आत्म-प्रतिष्ठा का क्या अर्थ है ? स्वयं के विकास के सन्दर्भ में आत्म-प्रतिष्ठा निर्माण की भूमिका की व्याख्या कीजिए।

आत्म-प्रतिष्ठा का क्या अर्थ है ? स्वयं के विकास के सन्दर्भ में आत्म-प्रतिष्ठा निर्माण की भूमिका की व्याख्या कीजिए। 

उत्तर— आत्म-प्रतिष्ठा का अर्थ – आत्म प्रतिष्ठा का सम्बन्ध उस सीमा से है, जहाँ तक हम स्वयं को स्वीकार करते हैं या हम स्वयं का कितना मूल्य समझते हैं। आत्म-प्रतिष्ठा में हमेशा मूल्यांकन की डिग्री शामिल होती है और हमारे स्वयं के बारे में नकारात्मक या सकारात्मक विचार होते हैं ।
आत्म-प्रतिष्ठा आत्म-मूल्य के समान है अर्थात् कोई व्यक्ति स्वयं को कितना मूल्यवान समानता है । यह दिन-प्रतिदिन बदलता है या हर साल बदलता है, परन्तु आत्म-प्रतिष्ठा शैशवकाल से विकसित होने लगती है और प्रौढ़ बनने तक यह विकसित होती रहती है।
आत्म-प्रतिष्ठा को हम इस प्रकार भी प्रभावित कर सकते हैंस्वयं को योग्य समझना, जब उसे प्यार दिया जा रहा हो। कोई बच्चा जब कुछ उपलब्ध करता है, तब वह उस उपलब्धि के साथ खुश होता है लेकिन जब भी उसे प्यार नहीं किया जाता, तब बालक निम्न आत्मप्रतिष्ठा का अनुभव करता है। इसी प्रकार जब कोई बालक यह महसूस करता है कि उसे प्यार किया जा रहा है, परन्तु वह अपनी योग्यताओं के बारे में संदेह रखता है, तब भी वह निम्न आत्म-प्रतिष्ठा महसूस करेगा । जब एक उत्तम सुन्तलन बनाया जाता है, तब स्वस्थ आत्म-प्रतिष्ठा विकसित होती है।
आत्म-प्रतिष्ठा की पद्धतियाँ प्रारम्भिक जीवन में ही विकसित होनी शुरू हो जाती हैं। प्रयास के पश्चात् सफलता का सम्प्रत्यय प्रारम्भ में ही शुरू हो जाता है। प्रौढ़ावस्था तक पहुँचने पर व्यक्ति स्वयं को किस प्रकार देखता है, स्वयं को कैसे परिभाषित करता है, उसे बदलना कठिन हो जाता है।
आत्म-प्रतिष्ठा स्वयं के बारे में सकारात्मक या नकारात्मक धारणा होती है तथा यह किसी के बारे में समग्र मूल्यांकन होता है।
लोग उच्च आत्म-प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए अभिप्रेरित रहते हैं। आत्म-प्रतिष्ठा आत्म सम्प्रत्यय का एक घटक होता है। रोजनबर्ग के अनुसार, “व्यक्ति के विचारों और भावनाओं की उसके संदर्भ में समग्रता ।”
आत्म-प्रतिष्ठा, आत्म-दक्षता या मास्टरी और आत्म-पहचान सभी आत्म-सम्प्रत्यय के आवश्यक अंग हैं। आत्म-प्रतिष्ठा का आमतौर पर एक स्वतंत्र या हस्तक्षेप चर के रूप में विश्लेषण किया जाता है। प्रौढ़ों में आत्म-प्रतिष्ठा एक स्थाई विशेषता होती है। यह सोचना कि आत्मप्रतिष्ठा को पढ़ाया जा सकता है, अवास्तविक होगा। यह व्यक्ति के जीवन के अनुभवों द्वारा विकसित होती है। आत्म-प्रतिष्ठा का मापन
करने के लिए रोजनबर्ग का आत्म-प्रतिष्ठा स्केल का प्रयोग किया जा सकता है। आत्म-प्रतिष्ठा को विकसित और उन्नत करने के बारे में बाल्यकाल के दौरान सोचना चाहिए। बच्चे प्रयास करते हैं, फेल होते हैं, पुनः प्रयास करते हैं, पुनः फेल होते हैं और अन्त में सफल होते हैं। इससे वे अपनी क्षमताओं के बारे में अपने विचार विकसित करते हैं। इसी दौरान बच्चे दूसरे लोगों के साथ अन्तः क्रिया पर आधारित आत्मप्रत्यय का निर्माण करते हैं। यही कारण है कि माता-पिता का सही, स्वस्थ आत्म प्रत्यक्षीकरण उत्पन्न करने में भाग लेना कितना महत्त्वपूर्ण होता है।
माता-पिता बच्चों को प्रोत्साहन और प्रसन्नता का प्रदर्शन करके उनमें कई क्षेत्रों में स्वस्थ आत्म-प्रतिष्ठा का विकास करते हैं। वे किसी एक ही क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते। उदाहरणार्थ—स्पैलिंग परीक्षण | इससे बच्चों में परीक्षण में अंकों के अनुसार आत्म-प्रतिष्ठा की भावना पैदा होती है।
आत्म प्रतिष्ठा का निर्माण–आत्म प्रतिष्ठा के निर्माण के लिए निम्नलिखित प्रकार के अभ्यास आवश्यक होते हैं, जिन्हें आत्म-प्रतिष्ठा के छः स्तम्भ कहा जाता है—
(1) जागरूकता के साथ जीने का अभ्यास—इसमें शामिल हैं— तथ्यों को सम्मान देना, जब कुछ हम करते हैं तो उपस्थित रहना, सूचना और ज्ञान ढूँढना और खुलेपन से उसे अर्जित करना, प्रतिपुष्टि (Feedback) जो हमारी रुचियों, मूल्यों, लक्ष्यों और परियोजनाओं को प्रभावित करती हैं, बाहरी संसार को ही नहीं समझना, बल्कि जो हमारे भीतर है, उसे भी समझना ।
(2) आत्म – अभिव्यक्ति का अभ्यास – इसमें ये बातें शामिल हैं— दूसरों के साथ व्यवहार के प्रति विश्वसनीय (Authentic) रहना, अपने मूल्यों और लोगों के साथ सामाजिक सन्दर्भों में शानदार तरीके से पेश आना, अपने स्वयं और स्वयं के विचारों के प्रति उचित ढंग से अड़े रहने की इच्छा रखना।
(3) उद्देश्यपूर्ण तरीके से रहने का अभ्यास – इसमें शामिल हैं ये बातें – लघुकालीन और दीर्घकालीन लक्ष्यों को पहचान करना ।
(4) आत्म स्वीकार्यता का अभ्यास – इसमें शामिल हैंअपनाने की इच्छा, अनुभव तथा हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों का उत्तरदायित्व लेना, बिना किसी इनकार के या बिना किसी को त्याग कर (Disown) |
(5) आत्म – उत्तरदायित्व का अभ्यास—इसमें ये बातें शामिल हैं— ऐसा मानना कि हम अपनी पसन्दों (Choices) और क्रियाओं के लेखक हैं, हम में से प्रत्येक अपने जीवन के लिए उत्तरदायी है तथा अपनी सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है तथा अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उत्तरदायी है।
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