सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए इसकी प्रक्रिया एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिये ।
सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए इसकी प्रक्रिया एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिये ।
अथवा
शिक्षण में शिक्षण कौशलों के विकास में सूक्ष्म शिक्षण कैसे सहायक है ? समझाइये ।
अथवा
सूक्ष्म शिक्षण किसे कहते हैं ?
अथवा
सूक्ष्म शिक्षण के सम्प्रत्यय की मूल अवधारणा चक्र के संदर्भ में विवेचना कीजिए।
अथवा
शिक्षण के विभिन्न पक्षों को सुधारने हेतु सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया की विवेचना कीजिए।
अथवा
सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ स्पष्ट कीजिये ।
अथवा
सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये ।
अथवा
सूक्ष्म शिक्षण के उपयोग लिखिये ।
अथवा
प्रशिक्षण कार्यक्रम में सूक्ष्म शिक्षण कैसे उपयोगी है ?
उत्तर– शिक्षण की जटिलताओं से अलग रखकर शिक्षकों को एक सरलीकृत शैक्षणिक परिस्थितियों में शिक्षण कौशल का अभ्यास कराया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण अध्यापक के शिक्षण व्यवहार में सुधार सुनिश्चित करने का एक तरीका है।
सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणाएँ निम्न प्रकार हैं—
(1) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा शिक्षण क्रिया की जटिलताओं को कम किया जा सकता है।
(2) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।
(3) सूक्ष्म शिक्षण एक वास्तविक शिक्षण है।
(4) सूक्ष्म शिक्षण पूर्ण रूप में एक व्यक्तिगत प्रशिक्षण (Individualised Training) का कार्यक्रम है।
(5) सूक्ष्म शिक्षण प्रतिपुष्टि (Feedback) के माध्यम से अभ्यास को नियंत्रित कर सकता है।
(6) सूक्ष्म शिक्षण में प्रतिपुष्टि विभिन्न साधनों द्वारा दी जा सकती है। जैसे— प्रशिक्षक द्वारा प्रेक्षण करके, पाठ की वीडियो फिल्म बनाकर तथा साथी छात्राध्यापकों द्वारा ।
सूक्ष्म शिक्षण की उपयोगिता एवं विशेषताएँ– सूक्ष्म शिक्षण की उपयोगिता को हम निम्न बिन्दुओं द्वारा समझ सकते हैं–
(1) सूक्ष्म-शिक्षण द्वारा विभिन्न शिक्षण कौशलों के प्रयोग में दक्षता प्राप्त की जाती है।
(2) सूक्ष्म शिक्षण इस प्रकार से कार्य करता है कि यह निरन्तर अपने निकटतम लक्ष्यों को प्राप्त करता है और कक्षा में शिक्षक के व्यवहार को बदलने में प्रभावी होते हैं ।
(3) सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया में प्रतिपुष्टि (पर्यवेक्षक, टेप, साथियों द्वारा) मिलने से छात्राध्यापक अपने व्यवहार में सुधार लाने की कोशिश करता है।
(4) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा नियंत्रित अभ्यास में वृद्धि करना सम्भव | है। इसके अन्तर्गत सूक्ष्म शिक्षण की परिस्थिति, समय, छात्रों की संख्या प्रतिपुष्टि एवं निरीक्षण के तरीकों में आवश्यकतानुसार हेर-फेर किया जा सकता है जिससे प्रशिक्षण कार्यक्रम में एक उच्च स्तर के नियंत्रण का समावेश हो जाता है।
(5) पुन: शिक्षण चक्रों को दोहराकर समस्या समाधान विश्लेषण तथा विकास तेजी से होता है ।
(6) छात्र को वास्तविक शिक्षण में धीरे-धीरे क्रमिक ढंग से प्रवेश कराया जाता है न कि उन्हें समस्त ज्ञान एक साथ प्रदान किया जाए ।
(7) इस विधि से शिक्षण करने से छात्राध्यापकों के मन से वास्तविक या वृहद शिक्षण का भय निकल जाता है।
(8) अनुभवी शिक्षक के लिए इससे नई शिक्षण क्षमताएँ प्राप्त करने और उनका अभ्यास करने और विद्यमान क्षमताओं में सुधार करने का अवसर प्राप्त होता है ।
(9) शिक्षक के कार्य की क्षमताओं तथा कमजोरियों का विशिष्ट क्षमता प्रशिक्षण पद्धति से पता लगाया जा सकता है।
(10) परम्परागत छात्र शिक्षण पद्धति की तुलना में छात्रों को इस पद्धति के अन्तर्गत कम जोखिम है। पर्यवेक्षक व छात्र प्रत्येक शिक्षण कौशल का क्रमिक ढंग से विकास करते हैं।
सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ—
क्लिफ्ट–”सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण की विधि है जिसमें शिक्षण अभ्यास को कुछ विशिष्ट कौशलों में सीमित रखकर तथा सामान्य रूप में शिक्षण के समय कक्षा में शिक्षार्थियों की संख्या से कम संख्या के सामने शिक्षण कार्य करके वास्तविक परिस्थितियों को अपेक्षाकृत सरल एवं नियंत्रित बना दिया जाता है ।”
राबर्ट एन. बुश–” सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक शिक्षा की वह प्रविधि है जिसमें शिक्षक अत्यन्त स्पष्ट रूप में परिभाषित शिक्षण कौशल का प्रयोग बड़ी सावधानीपूर्वक तैयार किये गये पाठों को पढ़ाने के लिये 5-10 मिनट तक की अन्तःक्रिया में वास्तविक शिक्षकों के लघु· समूह पर करता है तथा इसे उससे सम्बन्धी परिणामों को वीडियो टेप द्वारा जाँचने का प्रायः अवसर होता है।”
सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया के सोपान– सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया के सोपानों का वर्णन बी. के. पासी तथा एम. एम. शाह ने अपनी पुस्तक ‘Micro Teaching in Teacher Education’ में निम्न प्रकार से किया है। इन्हें जानने से पूर्व सूक्ष्म शिक्षण चक्र का अध्ययन करना उपयोगी रहेगा।
सूक्ष्म शिक्षण की प्रक्रिया उपर्युक्त चक्र के अनुसार चलती है। इसके सोपानों का वर्णन इस प्रकार हैं—
(1) शिक्षण कौशलों का परिचय–सबसे पहले प्रशिक्षणार्थी को विभिन्न शिक्षण कौशलों का उनकी मनोवैज्ञानिक उपयोगिता घटक, विशेषताओं, गुणों एवं दोषों के आधार पर परिचय करवाया जाता है। जिससे प्रशिक्षणार्थी शिक्षण कौशलों के महत्त्व को जानकर इस दिशा में सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाते हैं।
(2) आदर्श पाठ का प्रस्तुतीकरण– शिक्षण कौशलों के परिचय के बाद आदर्श सूक्ष्म पाठ को प्रदर्शित किया जाता है। इसे ही आदर्श पाठ कहते हैं। इस आदर्श पाठ का अवलोकन प्रशिक्षणार्थी करते हैं तथा कार्य विधि तथा सीमाएँ समझते हैं। इसका प्रदर्शन कई प्रकार से किया जा सकता है—
(a) प्रशिक्षण स्वयं पाठ प्रस्तुत कर सकता है।
(b) केवल लिखित रूप में प्रशिक्षणार्थी को दिया जा सकता है।
(c) वीडियो टेप के माध्यम से रिकॉर्ड कर टेलीविजन पर प्रदर्शित किया जा सकता है।
(d) टेप रिकॉर्डर में रिकॉर्ड कर सुनाया जा सकता है।
(3) प्रशिक्षणार्थी द्वारा अनुरूप शिक्षण–इस सोपान के अन्तर्गत प्रशिक्षणार्थी निम्न कार्यों को करते हैं—
(a) सूक्ष्म पाठ योजना बनाना– प्रशिक्षणार्थी उसी शिक्षण कौशल पर सूक्ष्म पाठ योजना तैयार करते हैं जिसके आदर्श पाठ का प्रस्तुतीकरण उन्होंने देखा है। यह योजना 5 से 10 मिनट की समयावधि को ध्यान में रख कर बनायी जाती है।
(b) सूक्ष्म पाठ का प्रस्तुतीकरण – प्रशिक्षणार्थी स्वयं द्वारा निर्मित पाठ को प्रस्तुत करते हैं। यह प्रस्तुतीकरण 5 से 10 मिनट की अवधि में 8 से 10 शिक्षार्थियों के सामने किया जाता है। इस समस्त प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाती है। प्रशिक्षण कक्षा के अन्त में बैठ कर सम्बन्धित शिक्षण कौशल के निरीक्षण प्रपत्र में अंकित घटकों की स्तरमापनी में स्तरानुसार अंकन करता है तथा अपनी प्रतिक्रिया देता है। अन्य प्रशिक्षणार्थी भी पीछे बैठकर सूक्ष्म शिक्षण को देखते हैं तथा लिखित निरीक्षण करते हैं। प्रशिक्षणार्थी के द्वारा पाठ को समाप्त करने पर प्रथम सत्र समाप्त होता है।
(4) विचार विमर्श एवं पृष्ठ पोषण– चतुर्थ सोपान के साथ ही द्वितीय सत्र शुरू होता है। सूक्ष्म शिक्षण में यह सत्र 8 से 10 मिनट का होता है। इसमें प्रशिक्षणार्थी द्वारा प्रस्तुत किये पाठ की वीडियो रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की जाती है। सभी प्रशिक्षक व प्रशिक्षणार्थी उसका अवलोकन करते हैं एवं पृष्ठ पोषण देते हैं। यदि वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं है तो सभी प्रशिक्षणार्थी एवं प्रशिक्षक आपस में विचार-विमर्श करते हैं। प्रशिक्षक पाठ को पढ़ाने वाले प्रशिक्षणार्थी को कौशल के प्रदर्शन में हुई कमियाँ बताकर दूर करने के उपाय बताता है। इस कार्य में उपस्थित अन्य प्रशिक्षणार्थी भी अपने विचार प्रस्तुत कर प्रशिक्षणार्थी की सहायता करते हैं। इसके बाद पुन: शिक्षण हेतु निर्देश देकर 15 मिनट के लगभग समय दिया जाता है।
(5) पुनः पाठ नियोजन– यह 15 मिनट का तृतीय सत्र है। जिसमें प्रशिक्षणार्थी अपने पाठ की कमियों को दूर करके इसी कौशल से सम्बन्धित नवीन सूक्ष्म पाठ योजना तैयार करता है। इस समय वह अन्य प्रशिक्षणार्थियों के शिक्षण कौशल का प्रदर्शन भी देखता है एवं आवश्यक विचार-विमर्श भी करता है ।
(6) पुन: शिक्षण व पुनः प्रतिपुष्टि– यहाँ सूक्ष्म शिक्षण का चतुर्थ सत्र शुरू होता है। इस सोपान में प्रशिक्षणार्थी पुनः नियोजित पाठ योजना का प्रस्तुतीकरण करता है। यह शिक्षण वह दूसरे समूह के शिक्षार्थियों के सम्मुख करता है। इस समय भी कक्षा की स्थितियाँ सूक्ष्म शिक्षण की पूर्व स्थितियों की भाँति ही रखी जाती हैं। यह 8 से 10 मिनट का शिक्षण होता है। इसके बाद वही चक्र शिक्षण विचार-विमर्श प्रतिपुष्टि नियोजन – पुनः प्रतिपुष्टि 40-50 मिनट चलता रहता है। जब तक कि सम्बन्धित शिक्षण कौशल का संतोषजनक अभ्यास न हो जाये। यही प्रक्रिया सूक्ष्म शिक्षण चक्र कहलाती है।
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