ग्रेडिंग प्रणाली का अर्थ एवं विधियों का वर्णन कीजिए |

ग्रेडिंग प्रणाली का अर्थ एवं विधियों का वर्णन कीजिए |

उत्तर – ग्रेडिंग प्रणाली का अर्थ-ग्रेडिंग प्रणाली में विद्यार्थियों को उनकी शैक्षिक उपलब्धि से सम्बन्धित मूल्यांकन परिणामों को व्यक्त करने के लिए उन्हें पास, फेल घोषित करने या पूर्णांकों में से कितने प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं ऐसा बताने की अपेक्षा अक्षर ग्रेड जैसे A, B, C, D, E या O, A, B, C, D इत्यादि प्रदान किए जाते हैं । इस प्रणाली को परम्परागत डिवीजन तथा प्रतिशत अंक प्रणाली से निम्न बातों को लेकर अच्छा समझा जाता है—
(1) उत्तर या उपलब्धि विशेष के लिए सही-सही कितने अंक दिए जाएँ इसकी अपेक्षा पक्षपात तथा आत्मगतता पर आवश्यक अंकुश लगाते हुए ग्रेड प्रदान प्रदान करना ज्यादा सरल तथा युक्तिसंगत प्रतीत होता है।
(2) यदि एक ही परीक्षण तथा परीक्षा से सम्बन्धित परीक्षा केन्द्रों की उत्तर पुस्तिकाएँ अलग-अलग परीक्षाओं के पास जाएँ या अलग अलग विभिन्न विद्यार्थियों/विद्यार्थी समूहों की परीक्षाएँ लें तो उनके मूल्यांकन में आत्मनिष्ठा तथा अंकन स्तरकी विभिन्नता को लेकर अंतर आना स्वाभाविक ही है। ग्रेडिंग, परीक्षकों को इस प्रकार की आत्मनिष्ठ तथा अविश्वनीयता पर रोक लगाने का प्रयास करना है।
(3) अनेक बार पाठ्यक्रम के विविध विषयों में पूर्णांक एक जैसे नहीं होते और विषय विशेष की परीक्षाओं जैसे मौखिक, लिखित तथा क्रियात्मक परीक्षाओं या आन्तरिक मूल्यांकन में भी पूर्णांक तथा प्राप्तांकों का सीमा विस्तार एक जैसा नहीं होता, परन्तु पास, फेल घोषित करने या डिवीजन प्रदान करने हेतु इन सभी प्रकार के असमान और विसंगत मूल्यांकन परिणामों या प्राप्तांकों को जोड़ लिया जाता है। गणित और सांख्यिकी की दृष्टि से ऐसा करना मुक्ति संगत नहीं है। ग्रेडिंग प्रणाली इस दोष को दूर करने हेतु एक अच्छा विकल्प प्रस्तुत करती है।
(4) प्रचलित प्रणाली में प्रतिशत अंक लेने के आधार पर विद्यार्थियों के पास, फेल घोषित करने या प्रथम, द्वितीय, तृतीय श्रेणी प्रदान करने का चलन है। एक या दो नम्बर इधर-उधर होने से विद्यार्थी पास से फेल तथा द्वितीय से तृतीय डिवीजन में पहुँच जाते हैं। 100 में 59 अंक लेने वाला विद्यार्थी द्वितीय श्रेणी प्राप्त करता है जबकि केवल एक अंक ज्यादा लेने से ही वह प्रथम श्रेणी प्राप्त कर होशियार, प्रतिभाशाली बालकों की श्रेणी में आकर अनेक सुविधाओं जैसे आगे की कक्षाओं में प्रवेश लेना, नौकरियों में साक्षात्कार देने के काबिल बन जाना, छात्रवृत्ति लेना इत्यादि को प्राप्त कर लेता है। ग्रेडिंग में वर्गीकरण का आधार बढ़ जाता है जैसे 55 प्रतिशत से 65 प्रतिशत तक अंक पाने वाले को एक-सा ग्रेड देकर प्रचलित दोष को बहुत कुछ सीमा तक दूर किया जा सकता है।
ग्रेडिंग विधियों— ग्रेडिंग प्रणाली में प्राय: दो प्रकार के अक्षर ग्रेड जैसे A, B, C, D, E तथा O, A, B, C, D देने का प्रचलन है। इनके द्वारा क्रमशः उत्कृष्ट, बहुत अच्छा, अच्छा, कम या बहुत कम उपलब्धि स्तर का प्रतिनिधित्व किया जाता है। इन अक्षर ग्रेडों को प्रदान करने हेतु प्राय: निम्न दो विधियों का अनुसरण किया जाता है—
(I) निरपेक्ष ग्रेडिंग विधि—इस विधि में अक्षर ग्रेड प्रदान करने हेतु कोई पूर्व निर्धारित स्तर चुन लिया जाता है। ऐसा निम्न दो तरह से किया जा सकता है—
(1) यह तय कर लिया जाता है कि किस अक्षर ग्रेड को प्रदान करने हेतु कितने प्रतिशत अंक चाहिए। दूसरे शब्दों में मूल्यांकन परिणामों के रूप में विद्यार्थियों को जो प्रतिशत अंक प्राप्त होते हैं हम उनको अलग-अलग विस्तार सीमाएँ बनाकर उन्हें भिन्न-भिन्न अक्षर ग्रेड प्रदान कर देते हैं जैसा कि नीचे दिखाया गया है ।
ग्रेड-अंक प्रतिशत 080% और उससे अधिक, A-70-79%, B-60-69%, C-50-59%, D-50% से कम ।
(2) निरपेक्ष ग्रेडिंग का दूसरा अन्य रूप कसौटी या मानदण्ड संदर्भित ग्रेडिंग कहलाता है। इसमें परीक्षण का कठिनाई स्तर कैसा है तथा विद्यार्थियों से किस प्रकार की अधिगम निष्पत्ति की उपेक्षा की जा सकती है, इन दोनों बातों को ध्यान में रखते हुए परीक्षक द्वारा निष्पत्ति स्तर का एक मानदण्ड निर्धारित कर लिया जाता है और फिर उसी के हिसाब से अक्षर ग्रेड प्रदान करने का काम किया जाता है।
ग्रेड निष्पत्ति स्तर (पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के संदर्भ में)
O बहुत ही अच्छा या उत्कृष्ट
A सामान्य से ऊपर उत्तम
B सामान्य से अच्छा
C सामान्य से कम या कमजोर
D बहुत ही कमजोर या निराशाजनक
(II) सापेक्ष पेडिंग विधि -इस विधि में विद्यार्थियों की अपनी कक्षा का समूह विशेष में अपनी उपलब्धि या निष्पत्ति के आधार पर जो सापेक्षिक स्थिति या मेरिट पोजीशन होती है उसी के आधार पर उनकी ग्रेडिंग कर दी जाती है। व्यावहारिक रूप में इस प्रकार के ग्रेड वितरण में “सामान्य वक्र वितरण” के सिद्धान्त का अनुसरण किया जाता है। इसके पीछे यही मान्यता कार्य करती है कि विद्यार्थियों की किसी भी एक निश्चित जनसंख्या में अंकों का वितरण “सामान्य वक्र वितरण” के अनुरूप ही होता है। इस दृष्टि से सामान्य वक्र क्षेत्र को सांख्यिकी विधि का प्रयोग करते हुए जितने ग्रेड दिए जाने होते हैं उतने ही खण्डों में बॉटकर यह निश्चित कर लिया जाता है कि खण्ड विशेष में दी हुई जनसंख्या के कितने प्रतिशत विद्यार्थी शामिल होंगे।
ग्रेड विद्यार्थियों का प्रतिशत जिन्हें यह ग्रेड दिया जाना है।
O   कक्षा या समूह के शीर्षस्थ 7%
A  कक्षा या समूह के शीर्षस्थ से नीचे 24%
B  कक्षा या समूह के मध्य 38%
C  कक्षा या समूह के मध्य से कुछ नीचे 24%
D  कक्षा या समूह के सबसे नीचे वाले 7%
शीर्ष के 7% और इसके बाद के 24% तथा मध्य के 38% तथा उसके नीचे के 24% तथा 7% विद्यार्थियों में किस-किस की गिनती की जाएगी इस बात का निर्णय विद्यार्थी विशेष द्वारा किसी परीक्षण या मूल्यांकन तकनीक विशेष में अर्जित अंकों के आधार पर ही लिया जाता है। जितने अंक या रेटिंग विद्यार्थियों ने अर्जित किए होते हैं उनके इन प्राप्तांकों को घटते हुए क्रम में व्यवस्थित कर लिया जाता है। किसके कितने अंक हैं, इसकी पहचान हेतु उन विद्यार्थियों के रोल नं. भी साथ लिख दिए जाते हैं और फिर शीर्ष पर स्थित 7% विद्यार्थियों को O Grade उसके बाद के 24% को A ग्रेड, उसके नीचे के 38% को B ग्रेड तथा बाद के 24% तथा 7% को क्रमश: C तथा D ग्रेड प्रदान कर दिया जाता है।
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