आप ‘ निबन्ध’ के बारे में क्या जानते हैं ? संक्षिप्त में लिखिए।

आप ‘ निबन्ध’ के बारे में क्या जानते हैं ? संक्षिप्त में लिखिए। 

उत्तर— ‘ निबन्ध’ संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘संवार कर सीना’ । प्राचीन काल में हस्तलिखित ग्रन्थों को संवार कर सिया जाता था और इस प्रक्रिया को निबन्ध कहते थे। धीरे-धीरे इस शब्द का प्रयोग ग्रन्थ के लिए होने लगा — वह ग्रन्थ जिसमें विचारों को बाँधा जाता था, निबन्ध कहलाने लगा ।

आज ‘ निबन्ध’ अंग्रेजी के ‘एस्से’ शब्द के अर्थ में प्रयुक्त होता है । इस प्रकार निबन्ध में नए अर्थ जुड़े हैं और अनावश्यक अर्थों का त्याग हुआ है। फ्रांसिस बेकन ने ‘एस्से’ को ‘डिस्पर्ड मैडिटेशन’ अर्थात् बिखरे विचार माना है। इस धारणा के अनुसार साहित्यकार के मन में उठने वाले विचारों का लिखित रूप ‘एस्से’ है।
हिन्दी में निबन्ध शब्द का प्रयोग गद्य की उस विधा के लिए होता है जिसमें विचारों को क्रमबद्ध रूप में रखा जाता है। कविता की अपेक्षा गद्य लिखना कठिन होता है और गद्य की अपेक्षा निबन्ध लिखना । इसका कारण यह है कि निबन्ध में विचारों को एक सुनिश्चित क्रम में ठूंस-ठूंस कर रखा जाता है। निबन्ध के लेखन के लिए अध्ययन और विषय का ज्ञान आवश्यक है। इसमें विषय का प्रतिपादन निजीपन के साथ किया जाता है। विषय का विकास इस प्रकार से किया जाता है कि उसमें कोई बिखराव न हो। दूसरे शब्दों में विषय के प्रतिपादन में आवश्यक संगति तथा सम्बद्धता की आवश्यकता होती है । इसमें विवेचन की स्पष्टता के साथ-साथ भाषा की स्वच्छता तथा सजीवता की भी आवश्यकता होती है। निबन्ध की इन विशेषताओं को ध्यान में रखकर बाबू गुलाबराय ने इसकी परिभाषा इस प्रकार की है —“निबन्ध सीमित आकार वाली वह रचना है, जिसमें विषय का प्रतिपादन, निजीपन, स्वच्छता, सौष्ठव, सजीवता एवं आवश्यक संगति तथा सम्बद्धता के साथ किया जाता है।”
परिभाषाएँ—
(i) डॉ. जयनाथ नलिन के अनुसार, “निबन्ध स्वाधीन चिन्तन और निश्छल अनुभूतियों का सरस, सजीव और मर्यादित प्रकाशन है । “
(ii) डॉ. हरिमोहन के अनुसार, “सुगठित गद्य रचना, जो सीमित आकार में निजीपन के साथ किसी विचार- परम्परा को उद्घाटित करें।”
(iii) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, “आधुनिक पाश्चात्य लक्षणों के अनुसार निबन्ध उसी को कहना चाहिए, जिसमें व्यक्तित्व अर्थात् व्यक्तिगत विशेषता हो ।”
(iv) डॉ. श्यामसुन्दर दास के अनुसार, “निबन्ध उस लेख को कहना चाहिए, जिसमें किसी गहन विषय पर विस्तारपूर्वक और पाण्डित्यपूर्ण विचार किया गया हो।”
(v) बेकन के अनुसार, “निबन्ध केन्द्रीय मूल ज्ञान के वे कतिपय पृष्ठ हैं, जिसमें विचारों की सहज अभिव्यक्ति होती है । “
(vi) केब्बे के अनुसार, “निबन्ध लेखन कला का बहुत प्रिय साधन है। “
(vii) सेन्त ब्यूव के अनुसार, “निबन्ध साहित्याभिव्यक्ति का अत्यन्त कठिन परन्तु प्रमोदपूर्ण अंग है क्योंकि इसमें लेखक की गम्भीरता और उसकी गागर में सागर भरने की शक्ति का संकेत मिलता है । “
(viii) प्रिस्टले के अनुसार, “निबन्ध किसी मौलिक व्यक्तित्व की निश्छल आत्माभिव्यक्ति होती है ।
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