शारीरिक शिक्षा में खेलों के महत्त्व को लिखिए।
शारीरिक शिक्षा में खेलों के महत्त्व को लिखिए।
अथवा
विद्यालय स्तर पर शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकता एवं महत्त्व को विस्तारपूर्वक समझाइये ।
उत्तर— शारीरिक शिक्षा में खेलों का महत्त्व – खेल के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए एक विद्वान लिखते हैं, “खेल प्राणी के जीवन में कदाचित सबसे सुखद अनुभूति है। शारीरिक अंगों में स्मृति और चंचलता, हृदय में आनन्द और प्रसन्नता तथा मन में उत्साह और स्वतन्त्रता के भाव भर कर यह हमारी जीवन शक्ति को बढ़ा देता है। इसलिए तो पशु-पक्षी और मानव सभी खेल के आनन्दमयी क्रिया-कलापों में समयासमय लगे दिखायी पड़ते हैं।” यथार्थ में खेल-कूद द्वारा ही बालकों के सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास होता है। इनका केवल शारीरिक महत्त्व ही नहीं, वरन् शैक्षिक, मनोवैज्ञानिक सामाजिक ओर बौद्धिक महत्त्व भी है। खेलकूद के निम्नलिखित लाभ हैं—
(1) शारीरिक विकास में सहायक — खेल कूद बालकों के शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाते हैं। इनमें भाग लेकर उनकी माँस-पेशियाँ दृढ़ होती हैं तथा सम्पूर्ण शरीर में रक्त का परिभ्रमण होता है, जिससे उनमें ताजगी आती है।
(2) मानसिक विकास में सहायक – यह कहना पूर्णतया सत्य है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क होता है । इस प्रकार मस्तिष्क की स्वस्थता के लिए खेल-कूद आवश्यक है। यदि बालकों को खेलकूद के पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाते हैं तो उनका शरीर स्वास्थ्य रहेगा और वे पढ़ने-लिखने में अधिक श्रम भी कर सकेंगे ।
(3) मनोवैज्ञानिक विकास में सहायक – खेल – कूद का मनोवैज्ञानिक महत्त्व भी है। किशोरावस्था में बालक में अतिरिक्त शक्ति होती है, जो खेल-कूद द्वारा उचित स्रोतों में प्रभाहित होकर शुभ मार्ग ग्रहण करती है। इन क्रीड़ाओं द्वारा उचित स्रोतो के उपलब्ध न होने पर छात्रों में अनैतिकता, असामाजिकता तथा यौन सम्बन्धी विकार जागृत होते हैं। इस प्रकार खेल-कूद द्वारा बालक अपने स्वास्थ्य की वृद्धि के साथ-साथ इस अतिरिक्त शक्ति का सदुपयोग करते हैं। खेल-कूद के माध्यम से बालकों की कामवासना, सामूहिकता तथा विधायिकता जैसी मूल प्रवृत्तियों का भी शोधन हो जाता है ।
(4) नागरिकता के विकास में सहायक — खेल-कूद बालकों में नागरिकता का प्रशिक्षण प्रदान करते हैं । खेल-कूद में वे अधिकारों के साथ-साथ कर्त्तव्यों का पालन करना भी सीखते हैं। खेल के मैदान में प्रत्येक बालक अन्य बालकों के अधिकारों को आदर की दृष्टि से देखता है। इस प्रकार वे अधिकार और कर्त्तव्य दोनों का महत्त्व समझते हैं। इसके अतिरिक्त बालक भौतिक भावना के अन्तर्गत काम करना सीखते हैं।
(5) अनुशासनात्मक विकास में सहायक – उचित ढंग से नियम पालन तथा आज्ञाकारिता की भावना ही अनुशासन के प्रमुख तत्त्व हैं । खेल-कूद बालकों में इन गुणों का विकास करने में सहायक होते हैं । प्रत्येक बालक अपनी टीम के नेता की आज्ञा का पालन हृदय से करता है तथा खेल के नियमों का उल्लंघन करने का उसमें साहस नहीं होता। वह खेल के नियमों का विनयपूर्वक पालन करता है।
(6) सामाजिकता के विकास में सहायक – सामूहिक खेलकूद बालकों में सामाजिकता की भाव विकसित करने के अनुपम साधन हैं। खेल-कूद के बहाने बालक परस्पर मिलते-जुलते हैं, प्रकार उनमें सहयोग, सहकारिता तथा परस्पर निर्भरता की भावना का विकास होता है।
(7) नैतिकता विकास में सहायक – खेल-कूद छात्रों के चारित्रिक विकास में भी योग प्रदान करते हैं। माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार सामूहिक खेलों का इस कारण विशेष महत्त्व है कि इनके द्वारा शारीरिक विकास तथा मनोरंजन प्रदान करने के साथ-साथ छात्रों के चरित्र का निर्माण भी होता है।
(8) अवकाश के सदुपयोग में सहायक – खाली मस्तिष्क शैतान का घर होता है। खेल-कूद में भाग लेना बालकों के खाली समय का सुन्दरतम् उपयोग है। खेल-कूद की सुलभताओं के अभाव में बालकों को सिनेमा देखने का व्यसन लग जाता है तथा वे अपना समय सुधारने के लिए रेस्ट्रा, होटल या किसी बुरी संगत के शिकार हो जाते हैं। इस प्रकार खेल- 1- कूद बालकों के अवकाश के क्षणों का सदुपयोग करते हैं और उन्हें अनुचित गतिविधियों में पड़ने से बचाते हैं।
(9) भावी जीवन की तैयारी में सहायक – खेल – कूद से छात्रों को भविष्य में जीवन-यापन करने का प्रशिक्षण मिलता है। श्रेष्ठ खिलाड़ियों में नेतृत्त्व की योग्यता का विकास होता है तथा वे योग्य बनकर अपना जीवन सार्थक करते हैं ।
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