सामाजिक समावेशन हेतु पाठ्यचर्या में छात्रों में किन क्षमताओं के विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए ?
सामाजिक समावेशन हेतु पाठ्यचर्या में छात्रों में किन क्षमताओं के विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए ?
उत्तर – सामाजिक समावेशन हेतु पाठ्यचर्या में छात्रों में निम्न क्षमताओं के विकास पर ध्यान दिया जाना चाहिए—
(1) ऐसी क्षमताओं का विकास को जो न केवल सूचना विश्लेषण करे बल्कि उन्हें ठीक से समझे और उन पर विचार करें उन्हें आत्मसात करे और उनके प्रति अन्तर्दृष्टि का विकास करें ।
(2) व्यक्तिगत, सामाजिक, नैतिक, राष्ट्रीय और आध्यात्मिक मूल्यों और सहवर्ती गुणों का विकास करे जो किसी व्यक्ति को मानवीय और सामाजिक रूप से प्रभावशाली बनाते हैं और जीवन को सार्थता एवं दिशा देते हैं ।
(3) देश के स्वतन्त्रता संग्राम और सामाजिक पुनरुत्थान में सभी वर्गों और क्षेत्रों के स्वतन्त्रता सेनानियों, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और ग्रामीण, आदिवासी और समाज के कमजोर तबकों के योगदान के प्रति सराहना की भावना पैदा करे और उनके आदर्शों के अनुसरण की प्रेरणा प्रदान करें।
(4) कार्य और क्रिया सम्बन्धी क्षमता – जिसके साथ ही उपकरणों और तकनीकों की देखभाल, वस्तुओं और अनुभवों का उपयोग व उन्हें व्यवस्थित करना जिसमें सम्प्रेषण भी शामिल होता है।
(5) भाषा की योग्यताएँ, जैसे—सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना और सोचना तथा मौखिक और दृश्य सम्प्रेषण कौशल जो सामाजिक जीवन और दिन-प्रतिदिन के क्रियाकलापें में प्रभावी भागीदारी हेतु आवश्यक है।
(6) सम्बन्ध बनाना और कायम रखना— समाज प्रकृति एवं स्वयं के साथ प्रगाढ़ता, संवेदनशीलता और मूल्यों के साथ सतत् सम्बन्ध बनाना, जीवन में सार्थकता लाता है तथा नैतिकता का आधार है।
(7) जीवन को सार्थकता एवं दिशा देते हैं। उत्पादकता वृद्धि, कार्य सन्तोष की भावना, अर्थ उत्पादन प्रणाली के लिए आवश्यक कठोर श्रम की तत्परता उद्यमशीलता और मानवीय क्षमता के प्रति सम्मान जैसे मूल्यों का विकास करे।
(8) पूर्व व्यावसायिक/व्यावसायिक कौशलों को अर्जित करे।
(9) स्वस्थ यौन सम्बन्धी मुद्दों के प्रति उचित दृष्टिकोण विकसित कर स्त्री पुरुषों में एक-दूसरे के बीच सम्मानपूर्ण सम्बन्ध विकसित करे ।
(10) परिवर्तन मूलक प्रौद्योगिकी और देश की परम्परा और विरासत की निरन्तरता के बीच सन्तुलित समन्वय की सही समझ पैदा करे ।
(11) राष्ट्रीय प्रतीकों का ज्ञान और उनके प्रति सम्मान पैदा करे तथा राष्ट्रीय अस्मिता एवं एकता जैसे आदर्शों के प्रति आकांक्षा और संकल्प प्रकट करने के लिये प्रेरित करें।’
(12) गणितीय योग्यताएँ तार्किक बुद्धि का विकास करें और शिक्षार्थियों को गणितीय क्रियाओं को दैनिक जीवन में लागू करने में सहायता करें।
(13) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास जिसमें खोज या अनुसंधानभावना, समस्या हल, प्रश्न करने का साहस और वस्तुनिष्ठता जैसे—गुण विद्यमान हों जो भ्रम अन्धविश्वास और भाग्यवाद को समाप्त करने की दिशा में प्रवृत्त करे, इसके साथ ही साथ भारतीय परम्परा में रचे, बसे स्वदेशी ज्ञान को संपुष्ट करते हुए बनाए रखे।
(14) पर्यावरण के प्राकृतिक और सामाजिक दोनों पक्षों, उनकी अन्तर्क्रियात्मक प्रक्रियाओं और उनसे सम्बन्ध समस्याओं की समझ विकसित करें और ऐसे तरीके और साधन बनाये कि पर्यावरण का संरक्षण किया जा सके।
(15) देश के विभिन्न भागों के भू-खण्डों तथा वहाँ के जनजीवन की विविधता और भारत की सामाजिक संस्कृति के प्रति समझ पैदा करे।
(16) वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से युक्त देशभक्ति और राष्ट्रीयता की गहन अनुभूति पैदा करे ।
(17) देश के सन्दर्भ में भू-मण्डलीकरण, उदारीकरण और स्थानीयता के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों के सम्बन्ध में उचित समझ विकसित करे।
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