समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व बताइये ।

समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व बताइये ।

अथवा

वर्तमान में समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – समावेशी शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है—
(1) सामाजिक एकीकरण को सुनिश्चित करना – अपंग बालकों में कुछ सामाजिक गुण बहुसंगत हो जाते हैं जब वे सामान्य बालकों के साथ शिक्षा पाते हैं। अपंग बालक अधिक संख्या में सामान्य बालकों का साथ पाते हैं तथा एकीकरणता के कारण वे सामाजिक गुणों को अन्य बालकों के साथ ग्रहण करते हैं। उनमें सामाजिक, नैतिक प्रेम, सहानुभूति, आपसी सहयोग आदि गुणों का विकास होता है। विशिष्ट शिक्षा व्यवस्था छात्र में केवल विशिष्ट ध्यान ही नहीं देती बल्कि व्यापक रूप में शिक्षण तथा सामाजिक स्पर्धा की भावना विकसित करती है।
(2) सामाजिक समानता का उपयोग — समावेशी शिक्षा के द्वारा अधिकारों तथा सम्भावनाओं से लाभान्वित होने की समानता का कार्य क्षेत्र समावेशी शिक्षा है। संवैधानिक समानता के सिद्धान्तों का व्यक्तियों तथा समाज को तभी लाभ हो सकता है जब उन्हें कार्यान्वित किया जाए तथा विद्यालय इस दृष्टि से सबसे उपयुक्त स्थान है।
समावेशी शिक्षा इसलिए उपयुक्त है क्योंकि इसमें रंग-भेद, जाति, समुदाय, धर्म, आयु, लिंग तथा शारीरिक एवं मानसिक गुणों की विभिन्नता के कारण किसी भी बालक को शिक्षा ग्रहण करने से वंचित नहीं किया जा सकता है।
(3) राष्ट्र का विकास — देश की खुशहाली एवं संगठन के लिए विकास एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है जिसमें सभी नागरिकों के योगदान की सदैव आवश्यकता होती है लेकिन अपनी क्षमता एवं सामर्थ्य की उपयुक्तता की अनुभूति एवं प्राप्ति के बिना किसी देश की एक बहुत बड़ी संख्या उसके नवनिर्माण में कैसे तथा कितनी सकारात्मक भूमिका निभा सकती है। शिक्षा से वंचिंत व्यक्तियों से राष्ट्र के विकास में योगदान की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। राष्ट्र के विकास में योगदान से पहले उपयुक्त संसाधनों के उपयोग से व्यक्ति के लिए स्वयं की क्षमताओं का विकास करना आवश्यक होता है। समावेशी शिक्षा व्यक्ति विकास के लिए एक उत्तम साधन है।
(4) बालक का व्यक्तिगत जीवन एवं उनका विकास—  समावेशी शिक्षा की सबसे अधिक आवश्यकता बालकों के व्यक्तिगत जीवन को खुशहाल बनाने तथा उसके विकास के दृष्टिकोण को अपनाने के लिए है। बालक समावेशी शिक्षा का केन्द्र है। इस शिक्षा प्रणाली का सबसे अधिक महत्त्व बालक के लिए है।
(5) समावेशी शिक्षा कम खर्चीली है—निःसन्देह विशिष्ट शिक्षा अधिक महंगी तथा खर्चीली है। इसके अलावा विशिष्ट अध्यापक एवं शिक्षाविदों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी अधिक समय लेते हैं। दूसरे दृष्टिकोण से समावेशी शिक्षा कम खर्चीली तथा लाभदायक है।
विशिष्ट शिक्षा संस्था को बनाने तथा शिक्षण कार्य प्रारम्भ करने के लिए अन्य कई स्रोतों से भी सहायता लेनी पड़ती है; जैसे—प्रशिक्षित अध्यापक, विशेषज्ञ चिकित्सक आदि। विशिष्ट बालक की सामान्य कक्षा में शिक्षा पर कम खर्च आता है। “
(6) शिक्षा का स्तर बढ़ाना — समावेशी शिक्षा न केवल सबके लिए शिक्षा है बल्कि सबके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अवधारणा पर आधारित है। इस शिक्षा प्रणाली में सभी बच्चों के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के मूलभूत सिद्धान्त पर पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों को लचीला बनाने पर विशेष बल दिया गया है क्योंकि इस विधि (शिक्षण विधि) से ही बच्चों का सर्वपक्षीय अथवा सार्वभौमिक विकास सम्भव हो सकता है।
(7) समाज के विकास के लिए — समावेशी शिक्षा व्यक्तियों के सहयोग से समाज का निर्माण करता है। व्यक्ति समाज के निर्माण की नींव है। व्यक्तियों की प्रगति, परिश्रम, सूझ-बूझ एवं प्रयत्नों से उनका व्यक्तिगत जीवन सँवरता है जिसमें शिक्षा का योगदान सबसे अधिक महत्त्व रखता है।
(8) समावेशी शिक्षा के माध्यम से एकीकरण सम्भव है— विशिष्ट शिक्षण व्यवस्था की अपेक्षा समावेशी शिक्षण व्यवस्था में सामाजिक विचार-विमर्श अधिक किए जाते हैं, अर्थात् उच्चारण अधिक होता है। विशिष्ट तथा सामान्य बालक में सामान्य शिक्षा के अन्तर्गत एक प्राकृतिक वातावरण बनाया जाता है। इस वातावरण में अपने सहपाठियों से सीखना, उन्हें स्वीकार करना तथा स्वयं को दूसरों द्वारा स्वीकार कराया जाना समावेशी शिक्षा द्वारा सम्भव है। सामान्य वातावरण में छात्र में उपयुक्तता की भावना तथा भावनात्मक समायोजन का विकास होता है।
(9) सामान्य मानसिक विकास सम्भव है—विशिष्ट शिक्षा में मानसिक जटिलता मुख्य है। अपंग बालक अपने आपको दूसरे बालकों की अपेक्षा तुच्छ तथा हीन समझते हैं जिसके कारण उनके साथ पृथकता से व्यवहार किया जाता है। समावेशी शिक्षा-व्यवस्था में, अपंगों को सामान्य बालकों के साथ मानसिक रूप से प्रगति करने का अवसर प्रदान किया जाता है। प्रत्येक बालक सोचता है कि वह किसी भी प्रकार से किसी अन्य बच्चे से तुच्छ नहीं रहा है । इस प्रकार समावेशी शिक्षा पद्धति बालकों को सामान्य मानसिक प्रगति की ओर अग्रसर करती है।
(10) शिक्षा की सर्वव्यापकता या सार्वभौमिक विकास– विशेष रूप से प्राथमिक शिक्षा को तभी सार्वभौमिक बनाया जा सकता है जब प्रत्येक बालक के गुणों, स्तरों तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर शिक्षा का विस्तार किया जाए। समावेशी शिक्षा की मुख्य अवधारणा को ध्यान में रखते हुए शिक्षा पाठ्यक्रम निर्धारित करने पर बल देती है। समावेशी शिक्षा सार्वभौमिक शिक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों में योगदान देती है।
(11) शैक्षिक एकीकरण सम्भव है— शैक्षिक एकीकरण सामान्यतः समावेशी शिक्षा के वातावरण द्वारा सम्भव है। शिक्षाविदों का ऐसा विश्वास है कि विशिष्ट शिक्षा संस्था एक बालक के प्रवेश के पश्चात् समान शैक्षिक योग्यता रखने वाले अपंग बालक उनके गुणों को ग्रहण करता है। शिक्षाविदों की यह भी मान्यता है कि विशिष्ट विद्यालयों में सामान्य छात्र तथा अपंग छात्र शिक्षा के पूर्ण ग्राही (ग्रहण करने वाला) नहीं होते।
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