अनुवाद परिभाषा एवं अर्थ

अनुवाद परिभाषा एवं अर्थ

अनुवाद का व्युत्पत्तिपरक अर्थ होता है – अनु + वाद । अनु का अर्थ होता है ‘ पीछे’ और वाद का अर्थ होता है ‘कहना’। इस प्रकार अनुवाद का अर्थ हुआ किसी बात के कहने के बाद कोई बात कहना अर्थात् पुनर्कथन। दूसरे शब्दों में, किसी भाषा के कथ्य को दूसरी भषा में सम्प्रेषित करना ही अनुवाद कहलाता है।
भाषाविज्ञनी न्यूमार्क के अनुसार “अनुवाद एक शिल्प है जिसमें एक भाषा में लिखित संदेश के स्थान पर दूसरी भाषा में उसी संदेश को प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है। ” नाइडा तथा टेलर ने ‘द थ्योरी एंड प्रेक्टिकल ऑफ ट्रान्सलेशन’ में अनुवाद को इन शब्दों में परिभाषित किया है, “मूल भाषा के संदेश के समतुल्य संदेश को लक्ष्य भाषा में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को अनुवाद कहते हैं। संदेशों समतुल्यता पहले अर्थ और फिर शैली की दृष्टि से निकटतम एवं स्वाभाविक होती है । “
हिंदी साहित्य के विद्वान एवं भाषाविद् भोलानाथ तिवारी ने अनुवाद की परिभाषा इस प्रकार दी है, “एक भाषा में व्यक्त विचारों को, यथासंभव समान तथा सहज अभिव्यक्ति द्वारा दूसरी भाषा में व्यक्त करने का प्रयास अनुवाद है।
अनुवाद का महत्व
आज का युग वस्तुतः अनुवाद का युग है। सोचने और विचारने के हर स्तर पर हम अनुवाद पर निर्भर करते हैं। शायद ही जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र हो, जिसमें अनुवाद की उपयोगिता प्रमाणित न की जा सके। संसार भर में प्रयुक्त पाँच हजार से अधिक भाषाओं और बोलियों के बीच वैचारिक, सर्जनात्मक और कार्यात्मक तालमेल रखने के लिए अनुवाद ही सर्वाधिक लोकप्रिय एवं उपयोगी माध्यम बन गया है।
यह अनुवाद का ही चमत्कार है कि अंतरराष्ट्रीय साहित्य का अध्ययन और अध्यापन भारतीय भाषाओं में संभव हुआ है। अनुवाद के कारण ही हम टॉल्सटॉय के उपन्यासों और शेक्सपीयर के नाटकों से परिचित हुए हैं। अनुवाद के कारण ही कामू, सार्त्र और बैकेट से लेकर यमनाटी, कबाबात, पाब्लो नेरूदा आदि की रचनाओं से हम भारतीय लाभान्वित हो पाए हैं। और भारतीय साहित्य से विदेशी लाभान्वित हुए हैं।
जैसे-जैसे विश्व परिदृश्य में ज्ञान-विज्ञान के नए-नए क्षेत्रों का विस्तार होता गया, अनुवाद का महत्व भी बढ़ता गया। कृषि, उद्योग, चिकित्सा, अभियांत्रिकी और व्यापार के विभिन्न आयामों से लेकर शिक्षा, प्रशासन, साहित्य और संस्कृति के विविध क्षेत्रों तक कार्यशैली में उपस्थित बदलाव ने अनुवाद के महत्व को नए रंगों से रेखांकित किया गया। परिणामस्वरूप अनुवाद की आवश्यकता जीवन के हर कदम पर, व्यवहार के हर पग पर अनुभव की जाने लगी। अनुवाद की इस अपरिहार्यता को नए संचार माध्यमों ने अधिकाधिक प्रोत्साहित किया। पत्रकारिता, चलचित्र, दूरदर्शन, आकाशवाणी, दूरभाष एवं संचार के आधुनातन माध्यमों ने अनुवाद के महत्व को अधिकाधिक विस्तार दिया स्थिति यह है कि आज जीवन के हर चरण पर अनुवाद एक अनिवार्यता है और अनुवाद के बिना हम वर्तमान में व्यस्त, तकनीकी, आधुनिक जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं।
अनुवाद-कार्य ने राष्ट्रीय एकता को तो मजबूत किया ही है, साथ ही अन्तरराष्ट्रीयता की भावना को भी सुदृढ़ किया है। अनुवादित भाषा से ही हम अन्य प्रदेशों की संस्कृति, समाज और साहित्य को समझ पाते हैं। समझने से ही एकता का भाव विकसित होता है। ठीक उसी तरह हम अनुवाद के माध्यम से अन्य देशों की सभ्यता-संस्कृति और साहित्य को समझ पाते हैं, जिससे उन देशों के प्रति प्रेम और लगाव का भाव पैदा होता है।
अनुवाद की योग्यताएं
1. व्यापक अध्ययन :- अनुवादक को जीवन का व्यापक ज्ञान होना चाहिए। उसका व्यापक अध्ययन अनुवाद करते समय अत्यंत महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है।
2. अभिव्यक्ति क्षमता :- जीवन के व्यापक ज्ञान तथा अध्ययन का तब तक कोई महत्व नहीं है, जब तक कि उसकी अभिव्यक्ति करने की क्षमता नहीं। वस्तुतः अभिव्यक्ति की कुशल- शक्ति ही कला कहलाती है। अनुवाद में अभिव्यक्ति- कुशलता अच्छी होनी चाहिए।
3. भाषा ज्ञान :- अनुवादित तथा अनुवादेय दोनों भाषाओं का ज्ञान होना एक अनुवादक की एक प्रमुख एवं सर्वप्रमुख योग्यता है। बिना • इसके छह अनुवाद नहीं कर ना।
4. व्याकरणिक ज्ञान :- भाषा की अवस्थित करने का कार्य व्याकरण ही करता है। अतः संबंधित भाषाओं के व्याकरण का ज्ञान सफल अनुवादक के लिए अपेक्षित होता है। अन्यथा भाषा में बिखराव की समस्या बराबर बनी रहती है। व्याकरण में ही भाषा के वाक्य विन्यास का ज्ञान होता है कि किस भाषा की कैंसी वाक्य संरचना है।
5. अभ्यास :- अभ्यास के बिना सब कुछ निरर्थक होता है। अतः अनुवादक को समय-समय पर अनुवाद करते रहना चाहिए।
6. विस्तृत शब्द भंडार :- बिना विस्तृत शब्द भंडार के अनुवादक का कार्य ठीक प्रकार से सम्पन्न नहीं हो सकता है। शब्द ज्ञान के अभाव में या अल्पज्ञान होने से अनुवादक अनुवाद कार्य में प्रवीण नहीं हो सकता।
7. शैली ज्ञान :- अनुवादक को अनुवादय कृति की शैली का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। तभी उस कृति का प्रभाव होता है।
अनुवाद के प्रकार
अनुवाद के यद्यपि कई प्रकार होते हैं, किंतु विद्वानों ने अनुवाद के निम्नलिखित प्रमुख भेद बताए हैं
1. शब्दानुवाद :- इस अनुवाद में स्रोत भाषा के प्रत्येक शब्द का लक्ष्य भाषा में अनुवाद किया जाता है। यह सबसे निम्न कोटि का अनुवाद माना गया है क्योंकि इसमें यांत्रिकता अधिक होती है। सजीवता कम।
2. भावानुवाद :- इस अनुवाद में स्रोत भाषा के शब्द, पदक्रम, वाक्य-विलास आदि पर ध्यान न देकर भाव अथवा विचार को यथावत् अभिव्यक्त करने की चेष्टा की जाती है। इस अनुवाद में एक ही दोष होता है कि यह मूल लेखक के अभिव्यक्ति संबंधी बारीक . विशेषताओं से पाठक को अवगत नहीं होने देता।
3. कलानुवाद :- इसमें स्रोत भाषा तथा लक्ष्य भाषा में कला और कला जैसा संबंध होता है।
4. सारानुवाद :- इसमें मूल भाषा की सामग्री के सार तत्व का अनुवाद किया जाता है। लंबे भाषणों या वक्तव्यों का ऐसा ही अनुवाद किया जाता है।
5. व्याख्यानुवाद :- इसमें अनुवाद के साथ-साथ उसकी व्याख्या कर समझाने का भी उपक्रम रहता है। उदाहरण के लिए तिलक रचित ‘गीता रहस्य’ श्रीमद्भावगत गीता का व्याख्यानुवाद है।
6. आंशु अनुवाद :- ऐसा अनुवाद दुभाषिए द्वारा किया जाता है। जहाँ वक्ता की भाषा श्रोता के लिए अबूझ होती है वहाँ वक्ता बोलता जाता है और दुभाषिया तुरंत उसका मौखिक रूप से अनुवाद श्रोता की भाषा में कर देता है।
7. रूपांतरण :- इसमें मूल रचना का ही रूपांतरण हो जाता है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र द्वारा शेक्सपीयर के नाटक ‘मर्चेंट ऑफ वेनिश’ का ‘दुर्लभ बंधु’ नाम से किया गया अनुवाद रूपांतर का उत्तम उदाहरण है। .
 अनुवाद प्रक्रिया –
अनुवाद विशेषज्ञं बालेंदु शेखर तिवारी अनुवाद प्रक्रिया के पाँच प्रमुख सोपान मानते हैं
1. पाठन :- इसमें स्रोत भाषा के सामग्री का अनुवादक द्वारा सावधानी से अध्ययन कर अर्थबोध किया जाता है।
2. विखंडन:-  इसमें स्रोत भाषा के हर वाक्य को अलग-अलग करके विखंडित किया जाता है, ताकि अनुवाद को प्रक्रिया सरल हो जाए और कोई अंश छूट नहीं।
3. चयन :- इसमें स्रोत भाषा के शब्दों के सही प्रति शब्द का चुनाव लक्ष्य भाषा में से किया जाता है।
4. संयोजन :- इसमें लक्ष्य भाषा के शब्दों और वाक्यांशों का इस प्रकार संयोजन किया जाता है ताकि अनुवाद की प्रक्रिया सरल हो जाए और कोई अंश छूटे नहीं।
5. पुनरीक्षण :- इसमें अनुवादक अनुदित पाठ को स्रोत भाषा के पाठ से मिलाकर आवश्यक संशोधन कर अनुवाद को त्रुटिहीन बना लेता है।
आदर्श अनुवाद के लिए पहली शर्त यह है कि अनुवादक को स्रोत भाषा एवं लक्ष्य भाषा के ऊपर पूर्ण अधिकार हो तथा अनुवाद की जानेवाली सामग्री की विषय-वस्तु का पूर्ण ज्ञाता हो। यदि वह विषय का ज्ञाता न होगा तो तकनीकी शब्दों का सही परिप्रेक्ष्य में अनुवाद नहीं कर सकेगा।

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