हैं ।
इस तरह बालक के सकारात्मक स्व को स्वच्छ आकार देने में विद्यालय का दायित्व महत्त्वपूर्ण है।
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