शिक्षा के क्षेत्र में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के लाभ तथा हानियों को समझाइए |
शिक्षा के क्षेत्र में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के लाभ तथा हानियों को समझाइए |
अथवा
एक समावेशी शिक्षा में ICT की भूमिका और लाभ लिखें।
उत्तर— एक समावेशी शिक्षा में ICT की भूमिका – शिक्षक ICT के प्रयोग से छात्रों को अधिक रुचिपूर्ण व तकनीकी ज्ञान प्रदान कर सकता है, जो उनकी अधिगम प्रक्रिया को बढ़ाता है। जहाँ पहले छात्र व शिक्षकों को सीमित साधन ही प्राप्त होते थे, वहीं सूचना व संचार प्रौद्योगिकी ने नए-नए साधन जैसे कम्प्यूटर, इन्टरनेट, ई-लर्निंग, एमलर्निंग, वर्चुअल क्लासरूम उपलब्ध कराए हैं, जिनके माध्यम से शिक्षक तथा विद्यार्थी दोनों ही विषय सामग्री का विस्तारपूर्वक व प्रभावशाली ढंग से अध्ययन कर सकते हैं। इस प्रकार ICT ने शिक्षा के क्षेत्र में अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन किए हैं, जो निरन्तर प्रगतिशील हैं।
सूचना एवं संचार तकनीकी के लाभ (Merits of ICT)— ICT के प्रयोग ने शिक्षण विधियों व तकनीकियों को नए आयाम दिए हैं, जिनसे शिक्षण प्रक्रिया अधिक उन्नत व प्रभावशाली बना सकी है। शिक्षा में क्षेत्र में ICT के निम्न उपयोग हो सकते हैं—
(1) शिक्षकों के लिए उपयोगी – उपयुक्त शिक्षण हेतु शिक्षकों को विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ, ज्ञान तथा आँकड़े चाहिए । इन सबको ठीक प्रकार से दिलाने में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी बहुमूल्य सहयोग दे सकती है। अभिक्रमित पाठ्य पुस्तकों, शिक्षण मशीन तथा कम्प्यूटर निर्देशित स्व अधिगम सामग्री यहाँ अध्यापकों को अपने शिक्षण कार्यों को बेहतर ढंग से पूरा कर बालकों को ज्यादा से ज्यादा फायदा करने के कार्य में आ सकती है ।
(2) विद्यार्थियों के लिए उपयोगी – सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के उपयोग से विद्यार्थियों को सूचना के स्रोतों से परिचित होने, उनके द्वारा सूचना इकट्ठी करने, उन्हें ठीक ढंग से संगृहीत करने, तथा व्यवस्थित कर भविष्य में आवश्यकतानुसार उपयोग में लाने का उचित अवसर और प्रशिक्षण मिलता है। जो कुछ भी उन्हें ज्ञान प्राप्ति, अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन तथा व्यक्तित्व विकास के लिए यथार्थ और विश्वसनीय सूचनाओं तथा संम्प्रेषण के रूप में चाहिए वह सब कुछ सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के सहयोग से उन्हें प्रभावी ढंग से प्राप्त हो सकता है।
(3) शैक्षिक नियोजनकर्त्ता प्रशासकों के लिए उपयोगी – शैक्षिक कार्यक्रमों के नियोजन और शैक्षिक गतिविधियों के ठीक प्रकार प्रबन्धन हेतु भी सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का सहयोग विभिन्न प्रकार से मूल्यवान सिद्ध हो सकता है। विद्यालय का प्रशासन चलाना है तो आपको विद्यालय की सभी प्रकार की गतिविधियों तथा मानव और भौतिक संसाधनों के कार्यकलापों की भलीभाँति जानकारी तथा सम्बन्धित आँकड़े उचित रूप से उपलब्ध होने ही चाहिए। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का सहयोग यहाँ प्रशासकों के लिए वरदान सिद्ध हो सकता है।
(4) मार्गदर्शन प्रदान करने वालों के लिए उपयोगी –निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं के संचालन में, चाहे वह विद्यालय परिसर में चले या अन्य संस्थाओं द्वारा समुदाय में चलाई जाएँ, सूचना एवं सोवण तकनीकी का सहयोग विभिन्न प्रकार से लाभप्रद सिद्ध हो सकता है। निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं के लिए तरह-तरह की सूचनाएँ, जानकारी, आँकड़ों तथा सम्प्रेषण की लगातार जरूरत रहती है।
(5) शैक्षिक अनुसंधानकर्त्ताओं के लिए उपयोगी – जो भी शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान करना चाहता है उसे विषय विशेष से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ, आँकड़े तथा सम्प्रेषण अनुसंधानकर्त्ताओं को यथार्थ एवं विश्वसनीय रूप से उनकी सुविधा के हिसाब से ठीक प्रकार प्राप्त होते रहने चाहिए। किस प्रकार का अनुसंधान कार्य हो चुका है तथा देश-विदेश में इस बारे में क्या जानकारी और सूचनाओं को उचित रूप में उपलब्धि उन्हें सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के सहयोग से ही भलीभाँति प्राप्त होती रह सकती है।
(6) रचनात्मक चिन्तन को बढ़ावा – इस तकनीकी के उपयोग ने विद्यार्थियों को कोरे ज्ञानार्जन की जगह ज्ञान प्राप्ति का ढंग सीखने का मार्ग प्रशस्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का कार्य किया है । इसके उपयोग से विद्यार्थियों के सृजनात्मक एवं रचनात्मक चिन्तन को बढ़ावा मिला है। ICT के प्रयोग से शिक्षक भी ज्ञान के स्रोत तथा उसके संप्रेषण की परम्परागत भूमिका न निभाकर विद्यार्थियों को स्वयं अपने प्रयत्नों द्वारा ज्ञान प्राप्त करने के कार्य में एक सच्चे सहायक, पथप्रदर्शक तथा उन्हीं के साथ स्वयं सक्रिय रूप से विषय की जानकारी लेने वाले साथी की भूमिका निभाते हुए देखे जा सकते हैं।
(7) अधिगम को केन्द्र बिन्दु बनाने में सहायक – पहले शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में जहाँ शिक्षण (teaching) को महत्त्वपूर्ण माना जाता है, को नहीं, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में ICT के प्रयोग ने शिक्षण की बजाय अधिगम को शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का मुख्य केन्द्र बिन्दु बना दिया है । इससे अब शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में शिक्षण और छात्रों के बीच बहुत ही सक्रिय एवं प्रयोजनपूर्ण अंतःक्रिया होने की संभावना हो गई है। विद्यार्थी विषय के बारे में आवश्यक प्रारम्भिक ज्ञान इन टैक्नालॉजी की मदद से पहले ही प्राप्त कर सकते हैं। अतः वे कक्षा में अच्छी तरह विषय विशेष में गहराई तक पहुँचने हेतु शिक्षक से प्रश्न पूछने तथा आवश्यक विचार-विमर्श में भाग लेने के लिए सदैव तत्पर रह सकते हैं।
(8) विद्यार्थी केन्द्रित अनुदेशन में सहायक – शिक्षा के क्षेत्र में ICT के प्रयोग ने अधिगम के ब्रॉडकास्ट मॉडल (भाषण विधि) को अन्तःक्रियात्मक मॉडल में परिवर्तित कर दिया है। अध्यापक केन्द्रित अनुदेशन को विद्यार्थी केन्द्रित अनुदेशन में परिवर्तित करने की भूमिका भी ICT ने निभायी है। इस टैक्नोलॉजी के उपयोग ने आज यह सम्भव कर दिया है कि विद्यार्थी अपनी इच्छित सूचनाएँ तथा ज्ञान को स्वत: ही अपने ढंग से प्राप्त कर सकते हैं। अतः उनके सामने अब ज्ञान भण्डार के नए स्रोत खुल गए हैं और इस तरह शिक्षा और अनुदेशन ग्रहण करने की चाबी छात्रों के पास आ गई है और फलस्वरूप उसका स्वरूप विद्यार्थी केन्द्रित होता जा रहा है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के उपयोग की सीमाएँ (Limitations in the Use of ICT) – जहाँ सूचना व सम्प्रेषण तकनीकी ने शिक्षा के क्षेत्र को व्यापक व उन्नतिशील बनाया है, वहीं इसके वृहद् उपयोग से अनेक सीमाएँ दृष्टिगोचर हो रही है। विद्यालयों में ICT का प्रयोग बहुत कम हो रहा है, जो कि तकनीकी रूप से विद्यार्थियों को ज्ञान के क्षेत्र में पिछाड़ रहा है। ICT के उपयोग की मुख्य रूप से निम्नलिखित सीमाएँ हो सकती हैं—
(1) सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के उपयोग संबंधी सुविधाएँ हमारे विद्यालय में अभी उपलब्ध नहीं है। बहुत से विद्यालय ऐसे हैं जिनके लिए सम्बन्धित उपकरण तथा तकनीकी, साजोसामान को न तो खरीदना ही सम्भव है और न उसकी मरम्मत तथा देखभाल करना। ऐसी स्थिति में इस तकनीकी के प्रयोग की संभावना ऐसे विद्यालयों में नहीं हो सकती।
(2) शिक्षकों को इस बात को लेकर आशंका है कि इस तकनीकी के प्रयोग से सब कुछ उनके हाथ से निकल सकता है। जब विद्यार्थियों को स्वयं ज्ञान प्राप्त करने का खजाना इस तकनीकी के प्रयोग से हाथ लग जाएगा तब फिर उनका क्या होगा। वे स्वाभाविक रूप से इस तकनीकी के प्रयोग से जी चुराते हैं और उसका खुलकर विरोध करते हुए दिखाई देते हैं।
(3) हमारे विद्यालयों के कार्य से जुड़े हुए विद्यालय अधिकारियों, अध्यापकों तथा अन्य विद्यालय कमियों को इस बात का ज्ञान ही नहीं है कि सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का प्रभावशाली ढंग से विद्यालय को नियमित दिनचर्या का अंग बनाकर पाठ्य तथा पाठ्य सहगामी दोनों प्रकार की क्रियाओं के संचालन में सक्रिय रूप से भागीदार बनाया जा सकता है। उनकी यह अनभिज्ञता सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के उपयोग में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है ।
(4) सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के उपयोग के सन्दर्भ में शिक्षकों में जो आशंका है, उसका प्रमुख कारण सेवापूर्व या सेवाकालीन किसी भी प्रकार के शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी को विद्यालय शिक्षा में प्रयुक्त करने हेतु शिक्षकों को तैयार नहीं किया जाता। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम में जो कम्प्यूटर साक्षरता नाम से कुछ गतिविधियाँ या पाठ्यक्रम अंशों को आजकल रखने की कोशिश की जा रही है वह भी एकांगी ही है
(5) इस तकनीकी के हमारे विद्यालयों में उपयोग को लेकर शिक्षक अपने पुराने तौर तरीकों तथा शिक्षण अधिगम पद्धतियों को नहीं त्यागना चाहते। वे प्रवचन, व्याख्यान तथा प्रदर्शन विधियों का ही प्रयोग करना चाहते हैं और इस तरह अपनी अध्यापक केन्द्रित भूमिका को छोड़कर विद्यार्थी केन्द्रित या परस्पर सहयोगी अंतःक्रिया प्रणाली को नहीं अपनाना चाहते।
(6) विद्यार्थी भी इसके उपयोग के लिए तैयार नहीं दिखाई देते । वह अपनी भूमिका का त्याग नहीं करना चाहते जिसमें उन्हें पकी पकाई खीर खाने को मिल जाती है। अध्यापकों द्वारा ज्ञान की बौछार होती है उन्हें स्वयं अपने प्रयत्नों से ज्ञान प्राप्ति के चक्कर में नहीं पड़ना पढ़ता।
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