सामाजिक रचना में जेण्डर की भूमिका की विवेचना कीजिए ।

सामाजिक रचना में जेण्डर की भूमिका की विवेचना कीजिए ।

उत्तर–सामाजिक रचना में जेण्डर की भूमिका–सामाजिक रचना में जेण्डर की भूमिका को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है—

(1) जेण्डर भारतीय समाज की संरचना का आधार तत्त्व है।
(2)जेण्डर के आधार पर ही सामाजिक रचना में पुरुषों की प्रधानता रही है।
(3) जेण्डर के आधार पर ही भारतीय समाज पुरुष-प्रधान, पुत्रप्रधान तथा पितृसत्तात्मक रहा है।
(4) जेण्डर के आधार पर ही समाज के सभी कार्यों; जैसेसामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक आदि का सम्पादन किया जाता है।
(5) जेण्डर के आधार पर ही समाज के दायित्वों तथा पारिवारिक कर्त्तव्यों का विभाजन किया गया है ।
(6) जेण्डर सामाजिक रचना में कार्यों, उत्तरदायित्वों तथा अधिकारों को प्रभावित करता है।
(7) जेण्डर सामाजिक रचना में रूढ़िवादी विचारों और प्रगतिशील विचारों के लिए जिम्मेदार है।
(8) जेण्डर के आधार पर ही सामाजिक संगठन में सामाजिक कुरीतियों का जन्म होता है।
(9) जेण्डर के आधार पर सामाजिक रचना में शिक्षा का प्रचारप्रसार होता है।
(10) जेण्डर के आधार पर सामाजिक रचना, सामाजिक संस्थाएँ, रीति-रिवाज, मान्यताओं का संचालन किया जाता है।
(11) जेण्डर सामाजिक रचना की गतिशीलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
12) जेण्डर के आधार पर ही आर्थिक उत्तरदायित्वों तथा संसाधनों का वितरण सामाजिक संगठन में किया जाता है।
(13) जेण्डर के आधार पर ही सामाजिक रचना में आधुनिकीकरण, उदारीकरण इत्यादि प्रवृत्तियाँ आती हैं।
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