आदर्श स्व के निर्माण में विद्यालय की क्या भूमिका होती है ?

आदर्श स्व के निर्माण में विद्यालय की क्या भूमिका होती है ?

उत्तर – स्व को आकार देने में विद्यालय की भूमिका–स्व को आकार देने में विद्यालय की भूमिका को निम्नलिखित तथ्यों से समझ सकते हैं–
(1) शिक्षक अपने प्रभाव के द्वारा विद्यार्थियों के आत्म प्रत्यय को विकसित करने में सहायक होता है।
(2) विद्यालय पाठ्यक्रम में सम्मिलित ज्ञान, कौशल अवबोधों को विभिन्न विषयों के माध्यम से विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
(3) शिक्षक का व्यक्तित्व उसकी शिक्षण प्रक्रिया, उसके अंतर्वैयक्तिक संबंध विद्यार्थियों को प्रभावित करते हैं, वह विद्यार्थियों के आत्म को विकसित करता है।
(4) विद्यालय का सम्पूर्ण वातावरण विद्यार्थियों को ज्ञान, अभिवृत्तियों और मूल्यों को वास्तविक योग्यताओं के योग्य बना सकता है। इस हेतु अध्यापक विद्यार्थियों को “क्या करें और कैसे करें” से सम्बन्धित अधिगम अनुभव प्रदान कर सकता है।
(5) विद्यालयी व्यवस्था में विद्यार्थियों को अपनी सफलताओं, असफलताओं, शक्तियों, दुर्बलताओं, अवसरों एवं आकांक्षाओं को सही प्रकार से पहचानने व आकलन करने की योग्यता विकसित करनी चाहिए जो आत्म प्रत्यय के निर्माण के मूलभूत तत्त्व हैं।
(6) सम्पूर्ण विद्यालयी व्यवस्था विद्यार्थियों की बाह्य एवं आंतरिक अभिप्रेरणा प्रदान कर विद्यार्थियों को आत्म-प्रत्यय के निर्माण के लिए सक्रिय बना सकती है।
(7) अध्यापक विद्यार्थी, विद्यार्थियों के आकांक्षा स्तर के उनके आत्म प्रत्यय के अनुरूप बनाने में सहायता कर सकते हैं। (8) विद्यार्थियों को असफलताओं, निराशा, तनाव, कुण्ठा एवं मानसिक अवरोधों से बचाकर उनमें विश्वास व्यक्त कर आत्म सम्बन्धी धारणा में परिवर्तन ला सकता है।
(9) विद्यालय विभिन्न क्षेत्रों में सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मिलने एवं परिचर्चा करने के अवसर उपलब्ध करा सकता है।
(10) अच्छे पुस्तकालय की सुविधा प्रदान कर विद्यार्थियों में उचित वाचन की आदतें तथा लक्ष्य प्राप्ति हेतु दृषि प्रदान कर सकता है।
(11) सहशैक्षणिक गतिविधियाँ, सांस्कृतिक क्रियाओं, परिचर्चाओं, आदान-प्रदान कार्यक्रमों, पर्यावरण एवं विज्ञान क्लब आदि विद्यार्थियों में ज्ञान, अभिवृत्ति, अभिरुचि एवं सम्प्रेषण व्यवहार कुशलताओं को विकसित करते हैं।
(12) अध्यापक समय-समय पर विद्यार्थियों को उनके लक्ष्य की प्राप्ति का आकलन करने हेतु स्व-निर्देशन, स्व-पर्यवेक्षण, स्व-प्रभावशीलता की ओर अग्रसर कर सकता है।
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